नई दिल्ली: राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि गंभीर स्वरूप ले चुके और अंतराष्ट्रीय समुदाय को संकट में डालने वाले आंतकवाद के मुद्दे से निपटने के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यता है। राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने 27 मई 2015 को राष्ट्रपति भवन में भारतीय विदेश सेवा के वर्ष 2013 वर्ष के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि उग्रवादियों की नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार और अन्य आपराधिक गतिविधियों के कारण प्रचुर हथियारों ओर अन्य संसाधनों तक पंहुच संभव हो रही है।
समस्याग्रस्त क्षेत्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है औऱ कई महत्वपूर्ण शहर खतरे में हैं। इन शहरों की न सिर्फ ऐतिहासिक औऱ सामाजिक पहचान खतरे में है बल्कि इनका पतन राजनीतिक अस्थिरता का प्रतीक बन रहा है। शीत युद्ध समाप्त होने के बाद भी शांति विश्व के लोगों की पहुंच से बाहर है।
वर्तमान वैश्विक स्थिति को जटिल बताते हुए राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने कहा कि वर्तमान दौर को समझने के लिए एकपक्षीय दृष्टिकोण उपयुक्त नहीं है। भारतीय राजनयिकों को विश्व में हुए बदलावों पर तीव्रता से ध्यान देना होगा। उन्हें इन्हें समझने और इनका विश्लेषण करने की क्षमता और विशेषज्ञता विकसित करनी होगी।
सिविल सेवा को राष्ट्र और देशवासियों की सेवा करने का महान अवसर बताते हुए उन्होंने लेबनान और हाल ही में यमन में फंसे हुए नागरिकों निकालने में भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों द्वारा अपनी सुरक्षा को खतरे में डाल कर प्रशंसनीय कार्य करने का स्मरण किया।
राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने प्रवासी भारतीयों को देश की कूटनीति का महत्वपूर्ण भाग बताते हुए युवा राजनयिकों से उन पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा।
अपने संबोधन के अंत में श्री मुखर्जी ने युवा राजनयिकों से प्रतिबद्धता और निष्ठा के साथ देश और देशवासियों की सेवा करने का आह्वान किया
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