New Delhi: The Prime Minister, Shri Narendra Modi, inaugurated Dharohar Bhawan – the new Headquarters building of the Archaeological Survey of India (ASI), – at Tilak Marg in New Delhi today.
Speaking on the occasion, he said that the Archaeological Survey of India has performed significant work over the course of the last 150 years or so.
The Prime Minister emphasized the importance of taking pride in our history, and in our rich archaeological heritage. He said that people should take a lead in knowing about local history, and archaeology of their towns, cities and regions. He said lessons in local archaeology could form part of the school syllabus. In this context, he also mentioned the importance of well-trained local tourist guides, who are familiar with the history and heritage of their area.
He said each archaeological discovery, painstakingly made by archaeologists over long periods of time, has its own story to tell. In this context, he recalled how he and the then French President had travelled to Chandigarh a few years ago, for a first-hand view of archaeological discoveries made by a joint Indo-French team.
The Prime Minister said that India should showcase its great heritage with pride and confidence, to the world.
The new Headquarters building of ASI has been equipped with state-of-the-art facilities, including energy efficient lighting and rainwater harvesting. It includes a Central Archaeological Library with a collection of about 1.5 lakh books and journals.
मैं सबसे पहले आप सबको इस शानदार भवन के लिए और आधुनिक भवन के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। जिस संगठन की आयु 150 साल हो गई हो। यानी यह इंस्टीट्यूट में अपने आप में पुरातत्व का विषय बन गई है और 150 साल में कैसे-कैसे कहां से निकली होगी, कहां पहुंची होगी, कैसे फैली होगी। क्या कुछ पाया होगा, क्या कुछ पनपा होगा। यानी अपने आप में 150 साल एक संस्था के जीवन में बहुत बड़़ा समय होता है।
मैं नहीं जानता हूं कि एएसआई के पास अपने 150 साल के कार्यकाल का भी कोई इतिहास है कि नहीं है। एक पुरातत्वीय काम ये भी करने जैसा होगा अगर नहीं है, तो होगा बहुत अच्छी बात है। कई लोगों ने इस कार्यभार को संभाला होगा। किस कल्पना से शुरू हुआ होगा। कैसे-कैसे उसका विस्तार हुआ होगा। टेक्नोलॉजी ने उसमें कैसे-कैसे प्रवेश किया होगा। ऐसी बहुत सी बाते होंगी और एएसआई के द्वारा हुए काम उसने तत्कालीन समाज पर क्या प्रभाव पैदा किया होगा। उसने विश्व के इस क्षेत्र के लोगों को किस प्रकार से आकर्षित किया होगा। आज भी विश्व में हमारे देश की यह पुरातत्वीय चीजे हैं वे विश्व को जो अनुमान है उसमें से हकीकतों पर ले जाने के लिए बहुत बड़ा संबल देती हैं। और हम जानते हैं कि जैसे-जैसे विज्ञान का विकास हुआ space टेक्नोलॉजी आई। जो पुरानी मान्यताएं थी मानव जीवन के संबंध में और जिसको लेकर के बड़ी कठोरता से संघर्ष चलते थे दो धाराएं चलती थीं इतिहास के जगत में उनको ध्वस्त कर देने का काम टेक्नोलॉजी ने किया है। सरस्वती का आस्तित्व ही न स्वीकारना ये भी एक वर्ग था। लेकिन spaceटेक्नोलॉजी रास्ता दिखा रही है कि नहीं जी ऐसा नहीं था। ये काल्पनिक नहीं था। आर्य बाहर से आए नहीं आए विश्व भर में विवाद रहा है। और कुछ लोग उसके ऐसे चहेते विषयों को लेकर के बैठे हुए हैं ये बड़ा वर्ग है लेकिन जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी की मदद से पुरातत्वीय क्षेत्र में काम हुआ तो एक बहुत बड़ा वर्ग पैदा हुआ है जो कि एक नई चर्चा लेकर के आया है।
मैं समझता हूं कि ये पुराने शिलालेख या कुछ पुरानी चीजें, या कुछ पत्थर, ये निर्जीव दुनिया नहीं है जी, यहां का हर पत्थर बोलता है। पुरातत्व से जुड़ी हुई हर कागज की अपनी एक कहानी होती है। पुरातत्व से निकले हुए हर चीज में मानव की पुरुषार्थ की, पराक्रम की, सपनों की एक बहुत बड़ा शिलालेख अंतः स्मृत होता है और इसलिए पुरातत्व क्षेत्र में काम करने वाले जो लोग होते हैं। ऐसी वीरान भूमि में काम शुरू करते हैं। कई वर्षों तक दुनिया का ध्यान नहीं जाता है। जैसे एक scientist भविष्य को लेकर के अपनी लैब में डूबा रहता है। अब दुनिया के सामने जब जाता है तो चमत्कार के रूप में नजर आता है। पुरातत्व के क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति भी एक वीरान जंगलों में, पहाड़ में, कहीं पत्थरों के बीच में, अपने आपको खोकर के रहता है और दस-दस, बीस-बीस साल वो खप जाता है। पता तक नहीं होता है। और अचानक जब वो कुछ नई चीज लेकर के दुनिया के सामने thesis लेकर के आता है तो विश्व का ध्यान जाता है कि क्या है। और इसलिए हमारे यहां चंडीगढ़ के पास एक छोटा सा टीला, लोगों के लिए वो टीला ही था। लेकिन फ्रांस के कुछ लोग और यहां के कुछ लोग और जीव शास्त्र को जानने वाले लोग पुरातत्व के लोग लग गए और उन्होंने खोज करके ये निकाला कि दुनिया का सबसे पुराना, लाखों साल पुराना जीव का अवशेष इस टीले में उपलब्ध है। और फ्रांस के राष्ट्रपति आए तो उन्होंने मुझे आग्रह किया कि मुझे वहां जाना है जहां मेरे देश के लोगों ने कुछ काम किया है। और मैं उनको लेकर के गया था। कहने का तात्पर्य है कि ये चीजे मान्यताओं से परे जाने के लिए है। नए तरीके से सोचने के लिए एक पुरातत्वविद इस क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति एक बहुत बड़ा बदलाव देता है।
इतिहास को भी कभी-कभी चुनौती देने का सामर्थ्य उस पत्थर से पैदा हो जाता है। जो शायद शुरू में कोई स्वीकार नहीं करता है। लेकिन हमारे देश में कभी-कभी हम इन चीजों से इतने परिचित होते हैं, आदी होते हैं तो कभी-कभी उसका मूल्य भी कम हो जाता है।
दुनिया में जिसके पास कुछ होता नहीं है वो उसको बहुत समेट कर रखता है कि भई मुझे बराबर याद है मैं एक बार American Government के invitation पर एक delegation में अमेरिका गया था। तो itinerary पूछी थी कि कहां जाना चाहेगें, क्या देखनाचाहेंगे, क्या जानना चाहेगें वगैरह सब भरवाते है। तो मैंने लिखा था, मैंने कहा था कि वहां के छोटे से गांव के अस्पताल कैसी होती है। कि वो मुझे देखना है। छोटे से गांव की स्कूल कैसी होती है वो देखना है। और मैं ये लिखा था कि आपकी जो सबसे पुरानी चीज हो जिस पर आप गर्व करते हैं ऐसी किसी जगह पर मुझे ले जाइए। जब मुझे ले गए वो शायद Pennsylvania state में ले गए थे। तो एक बड़ा खंड था वो मुझे दिखाया और बड़े गर्व से कह रहे थे वो चार सौ साल पुराना है। उनके लिए ये बहुत पुराना और गर्व का विषय था। हमारे यहां कोई दो हजार, पांच हजार साल के बाद अच्छा–अच्छा होगा। यानी ये जो हमारा cut off है। इसने हमारा बहुत नुकसान किया है।
देश आजाद होने के बाद इस मन:स्थिति से बाहर आना चाहिए था लेकिन दुर्भाग्य से एक ऐसी सोच ने हिन्दुस्तान को जकड़ कर रखा है। कि जो हमारे पुरातन के गर्व को गुलाम मानता है। और मैं मानता हूं कि हमें जब तक हमारी इन विरासत पर हमारी इस धरोहर पर गर्व नहीं होगा तो इस धरोहर को संजोने, संवारने का मन भी नहीं बनता है। किसी चीज को संवारने का मन तब होता है जब गर्व होता है। वरना वो ऐसा ही एक टुकड़ा होता है। मैं जब छोटा था तो मेरा एक सौभाग्य रहा, मैं इस गांव में पैदा हुआ हूं। जिसकाliving history है। सदियों से निरंतर मानव व्यवस्था विकसित रही है और Hiuen Tsang ने भी लिखा था कि वहां बौद्ध भिक्षुओं की एक बहुत बड़ी यूनिवर्सिटी हुआ करती थी। और वो सारी चीजें वहां है। लेकिन हमारे गांव में एक जब हम पढ़ते थे तो एक टीचर थे… वो हमको समझाते थे कि आप कहीं पर भी जाते हैं कोई भी पत्थर जिस पर कुछ न कुछ काम हुआ है। ऐसा दिखता है तो उसको इकट्ठा करके स्कूल के एक कोने में डाल दिजिए। ऐसा लाकर के छोड़ दीजिए। और हम बच्चों को आदत हो गई थी कि कहीं ऐसी चीज नजर आती है जिस पर पत्थर पर दो अक्षर भी लिखे नजर आते हैं तो उठा करके लाते थे उस कोने में डाल देते थे। खैर अब तो मुझे मालूम नहीं बाद में उसका क्या हुआ लेकिन बच्चों में आदत लग गई थी। लेकिन तब मुझे समझ आया था कि जो दिखने वाला पत्थर है। जिसका कोई हम ऐसे ही रोड पर पड़ा हुआ है उसका भी कितना मूल्य होता है। एक शिक्षक की जागरूकता थी जिसने ये संस्कार दिए। और तब से जाकर के अंर्तमन में एक मन के बैकग्राउंड में ये चीजे पड़ी हुईं है और उसको हम करते रहे।
मुझे बराबर याद है एक अहमदाबाद में डॉ. हरि भाई गोधानी रहते थे। वे तो मेडिकल प्रैक्टिशनर थे तो इसी एक स्वभाव के कारण जब मैंने उनका सुना था तो मैं उनको मिलने गया। उन्होंने कहा देखिए भई मैंने अपने जिंदगी की 20 फिएट कार, तो उस समय फिएट कार हुआ करती थी। ये नई-नई गाडि़या तो होती नहीं थी। मैंने 20 गाडि़या तबाह कर दी हैं। बोले मैं Saturday Sunday मेरी फिएट कार लेकर के चल पड़ता हूं। और जंगलों में जाता हूं, पत्थरों के बीच चला जाता हूं। कच्चे रास्ते होते हैं एक साल से ज्यादा मेरी गाड़ी चलती नहीं है। और मैं मानता हूं कि Individual व्यक्ति का इतना बड़ा कलेक्शन शायद ही बहुत कम लोगों के पास होगा। मैंने उस समय जो देखा था इतना उनके पास कलेक्शन था Archaeology का। स्वयं मेडिकल प्रोफेशनल थे और मुझे उन्होंने कुछ स्लाइडें दिखाईं। मेरी उम्र बहुत छोटी थी लेकिन जिज्ञासा थी, उसमें उन्होंने मुझे एक पत्थर का carving दिखाया। जिसमें एक प्रेगनेट वूमन, और उनका कहना था कि शायद वो आठ सौ साल पुराना वो कृति है। अब प्रेगनेट वूमन का सर्जरी किया हुआ वन साइड कट करके उसका पेट दिखाया गया था। चमड़ी के कितने लेयर थे वो पत्थर पर तराशा हुआ था। पेट में बालक किस रूप में सोया हुआ है वो पत्थर से तराशा हुआ था।
मुझे कोई बता रहा था कि मेडिकल सांइस ने ये खोज कुछ ही सदियों पहले किया है। ये हमारे एक शिल्पकार करीब आठ सौ साल पहले जो है पत्थर में जो चीजें तराशी थीं। बाद के विज्ञान ने इसको prove किया कि हां चमड़ी के इतने लेयर होते हैं। बालक मां के गर्भ में इस प्रकार से होता है। अब हम कल्पना कर सकते हैं कि हमारे यहां ज्ञान कितने नीचे तक पहुंचा होगा। और किस प्रकार से काम हो ये slide उन्होंने मुझे दिखाई थी।
यानी हमारे पास ऐसी विरासत है इसका मतलब उस जमाने में कोई न कोई तो ज्ञान होगा वर्ना उनको कैसे मालूम होता कि चमड़ी के इतने लेयर होते हैं और वो पत्थर पर कैसे तराशा होता। मतलब वहां से विज्ञान हमारा कितना पुराना होगा। उसका ज्ञान हमें प्राप्त होता है। यानी अपने आप में एक ऐसी सामर्थ्यवान सृष्टि है ये जिसका गर्व करते हुए उसका बारीकी से खोजते हैं |
दुनिया में एक अच्छी बात हम महसूस करते हैं जो भी लोग विश्व में इन चीजों में रूचि रखते हैं। वहां पर एक जनभागीदारी और जनसहयोग इन क्षेत्रों में बहुत होता है। आप दुनिया में किसी भी monument में जाइए। रिटायर्ड लोग सेवा भाव से यूनिफॉर्म पहन कर वहां आते हैं, गाइड के रूप में काम करते हैं, ले जाते हैं, दिखाते हैं, संभालते हैं, समाज उठाता है ये जिम्मेवारी, हमारे देश में अब ये स्वभाव बनाना है हमनें जो सीनियर सिटिजनस हैं उनकी ऐसी क्लब बना करके इस चीज को हम कैसे percolate करें। समाज की भागीदारी से हमारी इस धरोहर को बचाने का काम अच्छा होगा बनिस्बत कि सरकार का कोई मुलाजिम खड़ा हो जाए और होगा। तरीका वही होता है, कोई कितना ही बढि़या चौकीदार होगा बगीचे को नहीं संभाल सकता। लेकिन वहां आने वाले नागरिक तय करें कि इस बगीचे का एक पौधा भी टूटने नहीं देना है। होगा उस बगीचे को सदियों तक कुछ नहीं होता है। जनभागीदारी की एक ताकत होती है। और इसलिए हम अगर हमारे समाज जीवन में इन चीजों को institutionalize करें लोगों को जो इस प्रकार की सेवाएं देते हैं उनको निमंत्रित करे। अपने आप में बहुत बड़ा काम होगा।
हमारे यहां corporate world है उनकी मदद ली जा सकती है। उनके मुलाजिमों को कह सकते हैं। कि भई अगर आपको सेवा भाव से 10 घंटे, 15 घंटे अगर काम करना है महीनें में। ये monument है, उसको संभालने में आइए, मैदान में आइए। धीरे-धीरे इन चीजों की कीमत बनती है।
दूसरा एक क्षेत्र है जिस पर सोचने की आवश्यकता मुझे लगती है। मान लीजिये हम तय करें और ये जरूरी नहीं है कि सिर्फ एएसआई वाले करें tourism department जुड़ सकता है, culture department जुड़ सकता है। सरकार के और भी विभाग जुड़ सकते हैं। राज्य सरकारों के विभाग जुड़ सकते है।
लेकिन मान लीजिये हम तय करें कि हम देश में सौ शहर पकड़े। 100 cities जो इस धरोहर की दृष्टि से बहुत मूल्यवान है। tourismके क्षेत्र से बहुत अच्छे destination हैं। और उस शहर के बच्चों के जो सेलेबस होते हैं उनको उनके शहर के सेलेबस में पढ़ाई में उस शहर का Archaeological विषय पढ़ाया जाए। उस शहर की history पढ़ाई जाए। तो जाकर के पीढ़ी दर पीढ़ी जिस शहर में वो हुआ है। अगर आगरा के बच्चे के सेलेबस में ताजमहल की पूरी कथा होगी तो फिर कभी delusion diversion नहीं आएगा। वो पीढ़ी दर पीढ़ी तैयार होते जाएंगे उसी क्षमता के साथ, सामर्थ्य के साथ तैयार होंगे।
दूसरा institutionally ऐसे सौ शहर में, मान लीजिए हम उसी के शहर का ऑन लाइन सर्टिफिकेट कोर्स शुरू कर सकते हैं क्या। और उसमें जो उतीर्ण होते हैं ताकि उनको कर पता चला एक-एक बारीकी। साल याद होगी और फिर हम the best quality tourist guideतैयार सकते हैं।
मैंने कभी एक बार टीवी चैनल वालों से बात की थी तब तो मैं प्रधानमंत्री नहीं था। मैंने उनसे एक बार बात की मैंने कहा भाई येtalent hunting का काम करते हैं। गाने वाले बच्चे, नाचने वाले बच्चे और बहुत ही अच्छा Perform करते हैं। देश के बालकों में एक ऐसी talent है वो टीवी के माध्यमों से हमकों पता चलने लगा। मैंने कहा कि Best guide इसकी Talent Competition कर सकते हैं क्या। और उसको कहा जाए कि वो screen पर जिस शहर का वो गाइड के रूप में काम करना चाहता है वो लाकर के दिखाए। गाइड के वो अपने बढि़या से कोस्टयूम पहन कर के आए। languages को सीखें और कोई कैसे tourist guide के रूप में दुनिया को दिखाए, काम्पिटिशन की जाए। इससे फायदा होगा ये तो हिन्दुस्तान के tourism को भी बढ़ावा मिलेगा, प्रचार होगा, धीरे-धीरे गाइड नाम के लोग तैयार होंगे। और बिना गाइड के इन चीजों को चलाना बड़ा मुश्किल होता है।
लेकिन जब ज़हन में भर जाता है इसके पीछे येhistory है तो उसके प्रति एक लगाव होता है। आपको कोई कमरे में बंद कर दे ओर कोई व्यक्ति कमरे में बंद हो और कमरे के दरवाजे पर एक छोटा सा छेद किया जाए और अंदर से कोई हाथ बाहर निकाले और एक लंबी कतार लगाई जाए और सबको कहा जाए कि इनको शेकहैंड कीजिए। कौन इंसान है पता नहीं है। छेद किया है हाथ लटका हुआ है आप जा रहे है तो ऐसा ही लगेगा जैसे यहां पर डेडबॉडी को हाथ लगा कर चले जा रहे है। लेकिन जब आपको बताया जाए कि अरे भई ये तो सचिन तेंदलुकर का हाथ है तो आप छोड़ेगें ही नहीं। यानी जब जानकारी होती है। तो अपनापन की ताकत बढ़ जाती है। हमारे इन चीजों की धरोहर की जानकारी होना बहुत जरूरी है।
मैं एक बार कच्छ के सामने रेगिस्तान में develop करना चाहता था। अब रेगिस्तान में टूरिज्म डेवलप करना एक बड़ी चुनौती होती है। तो शुरू में मैंने वहां के बच्चों को ट्रेंड किया गाइड के रूप में और उनको सिखाया कि नमक कैसे बनता है, लोगों को सिखाना है। रेगिस्तान में नमक क्या होता है। और आप हैरान होगें जी आठवीं, नवीं कक्षा के बच्चे, बच्च्यिां इतने बढि़या ढंग से किसी को भी समझा पाते है कि इलाका कैसा है, यहां पर किस प्रकार से नमक की खेती होती है, process क्या होती है। सबसे पहले कौन आए थे। किसी अंग्रेज ने आकर के कैसे……. तो बहुत बढि़या ढंग से समझाते थे। लोगों को उसमें interest लगने लगा। उन बच्चों को रोजगार मिल गया। मैं तो हैरान हूं जी, टेक्नोलॉजी बदल गई है। माफ करना आप लोग मुझे, मैं कुछ बाते बताऊंगा, बुरा मत मानिए आप लोग। दुनिया कैसी चल रही है जी आज स्पेस टेक्नोलॉजी से हजारों मिल ऊपर से दिल्ली की किस गली में कौन सा स्कूटर पार्क किया हुआ है उसका नंबर क्या है वो फोटो ले सकते हैं आप। लेकिन monument में बोर्ड पर में लिखा है कि यहां फोटो खींचना मना है। अब वक्त बदल चुका है जी, टेक्नोलॉजी बदल चुकी है।
मैंने एक बार जो हमारे यहां सरदार सरोवर डेम बन रहा था। उस टाइम पर लोग आना चाहते थे कभी-कभी overflow होता है लोग देखना चाहते थे। वहां पर बड़े-बड़े बोर्ड लगे थे। फोटो खींचना मना है, वगैरह, वगैरह तो मैंने उल्टा किया। मैं मुख्यमंत्री था तो कर सकता था। मैंने कहा कि यहां जो फोटो बढि़या खींचेगा उसको इनाम दिया जाएगा। और शर्त ये थी कि वो फोटो अपलोड करनी होगी अपनी वेबसाइट पर। आप हैरान होंगे जी लोगों की भागीदारी से लोग फोटो खींचने लगे। लोग फोटो अपना ऑनलाइन डालने लगे। और फिर मैंने कहा कि यहां अब टिकट रहेगा। जो भी डेम देखने के आए उसको टिकट लगेगा। और टिकट में रजिस्ट्रेशन होगा। फिर मैंने कहा जब पांच लाख होंगें डिजिटल में पांच लाखवां जिसका नंबर होगा उसको सम्मानित किया जाएगा। और मेरे लिए हैरानी थी कि जब पांच लाखवां नंबर था तो कश्मीर के बारामूला का एक कपल पांच लाखवां हुआ था जी। तब पता चला कि कितनी बड़ी ताकत होती है जी। और उसको हमने सम्मानित किया था। तो ये जो पुराने, वहां भी मैंने देखा कि हमारे कुछ बच्चों को तैयार किया आठवीं, दसवीं के थे मैंने कहा गाइड के नाते काम करो फिर ये डेम बनना कब शुरू हुआ, कैसे परमिशन मिली, कितना सीमेंट उपयोगा हुआ, कितना लोहा हुआ, कितना पानी इकट्ठा होगा इतना बढि़या ढंग से Tribal बच्चे है। इतने बढि़या ढंग से वो गाइड का काम करते थे। मुझे लगता है कि हमारे देश में कम से कम सौ शहरों में जो भी हम तय करें। वैसे इस प्रकार की नई पीढ़ी को हम तैयार करें। जो गाइड के प्रोफेशन के लिए धीरे-धीरे आगे आएं। जिनकी उंगलियों पर इतिहास पनपता हो, इतिहास ठहर गया हो जिनकी उंगलियों पर, ऐसा अगर हम कर पाते हैं तो आप देखिए कि देखते देखते ही ये भारत के पास जो महान विरासत है। हजारों साल की हमारी जो ये गाथा है। दुनिया के लिए अजूबा है जी, और हमें दुनिया को ओर कुछ देने की जरूरत नहीं है। ये जो हमारे पूर्वज छोड़ कर गए हैं। सिर्फ उसको दिखाना मात्र है। हिन्दुस्तान के टूरिज्म को कोई रोक नहीं सकता। और हम ऐसे संतान तो नहीं है कि हमारे पूर्वजों के पराक्रम को हम भुला दें। ये हम लोगों को दायित्व है। कि हमारे पूर्वजों की जो विरासत है उस विरासत को हम दुनिया के सामने प्रस्तुत करें, बड़े गर्व के साथ प्रस्तुत करें, बड़ी शान से प्रस्तुत करें, और विश्व को इस महान धरोहर को छूने का मन कर जाए, उसकी पूजा करने की इच्छा हो जाए। इस आत्म विश्वास के साथ हम चल पड़ें। इसी अपेक्षा के साथ इस धरोहर के भवन से वही भावना प्रज्वलित हो। इस भावना के साथ मैं बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।