देहरादून: सामाजिक-सांस्कृतिक कल्याण और मानवता के लिए समर्पित एक संस्थान, प्रभा खेतान फाउंडेशन, ने अपने प्लैटफॉर्म किताब के जरिए ई-पुस्तक ’द कोरोनवायरस’ वैश्विक महामारी के बारे में आपको क्या जानना चाहिएश् के वर्चुअल पुस्तक विमोचन को आयोजित किया। यह पुस्तक डॉ. स्वप्निल पारिख, सह-संस्थापक डी.आई.वाई हेल्थ, माहेरा देसाई, एक क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक और मेडिकल शोधकर्ता और मेडिकल रिसर्च और डॉ. राजेश पारिख, मेडिकल रिसर्च एंड न्यूरोसाइकाइट्री, जसलोक अस्पताल के द्वारा लिखी गई है। पेंगुइन द्वारा प्रकाशित, यह पुस्तक पढ़ने वालों को इस जानलेवा वायरस से खुद को सुरक्षित रखने के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सलाह देते हुए इस महामारी के इतिहास की जानकारी देती है। किताब, एशियाई लेखकों को दुनियाभर के पाठकों से जोड़ता है और स्वयं को रचनात्मक रूप से व्यक्त करने के लिए इस क्षेत्र के उभरते हुए और अनुभवी लेखकों को लिखने और प्रकाशित करने का मंच प्रदान करता है। सुश्री शमा देओ, स्पेक्ट्रम की अध्यक्षा – सीखने के लिए प्रतिबद्ध पुणे के एक सर्वेक्षण समूह ने स्वागत भाषण दिया और सत्र का संचालन किया।
कोविड-19 से जूझनेवाले योद्धाओं द्वारा लिखी गई यह पुस्तक, हमें इतिहास के अलग-अलग समय पर महामारी के साथ दुनिया के संघर्षों और हमारे सामने अब पेश आने वाली चुनौतियों का एक सचित्र विवरण प्रदान करती है। इस वर्चुअल सेशन के विषय में, सुश्री मनीषा जैन, कम्युनिकेशन और ब्रांडिंग प्रमुख, प्रभा खेतान फाउंडेशन ने कहा, “इस पहल के जरिए, प्रभा फाउंडेशन और पेंगुइन व्याप्त वैश्विक महामारी के बारे में क्या जानना चाहिए इसके बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। इस पारस्परिक बातचीत के सत्र के माध्यम से, हमारे विचारशील दर्शक और श्रोता पेशेवर लोगों से विश्वसनीय और व्यापक जानकारी प्राप्त कर सके थे, जिसने हमें इस घातक वायरस के बारे में समझने में मदद की, और यह भी बताया कि हम मानव जाति के भविष्य के लिए इसके खिलाफ कैसे तैयारी करें और हम खुद को सुरक्षित कैसे रखें।”
इस पुस्तक के सह-लेखक डॉ. स्वप्निल पारिख ने कहा, “यह पहली पुस्तक है जो इस महामारी से संबंधित इतिहास, विकास, सच्चाई और मिथकों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। हालाँकि अब दुनिया के पास पर्याप्त तकनीक और ई-बोला, स्वाइन फ्लू, जीका जैसी महामारियों का अनुभव हैं, फिर भी पिछले अनुभव से सीखने में हमारी अक्षमता या अनिच्छा के कारण इस स्थिति को प्रबंधित करने में देर हुई।”
उन्होंने कहा कि ष्हमने फरवरी की शुरुआत में इस पुस्तक को लिखना शुरू कर दिया था जब इस समस्या को चीन की समस्या माना जाता था और मुख्य रूप से वुहान और हुबेई प्रांत तक ही सीमित थी। डब्ल्यूएचओ ने इसे महामारी कहने से पहले इसे इन्फोडेमिक का नाम दिया था। फरवरी के अंत तक, यह वायरस विश्वभर में फैल गया था, और इसका प्रभाव विशाल पैमाने पर था। इंसान की उत्पत्ति के बाद से इतने बड़े पैमाने पर ऐसा कुछ भी नहीं देखा गया है। सीखने वाली मुख्य बातों में से एक बात यह है कि किसी भी नई महामारी के साथ हमें सबसे बुरी स्थिति समझकर निपटना होगा, तभी हम खुद को तैयार रख सकते हैं।”
एक घंटे तक चले इस प्रभावशाली सत्र के दौरान, डॉक्टरों ने इस बात पर चर्चा की कि इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए हमें खुद को कैसे तैयार करना चाहिए। उन्होंने वायरस के क्रिया करने की प्रणाली, और कैसे यह निचली श्वसन प्रणाली में गहराई तक उतर जाता है, रोग प्रतिरोधक तंत्र के द्वारा इसका श्पता लगानेश् तक कैसे यह चुपचाप अपनी संख्या बढ़ाता रहता है, इन सब बातों के बारे में विस्तार से बताया। यह प्रतिक्रिया के उस स्तर में होता है जब रोगप्रतिरक्षा प्रणाली स्वयं की त्राहि-त्राहि कर उठती है और अनेकों तरीकों से एक उन्मादी हमले की शुरूआत कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप जो आवश्यकता से अधिक नुकसान कर सकता है। साँस की यह गंभीर बीमारी मधुमेह या हृदय रोग से पीड़ित बुजुर्गों के लिए, या लंबे समय से धूम्रपान कर रहे लोगों के लिए हानिकारक हो सकती है। उन्होंने वायरल संक्रामकों के आधुनिक युग के इतिहास पर भी चर्चा की, जिससे पता चलता है कि महामारी वो तबाहियाँ होती हैं जब कि स्वास्थ्य सेवा कार्मिक अपना काम करते हुए अभिभूत हो जाते हैं। खुद को बचाने की भी कोशिश कर हुए, वे अनजाने में बीमारी को बढ़ाने के कारक बन जाते हैं और डर के केंद्र में परिवर्तित हो जाते हैं – क्योंकि डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को परेशान किए जाने के कई सारे वीडियो इस बात की गवाही देते हैं। विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर बहुत बड़े पैमाने पर मानसिक स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हो जायेगा।
नैदानिक मनोवैज्ञानिक और चिकित्सा शोधकर्ता, सुश्री माहेरा देसाई ने वर्चुअल सत्र में कहा, “बहुत बड़ी संख्या में भारत के लोग अच्छे स्तर की स्वास्थ्य सेवा तक नहीं पहुँच सकते हैं, और मुझे आशा है कि जब हम इस मुसीबत से बाहर निकलेंगे, तो लोग उन लोगों की देखभाल करना शुरू कर देंगे जो मूलभूत चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण लगातार पीड़ित होते रहे हैं।” उसने सोशल मीडिया के उन प्रभावों पर शोध किया है जो कि एक माध्यम के रूप में बड़े पैमाने पर लोगों के लिए ताकत और कमजोरी दोनों ही हैं। सुश्री देसाई ने कहा, ष्जब चीनीयों ने इस माध्यम पर इस बीमारी के बारे में सबसे पहले बताया था, सोशल मीडिया ने दूसरी सामाजिक बुराइयों के अलावा गलत सूचना, जेनोफोबिया, नस्लवाद का प्रचार किया जो लोगों के दिमाग में बिठा दिया गया था। इस महामारी के कारण, लंबे समय तक मनोवैज्ञानिक असर पड़ता रहेगा, जनसँख्या का आधा हिस्सा अकेला पद गया है, 1.2 बिलियन से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। इस महामारी के अंत में विश्वस्तर पर खाद्य संकट उत्पन्न होगा।”
साहित्य संस्कृति और ललित कला को बढ़ावा देने के प्रति समर्पित प्रभा खेतान फाउंडेशन भारत में सांस्कृतिक, शैक्षिक, साहित्यिक और सामाजिक कल्याण परियोजनाओं को लागू करने के लिए सेवा प्रदान करने वालों, प्रतिबद्ध व्यक्तियों और समान विचारधारा वाले संस्थानों के साथ मिलकर काम करता है। किताब प्रभा खेतान फाउंडेशन की एक पहल है। इस पहल के माध्यम से, पी.के.एफ ने लिए डॉ. शशि थरूर, वीर सांघवी, पवन वर्मा, सलमान खुर्शीद, सुनीता कोहली जैसे कुछ लेखकों की किताबों को लॉन्च किया है।