लखनऊ: शैक्षिक कार्यक्रम के अर्न्तगत 15 जनवरी, 2022 को राज्य संग्रहालय, लखनऊ में चित्रकला अनुभाग द्वारा रागमाला विषयक लघुचित्रों पर आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। प्रदर्शनी का उद्घाटन कलाकार एवं कला समीक्षक, सेवानिवृत्त भूरिसिंह संग्रहालय, चम्बा, हिमाचल प्रदेश पद्मश्री डॉ0 विजय शर्मा द्वारा किया गया।
उक्त जानकारी देते हुए निदेशक, राज्य संग्रहालय लखनऊ डॉ. आनंद कुमार सिंह ने बताया कि प्रदर्शनी में आमेर शैली में बने 35 लघुचित्रों के छायाचित्र रागमाला श्रृंखला से प्रदर्शित किए गए है। यह प्रदर्शनी दर्शकों के अवलोकनार्थ 30 जनवरी, 2022 तक खुली रहेगी। उन्होंने कहा कि भारतीय लघुचित्रकला में रागमाला का प्रमुख स्थान है। 17वीं व 18वीं शती के सभी प्रचलित लघुचित्र शैलियों में इस विषय को चित्रित किया गया है। राग भारतीय संगीत का प्रमुख अंग है। भरतमुनि राग के विषय में कहते है कि जो तीनों लोको में विद्यमान प्राणियों के हृदय का रंजन करता है वह राग है। 10वीं शती में अभिनव ने अभिनवभारती में छियानबे रागों का वर्णन किया है। 1127 ई० के लगभग राजा सोमेश्वर ने अभिलषितार्थ चिन्तामणि में छियानबे रागों की चर्चा की है। संगीतरत्नाकर में दो सौ चौसठ रागों की चर्चा की है। शिवमत और हनुमत के अनुसार 06 राग और 30 रागिनियों का नाम संगीतदर्पण में मिलता है। सोमेश्वर मत के अनुसार 06 राग व 36 रागिनियों का वर्गीकरण है। राग-रागिनी के वर्गीकरण का कोई निश्चित नियम नहीं है जो सभी मतों द्वारा अपनाई गयी हों। जैसे कि शिवमत में बंसत और पंचम राग है परन्तु यहां प्रदर्शित रागमाला में दोनों ही रागिनियां है। शिवमत तथा सोमेश्वर मत में हिंदोली रागिनी है जबकि प्रदर्शित चित्रों में हिंदोल राग है जिसका वर्णन हनुमत में मिलता है। सभी मतों में तीन राग स्थाई है-श्रीराग, भैरवराग तथा मेघराग। सर्वमान्य रूप से रागों को छः रूपों में बांटा गया है। इनकी पाँच .पाँच पत्नियाँ है और प्रत्येक राग के आठ-आठ पुत्र है। प्रदर्शित चित्रों में प्रथमतया राग भैरव, राग मालकोश, राग हिण्डोल, राग दीपक, श्री राग, व राग मेघ को प्रदर्शित किया गया है। राग-रागिनियों का मुख्य अन्तर यह है कि राग को ऊँचे स्वर में जबकि रागिनियों को स्त्रियोचित कोमलता के अनुरूप गाया जाता है। उसी के अनुरूप दृश्य रूप में रेखाओं एवं रंगों के माध्यम से दिखाया गया है।
संग्रहालय की सहायक निदेशक, डॉ0 मीनाक्षी खेमका ने प्रदर्शनी का अवलोकन कराते हए विस्तारपूर्वक प्रदर्शित चित्रों के विषय में बताया। राज्य संग्रहालय, लखनऊ में लगभग 150 रागमाला के चित्र है, जिसमें बिकानेर शैली, उत्तर मुगल शैली, बूंदी, आमेर, मालवा, मेवाड़, कोटा, जयपुर, तथा अन्य शैलियों के चित्र है। प्रदर्शित रागमाला के चित्र लगभग 1725 शती में आमेर राजा सवाई जयसिंह के समय में चित्रित की गई थी जिन्होने जयपुर नगर की स्थापना की थी। राग-रागिनी से सम्बन्धित चौपाई तथा दोहा प्रत्येक चित्र पर लिखा हुआ है। रागों के प्रथम दोहे में उससे सम्बन्धित रागिनियों का वर्णन है। बादल, पानी, पर्वत तथा पृष्ठभूमि आदि के दृष्टिकोण से ये चित्र मालवा तथा मेवाड़ शैली के निकटवर्ती प्रतीत होते है। वृक्षों की रचना तथा कमल के फूल पत्ती बसोहली शैली के चित्रों से मिलता जुलता है। भवन के गुम्बज व बुर्जियाँ जयपुर शैली के है। चित्रों में लाल, पीला, सफेद, हरे रंग की प्रधानता है। अधिकतर रंगों का प्रयोग समतल रूप में किया गया है। इन चित्रों के संयोजन मालवा शैली से मिलते है। यहाँ मेघराग कृष्णलीला के रूप में चित्रित किया गया है। एक ही रागिनी के विभिन्न प्रकार के चित्र मिलते है। बहुत सी रागिनी नायिकाभेद की भाँति चित्रित की गयी है। रागमाला में रामकली व मानवती एक ही चित्र का नाम है उसी प्रकार गौरी व मालवा गौरी एक ही नाम है। रागिनी पटमंजरी में विरह को व्यक्त करने के लिए नायिका सूनी सेज को खड़े हुए निहार रही है। रागिनी भैरवी में एक स्त्री प्रातःकाल के पहर में शिव की अर्चना करते हुए अंकित किया गया है और साथ में तानपुरे व पखावज का वादन करते दो परिचारिकाओं को दिखाया गया है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि ने राजस्थानी शैली में चित्रित आमेर रागमाला एवं पहाड़ी शैली में चित्रित रागमाला में मुख्य अन्तर बताते हुये दर्शकों को बताया कि पहाड़ी शैली की रागमाला, क्षेमकरण के वर्गीकरण पर आधारित है। साथ ही उन्होंने प्रदर्शित चित्रों में रागिनी बिलावल, राग भैरव, श्रीराग एवं राग मालकोश पर प्रकाश डालते हुये उसे व्याखयायित किया।
इस अवसर पर राज्य संग्रहालय, लखनऊ की सहायक निदेशक श्रीमती रेनू द्विवेदी, अलशाज फातमी, डा0 विनय कुमार सिंह, श्रीमती रंजना मिश्रा, श्री गौरव कुमार, श्री शारदा प्रसाद त्रिपाठी, श्री प्रमोद कुमार, श्रीमती शालिनी श्रीवास्तव, श्रीमती शशिकला राय, श्रीमती गायत्री गुप्ता, श्री आशुतोष श्रीवास्वत, श्री अजय कुमार यादव एवं श्री बृजेश कुमार यादव एवं लोक कला संग्रहालय के कर्मचारी उपस्थित रहे।