नई दिल्ली: तीन तलाक को गैरकानूनी बनाने वाले बहुचर्चित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण)
विधेयक 2019 पर आज संसद की मुहर लग गयी। राज्यसभा में इस विधेयक को आज मतविभाजन से पारित कर दिया गया, जबकि लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। विपक्ष ने मतविभाजन की मांग की। इसके बाद विधेयक को 81 के मुकाबले 99 मतों से पारित कर दिया गया।
इस विधेयक में तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित किया गया है तथा तीन तलाक देने वालों को तीन साल तक की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। साथ ही जिस महिला को तीन तलाक दिया गया है, उसके और उसके बच्चों के भरण-पोषण के लिए आरोपी को मासिक गुजारा भत्ता भी देना होगा। मौखिक, इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी माध्यम से तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक को गैर-कानूनी बनाया गया है। यह विधेयक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) दूसरा अध्यादेश, 2019 का स्थान लेगा जो इस साल 21 फरवरी को प्रभाव में आया था। पिछली लोकसभा में दो बार यह विधेयक अलग-अलग स्वरूपों में पारित किया गया था, लेकिन राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका। नई लोकसभा के गठन के बाद इसे नये सिरे से सदन में लाना पड़ा। विधेयक में प्रावधान है कि तीन तलाक देने वाले आरोपी के खिलाफ सिर्फ पीडिता, उससे खून का रिश्ता रखने वाले और विवाह से बने उसके रिश्तेदार ही प्राथमिकी दर्ज करा पायेंगे।
आरोपी पति को मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत मिल सकती है। पीडिता को सुनने के बाद मजिस्ट्रेट को यथोचित शर्तों पर सुलह कराने का भी अधिकार दिया गया है। विधेयक पर चर्चा के दौरान ही सरकार के सहयोगी जनता दल युनाईटेड और अन्नाद्रमुक ने बहिर्गमन किया जबकि मतविभाजन के समय बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति के सदस्य मौजूद नहीं थे। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि तीन तलाक के मामले से सबसे अधिक गरीब परिवार की महिलाएं पीडित होती हैं।
तीन तलाक के मामले में कानून नहीं होने के कारण प्राथमिकी नहीं दर्ज की जा सकती है। उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस्लामिक देशों में भी कदम उठाये गये हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के शासन के दौरान बाल विवाह, दूसरी शादी करने तथा दहेज को लेकर कानून बनाये गये थे और कई मामलों में गैरजमानती प्रावधान किये गये थे। इस विधेयक में तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित किया गया है तथा तीन तलाक देने वालों को तीन साल तक की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
साथ ही जिस महिला को तीन तलाक दिया गया है उसके और उसके बच्चों के भरण-पोषण के लिए आरोपी को मासिक गुजारा भत्ता भी देना होगा। मौखिक, इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी माध्यम से तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक को इसमें गैर-कानूनी बनाया गया है। यह विधेयक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) दूसरा अध्यादेश, 2019 का स्थान लेगा जो इस साल 21 फरवरी को प्रभाव में आया था।
Source रॉयल बुलेटिन