कार्तिकेय (स्कन्द) की माता होने के कारण इनको स्कंदमाता कहा जाता है. यह माता चार भुजाधारी कमल के पुष्प पर बैठती हैं, अतः इनको पद्मासना देवी भी कहा जाता है. इनकी गोद में कार्तिकेय भी बैठे हुए हैं. अतः इनकी पूजा से कार्तिकेय की पूजा स्वयं हो जाती है. इस बार मां के पांचवे स्वरूप की उपासना 10 अप्रैल को की जा रही है.
स्कंदमाता देवी के पांचवे स्वरुप को कहा गया है. स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं जिनमें से माता ने अपने दो हाथों में कमल का फूल पकड़ा हुआ है. उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है, जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती हैं तथा एक हाथ से उन्होंने गोद में बैठे अपने पुत्र स्कंद को पकड़ा हुआ है. इनका वाहन सिंह है.
पूजन विधि
नवरात्रि-पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है. इस चक्र में साधक की समस्त बाधाएं दूर हो जाती हैं. नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है. स्कंदमाता को पार्वती और उमा के नाम से भी जाना जाता है. अलसी एक औषधि से जिससे वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी रोग का इलाज होता है. इस औषधि को नवरात्र में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती. साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है.
नवदुर्गा के पांचवें रूप स्कंदमाता की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. मां भक्त के सारे दोष और पाप दूर कर देती हैं. मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं.