नई दिल्ली: क्या भूमि अधिग्रहण बिल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अलग-अलग रास्ते पर हैं? भूमि अधिग्रहण बिल पर विपक्ष और विभिन्न संगठनों के जबर्दस्त विरोध के बावजूद मोदी यहां इस पर पीछे हटने को कतई तैयार नहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने प्रस्तावित बिल पर किसानों की राय जानने के लिए कमिटी बना दी है।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण बिल पर किसानों का सुझाव जानने के लिए मंगलवार को आठ सदस्यीय एक समिति का गठन किया। समिति के समन्वयक पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यपाल मलिक हैं और यह समिति जमीन अधिग्रहण पर किसानों और अन्य संगठनों से मशविरा करेगी। समिति में मलिक समेत सात दलों के सांसद हैं और इसमें एक चार्टर्ड अकाउंटेंट भी हैं। समिति के अन्य सदस्यों में सांसद भूपेंद्र यादव, रामनारायण डुडी, हुकुमदेव नारायण, राकेश सिंह, संजय धोत्रे और सुरेश अंगाडी के अलावा चार्टर्ड अकाउंटेंट गोपाल अग्रवाल शामिल हैं।
बिल में प्रस्तावित संशोधनों पर कई किसान संगठनों ने चिंता जताई है और आशंका जताई है कि यह किसान हितों के खिलाफ है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह अभी तक ऐसे 27 संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर चुके हैं और कुछ और मुलाकातें होने वाली हैं।
सरकार का दावा है कि जमीन अधिग्रहण अध्यादेश की जगह लेने वाला संशोधित बिल ‘किसानों के पक्ष’ में है, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे ‘किसान विरोधी’ करार दिया है और इसका संसद के दोनों सदनों में विरोध किया है।
सूत्रों के अनुसार, संसद के बजट सत्र के दौरान बीजेपी संसदीय दल की मंगलवार सुबह हुई पहली बैठक में मोदी ने कहा, ‘भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर बचाव में आने की जरूरत नहीं है। हम जो कानून ला रहे हैं, वह किसानों और गरीबों के हित में है। इस मुद्दे पर बनाए गए ‘मिथ’ की हवा निकालनी चाहिए।’ उनके अनुसार, प्रधानमंत्री ने सांसदों से कहा कि पूर्व की सरकार की गलतियों को सुधारने की जरूरत थी और बीजेपी विधेयक में किसान विरोधी रुख कभी नहीं अपना सकती है।