लखनऊः माॅ का दूध शिशु का सर्वोत्तम आहार है और यह शिशु का मौलिक अधिकार भी है। लेकिन कई सामाजिक भ्रमों के कारण प्रदेश में शिशुओं को माॅ का दूध प्राप्त होने का प्रतिशत बहुत कम है। 10 में से 04 शिशुओं को ही छः माह तक माॅ का दूध प्राप्त हो पाता है। आज जबकि 70ः प्रसव अस्पतालों में हो रहे हैं तब भी एक चैथाई बच्चे जन्म के पहले घंटे में माॅ का पहला दूध प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं।
यह जानकारी देते हुए राष्ट्रीय स्वास्थय मिशन के महाप्रबंधक बाल स्वास्थ्य डा0 वेद प्रकाश ने बताया कि जन्म के पहले घंटे में शिशु को स्तनपान कराने का राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़ा 41.6ः है जबकि उत्तर प्रदेश में केवल 25.2ः शिशु ही जन्म के पहले घंटे में माॅ का दूध प्राप्त कर पाते हैं।
महाप्रबन्धक बाल स्वास्थ्य ने बताया कि कई बार माॅ का पहला दूध गंदा होता है, शिशु का स्वागत शहद-गुड़-चीनी से करना चाहिए, माॅ के दूध से ही शिशु का पेट नहीं भर पायेगा जैसी अनेक सामाजिक भ्रमों के कारण शिशुओं को माॅ का दूध प्राप्त नहीं हो पाता है। उन्होंने बताया कि स्तनपान केवल माता की जिम्मेदारी नहीं है। परिवार, समुदाय, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और नियोक्ता को एक साथ मिलकर सहयोग देने की जरूरत है। उन्होंने कहा स्तनपान के व्यवहार को बढ़ावा देने की जरूरत है, इसके लिए कार्यस्थल, सार्वजनिक स्थलों, पर माताओं के लिए स्तनपान कराने के स्थलों को बनाना चाहिए और इसे एक सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।