नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गांधीनगर में वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर 13वें सीओपी सम्मेलन का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत दुनिया के सर्वाधिक विविधताओं से भरे देशों में से एक है। उन्होंने कहा कि दुनिया के 2.4 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र के साथ, भारत ज्ञात वैश्विक जैव विविधता में लगभग 8 प्रतिशत का योगदान करता है। प्रधान मंत्री ने जोर देकर कहा कि युगों तक, वन्यजीवों और उनके पर्यावास का संरक्षण भारत के ऐसे सांस्कृतिक लोकाचार का हिस्सा रहा है, जो करुणा और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा, “गांधी जी से प्रेरणा लेकर अहिंसा तथा जीवों एवं प्रकृति के संरक्षण के सिद्धांत को देश के संविधान में उपयुक्त स्थान दिया गया है जो कई कानूनों और विधानों में परिलक्षित है।‘’
प्रधानमंत्री ने भारत के वन क्षेत्रों में वृद्धि का उल्लेख करते हुए कहा कि यह वर्तमान में देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.67 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि किस तरह से भारत संरक्षण, सतत जीवन शैली और हरित विकास के मॉडल के माध्यम से “जलवायु परिवर्तन” की समस्या से निपटने की दिशा में सबसे आगे बढ़कर काम कर रहा है। इस संदर्भ में, उन्होंने इलेक्ट्रिक वाहनों, स्मार्ट शहरों और जल संरक्षण को देश में प्रोत्साहन दिए जाने का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत उन कुछ देशों में से एक है, जहां तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप काम किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने बताया कि किस तरह से कुछ विशेष प्रजातियों के संरक्षण के लिए चलाए गए कार्यक्रमों के उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले हैं। उन्होंने कहा, “भारत ने 2022 की तय तारीख से दो साल पहले ही 2010 में बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल कर लिया था। देश में 2010 में बाघों की संख्या 1411 से बढ़कर 2967 हो चुकी थी”। उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित ऐसे देशों से जहां बाघ बहुलता में पाए जाते हैं, अनुरोध किया कि वे तय मानक प्रथाओं को साझा करने के माध्यम से बाघ संरक्षण के प्रयासों को मजबूत बनाएं। उन्होंने एशियाई हाथियों के संरक्षण के लिए भारत द्वारा की गई पहल का भी उल्लेख किया। उन्होंने हिम तेंदुए, एशियाई शेर, एक सींग वाले गैंडों और सोन चिरैया जैसी संकटापन्न वन्यजीव प्रजातियों की रक्षा के लिए देश में किए जा रहे प्रयासों के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि गिबी को सम्मेलन का शुभंकर बनाकर सोन चिरैया के महत्व को दर्शाया गया है।
उन्होंने कहा कि सम्मेलन का प्रतीक चिन्ह दक्षिण भारत की पारंपरिक कला – कोलम से प्रेरित है, जिसका प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने के संदर्भ में गहरा महत्व है। उन्होंने कहा कि “अतिथि देवो भव” के मंत्र को सम्मेलन की विषय-वस्तु ” प्रवासी प्रजातियां ग्रह को जोड़ती हैं और हम उनका अपने यहां स्वागत करते हैं।” में परिलक्षित किया गया है।
प्रधानमंत्री ने आगामी तीन वर्षों के लिए इस सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए भारत के कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के बारे में विस्तार से बताया।
भारत को प्रवासी पक्षियों के लिए मध्य एशियाई क्षेत्र के प्रमुख मार्ग के एक हिस्से के रूप में देखते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस मार्ग से गुजरने वाले प्रवासी पक्षियों और उनके पर्यावास को संरक्षित रखने के लिए भारत सरकार ने एक प्रवासी पक्षी सरंक्षण राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाई है और इस संदर्भ में अन्य देशों को भी ऐसी कार्ययोजना बनाने में मदद करने का इरादा रखता है। उन्होंने कहा कि भारत मध्य एशियाई फ्लाईअवे क्षेत्र वाले देशों के सक्रिय सहयोग से प्रवासी पक्षियों के संरक्षण को एक नए प्रतिमान पर ले जाना चाहता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत आसियान देश और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन से जुड़े देशों के साथ अपने सहयोग को मजबूत करने का इरादा रखता है। उन्होंने कहा कि यह आईपीओआई पहल के अनुरूप होगा जिसमें नेतृत्व की भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि देश में 2020 तक, समुद्री कछुओं की प्रजातियों के संरक्षण की नीति तथा समुद्री प्रबंधन की नीति लागू कर दी जाएगी। समुद्री स्ट्रैंडिंग प्रबंधन नीति शुरू करेगा, प्रधानमंत्री ने जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे समुद्रों में प्लास्टिक कचरे से होने वाले प्रदूषण को रोका जा सकेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि एकल उपयोग प्लास्टिक पर्यावरण संरक्षण के लिए एक चुनौती है और हम भारत में इसके उपयोग को कम करने के लिए एक मिशन मोड पर हैं।
उन्होंने कहा कि भारत के कई संरक्षित क्षेत्र पड़ोसी देशों के संरक्षित क्षेत्रों के साथ सीमाएं साझा करते हैं। ऐसे में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सरंक्षित क्षेत्र बनाए जाने की दिशा में प्रयास काफी सकारात्मक होंगे। सतत विकास के बारे में सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए, प्रधानमंत्री ने सरकार द्वारा पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के लिए अनुकूल संरचना विकास की नीति दिशा-निर्देश जारी करने का हवाला दिया।
प्रधानमंत्री ने बताया कि किस तरह, “सबका साथ, सबका विकास” की भावना से, देश में वन क्षेत्रों के आसपास रहने वाले लाखों लोगों को संयुक्त वानिकी प्रबंधन समितियों और पर्यावरण विकास समितियों के रूप में एकसाथ लाया गया है और इसे वन और वन्यजीवों के संरक्षण से भी जोड़ा गया है।