लखनऊ: सिंचाई जल उपयोग का सबसे बड़ा क्षेत्र है। उत्तर प्रदेश में जल संसाधन की प्रचुरता एवं कृषि योग्य उपजाऊ जमीन की उपलब्धता होने से सिंचाई हेतु जल संसाधनों का सर्वाधिक दोहन किया जा रहा है। जहाँ एक ओर नदियों का अधिकांश जल सिंचाई हेतु नहरों द्वारा खेतो को पहुँचाया जा रहा है वही भूजल का भी सर्वाधिक दोहन कृषि हेतु ही किया जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या के पोषण एवं विकास हेतु खाद्यान्न उत्पादक्ता में वृद्वि हेतु सिंचाई की आवश्यकताओं से भी वृद्वि जारी है तथा अन्य क्षेत्रों में भी जल की उपयोगिता बढ़ती जा रही है। जिससे नदियों में प्रवाह और भूगवर्तीय जल क्षेत्रों में भण्डारण की कमी बढ़़ती जा रही है।
इन सभी आवश्यकतों की पूर्ति हेतु सिंचाई क्षेत्र में जल के समुचित उपयोग की आवश्यकता है जिससे नदियों में सामान्य जल स्तर (E-flow) हेतु पानी छोड़ा जा सके और भूगर्भीय जल का न्यूनतम दोहन हो।
इस कार्यशाला का उद्देश्य सिंचाई क्षेत्र में जल उपयोग की दक्षता को बढ़ाना और न्यूनतम जल उपयोग से अधिकतम उत्पादन क्षमता हेतु प्रदेश और देश के विभिन्न भागों से आये विशेषज्ञों द्वारा उत्तर प्रदेश के लिए कार्ययोजना हेतु सुझाव प्रस्तुत करना एवं उत्तर प्रदेश सरकार के लिए इन योजनाओं के कार्यान्वन हेतु मार्गदर्शन प्रदान करना है।
इस कार्यक्रम हेतु उत्तर प्रदेश के सभी जिलों से प्रतिभागी नामित किये गये है जिनके ऊपर इसके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी होगीे। इस कार्यक्रम में जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय, भारत सरकार, केन्द्रीय जल आयोग, केन्द्रीय भूजल बोर्ड, एवं उत्तर प्रदेश के सिंचाई, कृषि, बागवानी एवं खाद्य प्रसंस्करण, कमान्ड क्षेत्र विकास विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों के अतिरिक्त कृषि विश्वविद्यालयोें, शोध संस्थाओं एवं सिंचाई तथा जल प्रबंधन के क्षेत्र में कार्य वर्षों से कार्य कर रहे विशेषज्ञ, राष्ट्रीय एवं अतंराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहे NGO एवं निजी क्षेत्रों की अनेक संस्थाये जैसे जैन इन्जीनियरिंग, कोल्हापुर WORT पुणे, वासर लैब, हैदराबाद, तहल इन्डिया, Peoplis Action for National Institution (PANI) अयोध्या, Action for Food Production (AFPRO) नई दिल्ली प्रतिभाग कर रही है।