नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने आज राष्ट्रीय तेल कंपनियों; तेल तथा प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओएनजीसी) तथा ऑयल इंडिया लिमिटेड द्वारा तैयार हाइड्रोकार्बन खोजों के विकास हेतु सीमांत क्षेत्र नीति (एमएफपी) के लिए स्वीकृति प्रदान की है।
कई वर्षों के लिए अलग-थलग पड़े स्थान, भंडारों के छोटे आकार, उच्च विकास लागत, तकनीकी अवरोध तथा राजकोषीय व्यवस्था आदि विभिन्न कारणों के चलते इन खोजों को मुद्रीकृत नहीं किया जा सका।
नई नीति के अंतर्गत ओएनजीसी तथा ओआईएल के अंतर्गत 69 तेल क्षेत्र आते थे लेकिन उनका कभी दोहन नहीं किया गया। उन्हें अब प्रतिस्पर्धात्मक बोली के लिए खोला जाएगा। इस नीति के अंतर्गत खनन कंपनियां इन तेल क्षेत्रों के दोहन के लिए बोलियां दाखिल कर सकेंगी। इन तेल क्षेत्रों का पहले विकास नहीं किया गया क्योंकि इन्हें सीमांत क्षेत्र के रूप में लिया जाता था इसलिए इन्हें कम प्राथमिकता में रखा जाता था। नीति में उचित परिवर्तनों के साथ ये अपेक्षा की जा रही है कि इन क्षेत्रों को उत्पादन के अंतर्गत लाया जा सकता है। ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ के सिद्धांत के अनुरूप प्रस्तावित अनुबंधों की संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। पहले के अनुबंध लाभ साझेदारी के सिद्धांत पर आधारित थे। इस कार्यप्रणाली के अंतर्गत सरकार को निजी भागीदारों के लागत विवरणों को देखना आवश्यक हो गया था जिसके कारण काफी विलंब तथा विवाद पैदा हो गए। नई व्यवस्था के अंतर्गत सरकार का खर्च लागत से संबंध नहीं रहेगा और उसे तेल, गैस आदि की बिक्री से सकल राजस्व का एक हिस्सा प्राप्त होगा। दूसरे परिवर्तन में सफल बोली लगाने वाले को दिए गए लाइसेंस के अंतर्गत क्षेत्र में पाए जाने वाले सभी हाइड्रोकार्बन शामिल होंगे। इससे पहले लाइसेंस मात्र एक वस्तु (जैसे तेल) तक सीमित था तथा कोई अन्य हाइड्रोकार्बन, उदाहरण के लिए गैस की खोज तथा उसका दोहन की अवस्था में अलग लाइसेंस की आवश्यकता होती थी। इन सीमांत क्षेत्रों की नई नीति के अंतर्गत सफल बोलीदाता वाले को प्रशासित कीमत की अपेक्षा गैस के मौजूदा बाजार मूल्य पर बेचने की अनुमति भी है।