नई दिल्ली: सम्माननीय प्रधानमंत्री ओली जी, संस्कृति और पर्यटन मंत्री रविंदर प्रसाद अधिकारी जी, पशुपति Area Development Trust के सदस्य डॉ. प्रदीप ढकल जी, यहां उपस्थित अन्य सम्माननीय अतिथिगण, दूर-दूर से यहां पधारे भोले बाबा के भक्तगण और नेपाल के मेरे प्यारे भाईयों और बहनों।
बाबा विश्वनाथ की काशी की धरती का एक बेटा आज पशुपतिनाथ के प्रांगण में जुटे आप सबको आदरपूर्वक नमन करता है। आदरणीय ओली जी ने जो कहा कि नेपाली भाषा और हम गुजरात वालों को समझना बड़ा सरल होता है।
भारत और नेपाल की मैत्री, जब अटल जी का स्वर्गवास हुआ तो हम जानते हैं कि इस दुख की घड़ी में जब कोई अपना स्वजन आप तक पहुंचता है, तो आपके मन को एक बहुत राहत मिलती है। अटल जी के स्वर्गवास के कुछ ही पल में कोली जी ने मुझे फोन करके इस दुख की घड़ी में सांत्वना दी, यह औपचारिकता नहीं थी। एक अपनेपन का स्वाभाविक प्रकटीकरण था और अटल जी के प्रति जिस आदर और भाव के साथ विदेश मंत्री स्वयं उनकी अंत्येष्टि में आए। और आज अटल जी की कविताओं का नेपाली भाषा में अनुवाद करने का नेपाल का निर्णय है। मैं समझता हूं कि किसी भी महापुरूष की स्मृति उसके संदेश को हम कैसे संभालते हैं, उसने जो ज्ञान परोसा है उस ज्ञान को हम आगे की पीढि़यों तक कैसे पहुंचाते हैं। उसको हम जीवन में कितना उतार पाते हैं। यह उसकी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होती है और नेपाल ने अटल जी का यह जो चिंतन था, उनका जो ज्ञान था, जिसको उन्होंने कविता में ढाला था। तत्कालीन परिस्थतियों को देखने का एक नजरिया प्रस्तुत किया। उन कविताओं को नेपाल की आने वाली पीढि़यों तक पहुंचाने का जो संकल्प किया है, इस उत्तम से उत्तम श्रद्धांजलि देने के लिए मैं आदरणीय ओली जी का, नेपाल की सरकार का, नेपाल के नागरिकों को अंत:करण पूर्वक आभार व्यक्त करता हूं।
हमारे सांस्कृतिक संबंध हैं, सदियों पुराने संबंध हैं लेकिन यह निश्चित है कि दुनिया के किसी भी देश के साथ संबंध तब तक मजबूत नहीं होते हैं, तब तक वो दीर्घकालीन नहीं होते हैं, जब तक people to people ताकत नहीं बढ़ती। सिर्फ काठमांडू और नई दि ल्ली मिल जाए, सिर्फ काठमांडू और नई दि ल्ली की सरकार मिल जाए, इतने से बात बनती नहीं है, जब तक हर नेपाली, हर हिन्दुस्तानी एक-दूसरे से मिलता-जुलता नहीं है ताकत बनती नहीं है। और आज people to people शक्ति को बढ़ावा देने का उत्तम काम नेपाल-भारत मैत्री का प्रतीक इस धर्मशाला का यहां लोकार्पण हो रहा है।
जब भी मैं काठमांडू आता हूं तो यहां के लोगों का स्नेह और अपनापन मैं बहुत हृदय से feel करता हूं। न सिर्फ मेरे लिए बल्कि भारत के प्रति भी यही आत्मीयता नेपाल में नजर आती है। लगभग चार वर्ष पहले मुझे सावन माह के अंतिम सोमवार तक यहां पशुपतिनाथ जी के चरणों में आ करके पूजा का अवसर मिला था। कुछ महीने पहले जब मैं यहां आया था, तो मुझे पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ और जानकी धाम तीनों बड़े तीर्थों पर जाने का सौभाग्य मिला। मैं भक्तिभाव से गदगद हूं, क्योंकि आज बाबा पशुपतिनाथ ने मुझे फिर एक बार दर्शन दिया है, सीधा उनके चरणों में आने का मुझे सौभाग्य मिला है। यह सिर्फ मेरी भावना ही नहीं बल्कि भारत और दुनिया के करोड़ों आध्यात्मिक जीवन को स्वीकार करने वाले, धार्मिक परंपराओं को स्वीकार करने वाले, प्रभु भक्ति में लीन रहने वाले शिव भक्तों की इच्छा होती है कि जीवन में कम से कम एक बार पशुपतिनाथ के दर्शन करे। भारत और नेपाल के बीच शिव भक्ति और शिव भक्तों का सम्बन्ध इतना मजबूत है कि न तो समय का इस पर असर हुआ और न ही दूरी का असर हुआ और न ही कठिन रास्तों का असर हुआ। काठमांडू और कन्याकुमारी के बीच हजारों किलोमीटर का फासला है, लेकिन करीब डेढ़ हजार वर्ष पहले से ही तमिलनाडु में पशुपतिनाथ की गाथाएं गूंज रही है।
शैव कुरूवर की थेवरम में भगवान पशुपतिनाथ का अहम स्थान है, उत्तम स्थान है। और बाबा पशुपतिनाथ ने सुदूर दक्षिण भारत के अपने अनंत भक्तों को पीढ़ी-दर-पीढ़़ी सैकड़ों साल से गणेश और कार्तिक की तरह अपने आप इस मंदिर में स्थान दिया है। और इसलिए आज मेरे परम मित्र प्रधानमंत्री ओली जी के साथ मिलकर नेपाल-भारत मैत्री पशुपति धर्मशाला को विश्वभर के यात्रियों के लिए, टूरिस्टों के लिए, शिव भक्तों के लिए समर्पित करते हुए मेरी प्रसन्ता की कोई सीमा नहीं है। दुनियाभर से यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सवा सौ करोड़ भारतवासियों की तरफ से पशुपतिनाथ जी के चरणों में यह एक छोटी सी भेंट देने का सौभाग्य मुझे मिला है।
पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ और जानकी धाम नेपाल की विविधता को एकता में पिरोते हैं साथ ही वे भारत के साथ रिश्तों की डोर को भी हर पल नई मजबूती देते हैं। काशी और काठमांडू को बाबा विश्वनाथ और पशुपतिनाथ जोड़ते हैं। और मैं सोमनाथ की धरती से निकला हूं। सोमनाथ से विश्वनाथ, विश्वनाथ से पशुपतिनाथ इसी प्रकार माता सीता और प्रभु श्री राम का रिश्ता जनकपुर को अयोध्या से तो भगवान जगन्नाथ और मुक्तिनाथ मस्तंग को पुरी से जोड़ते हैं। सुंदर बागमती घाटी के बीच में विराजे भगवान पशुपतिनाथ एक तरफ धौलागिरी और अन्नपूर्णा और दूसरी तरफ सागरमाथा और कंचन जंगा। यह दुनियाभर के शिव भक्तों और पर्यटकों को एक सुंदर और अद्भूत अनुभव देता है। काठामांडू की यह पवित्र धरती हिन्दू और बोध आस्था की एक प्रकार से संगम स्थली है। यह दोनों मत किस प्रकार एक दूसरे के प्रति समावेशी है, इनके मानने वालों के बीच किस प्रकार का मेल-मिलाव है। काठमांडू की गलियों और पगडंडियों से गुजरते हुए अनुभव हर कोई यात्री कर सकता है। हर किसी को अनुभव होता है। भगवान पशुपतिनाथ का यह धाम भी बहुत आस्था के अनेक केंद्रों से घिरा हुआ है। बुद्ध भिक्षुओं के कण से गुत्था और अभी प्रदीप जी बता रहे थे – ओम मणि पद्मे हम – और शिव भक्तों के मुख से ओम नम: शिवाय का जाप कब एकाकार हो जाते हैं पता तक नहीं चलता। यह परंपरा भी नेपाल और भारत के बीच रिश्तों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। नेपाल के लुम्बिनी ने दुनिया को गौतम दिये, तो भारत के बौद्धगया ने बुद्ध दिये हैं। गौतम बुद्ध का दिखाया रास्ता आज अतिवाद और आतंकवाद जैसी दुनिया की अनेक समस्याओं को हल करने का प्रेरणास्रोत है।
भारत और नेपाल के बीच आस्था, अस्मिता और अपनेपन की ऐतिहासिक साझेदारी है। यह हमारी अटूट शक्ति है, अनमोल खजाना है, अनमोल विरासत है। हजारों वर्षों का हमारा गौरवपूर्ण इतिहास, वसुधैव कुटुम्बकम् के प्रति हमारी निष्ठा वो मूल्य है जो हम दोनों देशों को दुनिया की अनेक सभ्यताओं से अलग करते हैं। अभी ओली जी बता रहे थे – सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः। हर किसी के कल्याण की कामना, सिर्फ अपनों की नहीं, सर्वे भवन्तु सुखिनः। यह दोनों देशों की मूल धारणा है। और इसी समृधि से निकला आत्मविश्वास ही विश्व में हमारा स्थान सुनिश्चित करेगा। दोनों देशों का भविष्य इसी भावना से तय होगा। आज जो भी हम हासिल कर पा रहे हैं वो तभी सार्थक होगा, जब सबका विकास होगा, विशेषतौर पर उसका जो वंचित है, पीडि़त है, शोषित है। आज भारत आर्थिक विकास की नई ऊंचाईयों को छू रहा है। Reform, perform, transform के रास्ते पर चलते हुए विकास के आसमान पर इसे धुव्र तारे की तरह आज चमक रहा है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के जिस मंत्र को ले करके हम काम कर रहे हैं, उसमें हमारे नेपाली भाईयों और बहनों का भी उतना ही स्थान है, ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात जब करते हैं तो यह सबके लिए हैं। पड़ोसियों के काम आना और सुख समृधि के लिए साथ चलना हमारी पंरपरा का हिस्सा रहा है, उसी के अनुरूप बाबा पशुपतिनाथ से आशीर्वाद दोनों देशों का यही रिश्ता भी आगे बढ़ रहा है।
हर हिन्दुस्तानी को यह देखकर प्रसन्नता होती है कि नेपाल में आज राजनीतिक स्थिरता है। इसी का परिणाम है कि प्रगतिपथ पर नेपाल ने अपनी गति तेज की है। मैं यहां मौजूद नेपाल के प्रधानमंत्री जी को, नेपाल के जन-जन को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आप सभी के जीवन को मंगल बनाने के लिए एक विश्वास पात्र मित्र के रूप में भारत की सद्भावना और सहयोग हमेशा, हमेशा, हमेशा आपके साथ है। बाब पशुपतिनाथ का आशीष सदा इस भूमि पर बना रहे और नेपाल-भारत मैत्री पर उनकी कृपा दृष्टि रहे, यही मेरी प्रार्थना है। आस्था, सभ्यता और संस्कृति की यह निर्बाध गति भारत और नेपाल के करोड़ों जनों के जीवन को समृद्ध करती रही है। इसी कामना के साथ भारत-नेपाल मैत्री धर्मशाला, और मैं मानता हूं कि यह तो इमारत नहीं है सिर्फ वहां कोई एक मुसाफिर आएगा, कोई यात्री आएगा, वो वहां रुकेगा तो वो सिर्फ ठहरने की जगह मात्र नहीं है। हर पल भारत-नेपाल मैत्री के शर्मभाव उसके मनमंदिर में गूंजते रहेंगे और अपने घर में लौटेगा तब भी वो भारत-नेपाल मैत्री के चिरंजीव भाव अपने मन में ले करके चला जाएगा। यह अपने आप में प्रतीक होते हैं, व्यवस्थाएं भले हो, लेकिन वो एक जीवन शक्ति देते हैं और यह धर्मशाला वो प्रतीक है, जो हमें एक शक्ति देता है। यह व्यवस्था सिर्फ राहदारी के लिए यात्री के लिए टूरिस्ट के लिए रात भर बिताने की जगह है इतना नहीं है। यह नेपाल के टूरिज्म को बल देता है। यह व्यवस्थाएं नेपाल में आने वाले टूरिस्टों के लिए एक अतिरिक्त जगह का अवसर देता है। सामान्य आय वाला व्यक्ति भी ऐसी व्यवस्थाओं का लाभ ले जाता है, तब यह इमारत सिर्फ इमारत नहीं रहती है, सोने-बैठने की सिर्फ जगह नहीं बन जाती हैं, लेकिन यह एक ईकाई नेपाल की टूरिज्म से जुड़ी हुई आर्थिक गतिविधि को एक नई ऊर्जा देती है, नई ताकत देती है, नई शक्ति देती है। और टूरिज्म एक ऐसा क्षेत्र है, जहां कम से कम पूंजी निवेश से अधिकतम लोगों को रोजगार देने की संभावना है और जब ऐसी व्यवस्थाएं सामान्य जन के लिए उपलब्ध होती है, तो टूरिस्टों को भी आने का मन करता है, उनको भी यहां रूकने का मन करता है और जब टूरिस्ट रूकता है तो जरूर कुछ न कुछ दे करके जाता है।
मुझे विश्वास है कि यह नेपाल-भारत मैत्री पशुपतिनाथ धर्मशाला, यह सिर्फ इमारत के रूप में नहीं, एक राहदारी के रूकने की जगह के रूप में नहीं, लेकिन एक मैत्री का स्तंभ, एक मैत्री, एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था को गति देने वाली ऊर्जा का केंद्र बनेगा इसी एक पूरे भरोसे के साथ मैं फिर एक बार आदरणीय प्रधानमंत्री जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं, क्योंकि बिम्सटेक इतना बड़ा महत्वपूर्ण event था और वो भी एक उत्तम तरीके से आज काठमांडू की धरती से दुनिया को संदेश गया है। विश्व की 22 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाली बिम्सटेक की summit नेपाल की धरती हो, पशुपतिनाथ भगवान के चरणों में हो, तो यहां से किए गए संकल्प सिद्ध हुए बिना रहते नहीं है। और इसलिए मुझे विश्वास है कि ओली जी के नेतृत्व में काठमांडू की धरती से हिमालय की गोद से निकले हुए संकल्प इस पूरे भू-भाग को और उस पूरे क्षेत्र को सुख और शांति की दिशा में गति देने के लिए एक बहुत बड़ी निर्णायक भूमिका अदा करेंगे और इस महत्वपूर्ण काम को आदरणीय ओली जी ने निभाया है, इसके लिए भी वे साधुवाद के पात्र है, अभिनंदन के अधिकारी हैं और इसलिए मैं उनको भी बहुत-बहुत बधाई देता हूं, उनका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। मैं फिर एक बार इस समारोह के लिए आपने समय निकाला और हमें साथ-साथ मिल करके हमें आज एक नजराना देने का सौभाग्य मिला, हिन्दुस्तान में भी इस व्यवस्था के साथ लोग खुश होंगे, नेपाल के लोग भी इस व्यवस्था से खुश होंगे और इस व्यवस्था से एक नई आर्थिक गति देने का अवसर भी एक पैदा होगा, इसी एक भावना के साथ मैं फिर एक बार भगवान पशुपतिनाथ के चरणों में अपना सिर झुका करके, प्रणाम करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं, बहुत-बहुत धन्यवाद।