पाकिस्तान में इमरान खान (Imran Khan) के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने और नेशनल असेंबली भंग होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई कल तक के लिए टल गई है.
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल (Chief Justice Umar Ata Bandial) ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव एक संवैधानिक प्रक्रिया है. वहीं उन्होंने पूछा कि क्या स्पीकर के पास संवैधानिक प्रक्रिया में खलल डालने का अधिकार है? वहीं जस्टिस जमाल खान मंडोखेल ने कहा कि सुनवाई को पटरी से उतारने की कोशिश ना की जाए. बता दें कि इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई कर रही है.
इससे पहले मुख्य न्यायाधीश बंदियाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट डिप्टी स्पीकर द्वारा जारी किए गए फैसले के खिलाफ सुओ मोटो मामले में अपना फैसला जारी करने से पहले प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ कथित विदेशी साजिश के बारे में जानना चाहता है, जिस बहाने से इमरान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था. उधर, सुप्रीम कोर्ट में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील अली जफर ने विपक्ष के मामले को लेने के पीछे अदालत के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति जताई. जफर ने कहा कि नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना संसद के मामलों में हस्तक्षेप है और इस संबंध में कोई भी निर्देश जारी करना अदालत द्वारा अतिश्योक्तिपूर्ण होगा.
चीफ जस्टिस ने मांगी बैठक से जुड़ी जानकारी
चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल ने बुधवार को पीटीआई सरकार के वकील बाबर अवान से राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की हालिया बैठक के मिनट्स (मीटिंग के दौरान रिकॉर्ड होने वाले नोट्स) के बारे में पूछा, जिसमें पीटीआई के नेतृत्व वाली सरकार को बाहर करने के लिए एक विदेशी साजिश के सबूत दिखाने वाले एक पत्र पर चर्चा की गई थी.
लंबा खींचता दिख रहा देश का सियासी संकट
बता दें कि पाकिस्तान में राजनीतिक एवं संवैधानिक संकट लंबा खींचता दिख रहा है. महज एक हफ्ते में देश की सियासत का रुख पूरी तरह बदल गया है. मंगलवार को पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर नेशनल असेंबली की कार्यवाही का रिकॉर्ड तलब किया था और सुनवाई बुधवार तक के लिए टाल दी थी. इससे पहले मंगलवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद सरकार को नेशनल असेंबली की कार्यवाही का ब्योरा पेश करने का आदेश दिया था. चीफ जस्टिस बंदियाल ने कहा था कि अदालत सरकार एवं विदेश नीति के मामले में हस्तक्षेप नहीं करती और वह केवल अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने और बाद में नेशनल असेंबली को भंग करने के लिए उपाध्यक्ष द्वारा उठाए गए कदमों की संवैधानिकता का पता लगाना चाहती है.
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