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PM’s speech at foundation stone laying ceremony of Kedarpuri Reconstruction Projects in Kedarnath, Uttarakhand

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New Delhi: देवभूमि उत्तराखंड का सभी भाई-बहनों ते मेरा सादर नमस्‍कार। बाबा केदार को आशीर्वाद सबु पर बनियो रहो, इन्‍ही कामना छै।

कल ही देश और दुनिया में दीपावली का पावन पर्व मनाया गया। इस दीपावली के पावन पर्व निमित्‍त देश और दुनिया में फैले हुए हमारे सभी बंधु-भगिनी को केदारनाथ की इस पवित्र धरती से अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।

गुजरात जैसे कुछ राज्‍य हैं, जहां आज नववर्ष प्रारंभ होता है। नूतन वर्ष अभिनंदन, साल मुबारक। विश्‍वभर में फैले हुए वो सभी परिवार जो आज नूतन वर्ष का प्रारंभ करते हैं, उनको भी मेरी तरफ से नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। आप सबको नूतन वर्ष अभिनंदन, साल मुबारक। फिर एक बार बाबा ने मुझे बुलाया है। फिर एक बार खिंचता चला आया बाबा के चरणों में। आज फिर पुराने लोग मिल गए मुझे। उन्‍होंने जो कुछ मेरे विषय में सुना होगा, वो आज मुझे पुन: स्‍मरण करा रहे थे।

कभी ये गरुड़ चट्टी, जहां पर जीवन के महत्‍वपूर्ण वर्ष बिताने का मुझे सौभाग्‍य मिला था। वो पल थे जब इस मिट्टी में रम गमाया गया था मैं। लेकिन शायद बाबा की इच्‍छा नहीं थी कि मैं उसके चरणों में जीवन व्‍यतीत करू और बाबा ने मुझे यहां से वापस भेज दिया। और शायद बाबा ने तय किया होगा एक बाबा क्‍या, सवा सौ करोड़ बाबा हैं देश में, कभी उनकी तो सेवा करो। और हमारे यहां तो कहा गया है- जन सेवा ही प्रभु सेवा है। और इसलिए आज मेरे लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों की सेवा, यही बाबा की सेवा है, यही बद्री विशाल की सेवा है, यही मंदाकिनी की सेवा है, यही गंगा मां की सेवा है। और इसलिए‍ आज फिर एक बार यहां से संकल्‍पबद्ध हो करके, यहां से नई ऊर्जा को प्राप्‍त कर-करके, भोले बाबा के आशीर्वाद ले करके पूर्ण पवित्र मन से, दृढ़ संकल्‍प से 2022; भारत की आजादी के 75 साल; हर हिन्‍दुस्‍तानी का संकल्‍प, हर हिन्‍दुस्‍तानी के दिल में दुनिया में हिन्‍दुस्‍तान को सिरमौर पहुंचाने का इरादा, बाबा के आशीर्वाद से हर हिन्‍दुस्‍तानी में वो चेतना जगेगी। हर हिन्‍दुस्‍तानी उस संकल्‍प को पार करने के लिए जी-जान से जुटेगा।

इस संकल्प के साथ मैं सबसे पहले इस पवित्र धरती पर प्राकृतिक आपदा के जो शिकार हुए, देश के हर राज्‍य में से किसी ने किसी ने अपना देह यहीं पर छोड़ दिया और बाबा की धरती में वो रम गया। उन सभी आत्माओं को आज मैं आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं। देश के सभी राज्‍यों के वो लोग थे। और उस समय मेरी स्‍वाभाविक संवेदनशीलता थी। मैं वैसे तो एक राज्‍य का मुख्‍यमंत्री था, किसी दूसरे राज्‍य में encroachment करने का ना मुझे हक है, न मैं ऐसा कभी सोच भी सकता हूं। लेकिन मैं अपने-आप को रोक नहीं पाया था। अच्‍छा किया, बुरा किया ये तो इतिहास तय करेगा। लेकिन उन पीडि़तों के लिए पहुंच जाना; मेरे मन को मैं रोक नहीं पाया था, मैं चला आया था।

और उस समय मैंने उस समय की सरकार से प्रार्थना की कि आप गुजरात सरकार और सरकार को केदारनाथ के पुनर्निर्माण का काम दे दीजिए, जैसा देशवासियों कस सपना होगा मैं पूरा करूंगा। जब कमरे में हम बैठे थे, तब उस समय के मुख्‍यमंत्री सहमत हो गए, सारे अफसर सहमत हो गाए, उन्‍होंने कहा अच्‍छा है, मोदी जी अगर गुजरात जिम्‍मेदारी लेता है और मैंने खुशी में आ करके, बाहर निकल करके मीडिया के सामने भी मेरा संकल्प व्‍यक्‍त किया था। अचानक टीवी पर खबर आ गई कि मोदी अब केदारनाथ के पुनर्निर्माण की जिम्‍मेदारी ले रहा है। तो पता नहीं दिल्‍ली में तूफान मच गया। उनको लग रहा है ये गुजरात का मुख्‍यमंत्री अगर केदारनाथ भी पहुंच जाएगा, एक घंटे के अंदर ऐसा तूफान खड़ा हो गया कि राज्‍य सरकार पर दबाव आया और राज्‍य सरकार को अतिरिक्‍त रूप से घोषणा करनी पड़ी कि हमें गुजरात की मदद की जरूरत नहीं है, हम कर देंगे। ठीक है जी, जब दिल्‍ली में बैठे हुए लोगों को परेशानी होती है तो मैं क्‍यों किसी को परेशान करूं? मैं हट गया। लेकिन शायद बाबा ने ही तय किया था, ये काम इस बाबा के बेटे के हाथ से ही होना था।

और जब मैं यहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई, उत्‍तराखंड के लोगों ने भरपूर समर्थन किया, तो मेरा विश्‍वास पक्‍का हो गया कि बाबा ने तय कर लिया है कि ये काम मुझे करना ही पड़ेगा और इसीलिए कपाट खुलते समय मैं आया था, मन में कुछ संकल्‍प करके गया था और कपाट बंद होने से पहले यहां पहुंच गया हूं और बाबा के श्रीचरणों में फिर से एक बार निवेदन करता हूं कि केदारनाथ की भूमि को अनुकूल ऐसा भव्‍य पुनर्निर्माण करने का आज शिलान्‍यास हो रहा है। समय-सीमा में तीर्थ क्षेत्र कैसा होना चाहिए, यहां के पुरोहितों के लिए व्‍यवस्‍था कैसी होनी चाहिए, पंडितों की सभी आवश्‍यकताओं का ध्‍यान कैसे रखा जाए, उन्‍होंने जो मुसीबत झेली है उससे भी अच्‍छी शानदार जिंदगी उनको मिले, इसके लिए कैसा प्रबंध किया जाए; इसको मध्‍य-बिंदु रखते हुए इसके विकास की, पुनर्निर्माण की योजना-खाका तैयार है। लगातार मैं स्‍वयं मीटिंगे करता रहा, हर चीज को देखता रहा; design क्‍या होगी, architecture क्‍या होगा? हमारे जो धार्मिक architecture होता है, मंदिरों का architecture होता है, वो सारे विधि-विधानों के‍ नियमों का पालन करते हुए पुनर्निर्माण कैसा होगा? इन सभी बातों को ध्‍यान में रखते हुए इसके विकास का चित्र खाका तैयार किया गया।

अब पुरोहितों को जो मकान मिलेंगे, एक प्रकार से three-in-one होंगे। नीचे जो यात्री आएंगे उनकी सेवा के लिए जो प्रबंध करना चाहिए, उसके लिए सारा प्रबंध रहेगा। ऊपर के मंजिले पर वो खुद रहेंगे, और उसके मंजिले पर जो पुरोहित है, उनके जो यजमान आते हैं, उनके यहां जो मेहमान आते हैं, उनके लिए भी रहने का प्रबंध होगा। 24 घंटे बिजली होगी, पानी होगा, स्‍वच्‍छता का पूरा प्रबंध होगा और इस पूरी सड़क को बहुत चौड़ा कर दिया जाएगा; और उसके बाद पुराहितों के लिए अलग से व्‍यवस्‍था खड़ी की जाएगी।

बहुत बड़ी मात्रा में यात्रियों को आने के बाद कुछ उनको पूजा-प्रसाद लेना है, कुछ यहां तीर्थ की चीजें लेनी हैं, वो सब प्रबंध मिल जाए; उसकी व्‍यवस्‍था रखेंगे। पोस्‍ट ऑफिस हो, बैंक हो, टेलीफोन के लिए व्‍यवस्‍था हो, कम्‍प्‍यूटर का उपयोग करने के लिए व्‍यवस्‍था; वो सारा प्रबंध रहेगा।

यहां पर आज एक प्रकार से पांच परियोजनाओं का आरंभ हो रहा है। एक, जैसे मैंने कहा- इस पूरे मार्ग का चौड़़ीकरण, RCC से बनाया जाएगा और सारी आधुनिक व्‍यवस्‍थाओं से जुड़ा हुआ होगा। जैसे ही यात्री चलना शुरू करेगा, जिस प्रहर में वो आया होगा उसी प्रहर का मंद स्‍वर मंदाकिनी के तट से वो संगीत को भी सुनता हुआ, भक्तिमय होता हुआ वो इधर की ओर चल देगा।

मंदाकिनी के घाट का भी retaining wall का भी निर्माण कार्य,वो भी। एक प्रकार से लोग जो यात्री आएं उनको जा करके बैठने की सुविधा संबधित हो, कल-कल बहती नदी के स्‍वर को सुन पाएं ऐसा प्रबंध हो। जैसा मैंने कहा है approach road, भव्‍य-दिव्‍य बनाने वाला approach road बनेगा। उसकी lightening की व्‍यवस्‍था भी वैसी ही रहेगी जैसे मंदाकिनी के पास retaining wall और एक घाट का निर्माण होगा, क्‍योंकि दोनों तरफ जलशक्ति का अनुभव होता है, जलस्रोत का अनुभव होता है। तो एक तरफ है मां सरस्‍वती; उसके भी retaining wall और उसके भी घाट का निर्माण, इसको किया जाएगा। और इसके पीछे भी काफी धन लगाया जाएगा।

और एक जो श्रद्धा का विषय रहा है, ढाई हजार साल पहले करेल की कागड़ी में जन्‍मा हुआ एक बालक सात साल की उम्र में घर छोड़कर निकल पड़ता है। हिमाचल, कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी, मां भारती का भ्रमण करता है। हर भू-भाग की मिट्टी को अपने भाल पर लगाता हुआ, तिलक करता हुआ इस केदार पर पहुंचता है और आखिरी जीवन को भी यहीं पर समाहित कर देता है। जिस आदि शंकराचार्य के लिए एक पूरी चिंतनधारा भारत में सैंकड़ों वर्षों तक प्रेरणा देती रही, प्रभावित करती रही, उनका एक समाधि-स्‍थल; वो भी इस हादसे में नष्‍ट हो गया। उसकी डिजाइन पर अभी काम चल रहा है। मैं श्रद्धा और architecture को निमंत्रण देता हूं कि ऐसा भव्‍य दिव्‍य आदिशंकर को वो स्‍थान बने, उनका समाधि-स्‍थल बने, और वो भी ऐसे बने कि आदिशंकर का स्‍थान केदार से थोड़ा सा भी अलग हुआ; ऐसा अनुभव न करें। लेकिन यात्री को आदिशंकर के पास जाते ही उस महान तपस्‍या की परम्‍परा के साथ एक आध्‍यात्मिक चेतना की अनुभूति हो; वैसी एक रचना हो, उस दिशा में काम चल रहा है। आज उसका भी शिलान्‍यास हो रहा है।

मैं जानता हूं खर्च होगा लेकिन मेरा पूरा विश्‍वास है, अगर एक बार हिन्‍दुस्‍तान के यात्री श्रद्धा के भाव से तय करें तो जिस प्रकार का पुनर्निर्माण करना है, वैसा पुनर्निर्माण करने में धन की यह देश कभी कमी नहीं रखेगा, ये मेरी श्रद्धा है। और मैं देश की सरकारों को भी इसमें सहभागी होने के लिए निमंत्रण करूंगा। मैं corporate social responsibility के लिए भी, उद्योग जगत के लोगों को भी, व्‍यापार जगत के लोगों को भी इसमें हाथ बंटाने के लिए निमंत्रण दूंगा।

मैं JSW का आभारी हूं, उन्‍होंने प्रारम्भिक काम के लिए जिम्‍मेदारी उठाना तय कर लिया है। लेकिन जो मेरे दिमाग में और सपने आते ही जाते हैं, नई-नई चीजें जुड़ती जाती हैं, और इसके लिए और भी CSR के लिए लोगों के लिए मैं आग्रह करूंगा।

जब इतना सारा धन यहां लगेगा, इतना सारा infrastructure का काम होगा, उसमें पर्यावरण के सारे नियमों का पालन किया जाएगा। यहां की रुचि, प्रकृति, प्रवृत्ति के अनुसार ही इसका पुनर्निर्माण किया जाएगा। उसमें आधुनिकता होगी लेकिन उसकी आत्‍मा वही होगी जो सदियों से केदार की धरती ने अपने भीतर संजोए रखा हुआ है; ऐसा पुनर्निर्माण करने की दिशा में इसका काम होगा।

मैं जब आया था यहां पर, कपाट खुलने के समय पर, इसके पीछे मेरे मन में एक इरादा बैठा कि मैं देश को एक संदेश देना चाहता था कि वो हादसे की छाया से हम बाहर निकलें। कभी घर से निकलते पहले सोचते हैं कि पता नहीं वहां अब व्‍यवस्‍थाएं बनी हैं कि नहीं बनी हैं। जा पाएंगे कि नहीं जा पाएंगे। इसलिए यात्रियों की संख्‍या कम हो गई थी। लेकिन मुझे खुशी है इस बार करीब साढ़े चार लाख से अधिक यात्री इतने कम समय में बाबा के चरणों में आए। फिर से एक बार यहां यात्रा में पुन: प्राण संचित हो गया है। और इसलिए अगली साल दस लाख से कम नहीं होगा, लिख करके रखिए। क्‍योंकि लोगों को विश्‍वास बन गया, संदेश पहुंच गया, टीवी पर सारे देश ने देखा और आज के इस कार्यक्रम से फिर से एक बार संदेश पहुंच जाएगा कि जब कपाट खुलेंगे, फिर से जब यात्रा प्रारंभ होगी, उसी ताकत के साथ फिर से एक बार यात्राओं का हुजूम चल पड़ेगा। फिर एक बार उत्‍तराखंड, जो हमारी देवभूमि है, उत्‍तराखंड जो हमारी वीरभूमि है, उत्‍तराखंड जो मेरी वीर माताओं की श्रद्धा व्‍यक्‍त करने के लिए इससे बढ़िया जगह नहीं हो सकती।

हमें हमारे देश के हिमालय की बड़ी विशेषताएं थीं। विकास के लिए इतनी संभावनाएं और हिमालय के हर भू-भाग में उसकी एक अलग चेतना है। अगर श्रीनगर में जाएं, हिमालय के इलाके में तो एक अनुभूति होती है, माता वैष्‍णा देवी, और अमरनाथ जाएं तो दूसरी अनुभूति होती है। हिमाचल प्रदेश में वही हिमालय, शिमला, कुल्‍लू, मनाली चले जाएं एक अनुभू‍ति होती है लेकिन उसी हिमालय की गोद में उत्‍तराखंड की धरती पर आते हैं तो एक दिव्‍य चेतना की अनुभूति होती है। वही हिमालय दार्जिलिंग में जाएं तो एक अनुभूति होती है, सिक्किम में चले जाएं तो एक दूसरी अनुभूति होती है। आप कल्‍पना कर सकते हैं एक ही हिमालय, वो ही हवा, वो ही पहाड़, वो ही बर्फ; लेकिन अलग-अलग भूभाग पर अलग-अलग चेतना की अनुभूति होती है।

मैं हिमालय की गोद में बहुत भटका हुआ इंसान हूं। मैंने हर इलाके की चेतना को अलग से महससू किया हुआ है। और इसलिए मैं इसको अपनी जुबान से इसलिए बता पा रहा हूं। मैं नहीं जानता हूं वैज्ञानिक laboratory में किसके किस तराजू से तौला जा सकता है लेकिन मैंने जिस तरह से हिमालय को अनुभव किया है, वो हिमालय दुनिया के लिए, अगर किसी को यहां की वन-संपदा में रुचि है, तो जीवनभर खोज करने के लिए विराट क्षेत्र खुला पड़ा है। किसी को adventure में रुचि है तो पूरा हिमालय दुनिया के हर adventurist को निमंत्रण देता है। किसी को यहां के जलस्रोत में रुचि है; दुनिया के हर जलस्रोत में interest रखने वाले लोगों को निमंत्रण देता है। जिसको यहां की जड़ी-बूटी में रुचि है, herbal medicine में रुचि है, हिमाचल की, हिमालय की हर गोद में ऐसी प्रकृति पली हुई है कि वह एक नई चेतना का अनुभव करा सकती है और herbal medicine के use हैं जो यहां के गांव के लोग जानते हैं, मैंने देखा है अगर बिच्छू वनस्‍पति डंक मार दे गलती से काट जाए तो गांव का आदमी आकर तुरंत बताता है अरे रो मत, ये दूसरे वाली जड़ी-बूटी है, इधर लगा दो, ठीक हो जाएगा। पत्‍ती लगा देता है ठीक हो जाता है। और दोनों साथ-साथ होती हैं। क्‍या परमात्‍मा ने व्‍यवस्‍था रखी है। और इसलिए इसके भीतर में जितने जाएं, और इसलिए देहरादून के अंदर ये हमारी जो प्राकृतिक संपदा है भारत सरकार ने उसकी हिमालय संपदा के लिए, research के लिए एक बहुत बड़ा काम शुरू किया है जो आगे चलने वाले में बहुत बड़ा का होने वाला है।

हमारे हिमालय की गोद में organic farming पूरे विश्‍व के लिए एक बहुत बड़ी संभावना वाली जगह मैं देखता हूं। सिक्किम छोटा सा प्रदेश है। 6-7 लाख की आबादी है लेकिन 12-15 लाख टूरिस्ट आते हैं, और वहां जाने-आने के रास्‍तों की भी कठिनाई है, हवाई अड़्डा भी नहीं है। अब मैं बना रहा हूं, बन जाएगा कुछ समय में। उसके बावजूद भी इतनी मात्रा में tourist आते हैं। सिक्किम ने पूरा राज्‍य आर्गेनिक बनाया है।

10-12 साल तक लगातार अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों के साधनों ने काम किया। सारे हिमालय के गोद में केमिकल fertilizer से मुक्ति, सारे हिमालयन राज्‍यों में दवाइयों से छुट्टी- वनस्‍पति की दवाइयां, खेत के अंदर दवाइयों का छिड़काव बंद। अगर 10-12 साल धैर्य से काम करें तो जिस हमारी पैदावार से एक रुपया मिलता है, दुनिया आपको एक डॉलर देने के लिए तैयार हो जाएग, ये organic farming की ताकत होती है।

मैं उत्‍तराखंड को निमंत्रण देता हूं। उत्‍तराखंड की सरकार को आग्रह करता हूं, मैं उत्‍तराखंड के अफसरान से आग्रह करता हूं कि बीड़ा उठाइए। उत्‍तराखंड को organic state बनाने का सपना ले करके चलें, 2022 का लक्ष्‍य हो, और अभी से काम लगे। Certify करने में शायद दस साल लग जाएंगे, उसके नियम होते हैं। लेकिन अगर एक बार तय कर लें, जैसे जन-जागृति लाएंगे, चीजें बदलेंगे। आप कल्‍पना कर सकते हैं आज पूरी दुनिया holistic health care की ओर चल रही है। और तब जा करके केमिकल की दुनिया से दूर हमारे खेत उत्‍पादन को ले जाएंगे तो हम मानव जाति की कितनी बड़ी सेवा करेंगे। हिमालय की ये ताकत, इसको भी आगे बढ़ाना है।

Tourism के लिए बहुत संभावना है। इसके आध्‍यात्मिक सामर्थ्‍य को जरा सा भी खरोंच नहीं आनी चाहिए। और उसके साथ tourism को develop किया जा सकता है। नए-नए क्षेत्र विकसित किए जा सकते हैं। प्रकृति की भी रक्षा हो, पर्यावरण की भी रक्षा हो और परमात्‍मा के प्रति श्रद्धा का भाव भी बना रहे।

हमारे यहां पहाड़ों में कहावत बड़ी पुरानी है। पहाड़ का एक स्‍वभाव होता है। पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी कभी पहाड़ के काम नहीं हाता है। हमने बीड़ा उठाया है ये कहावत बदलने का। पहाड़ की जवानी पहाड़ को काम आनी चाहिए और पहाड़ का पानी भी पहाड़ को काम हाना चाहिए। उसी पानी से बिजली पैदा होनी चाहिए। उसी पानी पर adventure tourism चलना चाहिए। उसी पानी पर water sports चलना चाहिए। उसी पानी पर tourism के नए-नए क्षेत्र विकसित होने चाहिए और दुनियाभर की जवानी को निमंत्रण देने का सामर्थ्‍य उस पानी में हो और पानी जो कभी पहाड़ के काम नहीं आता था, वो पानी पहाड़ के लिए काम आ जाए। जो जवानी पहाड़ से उतर करके नीचे मैदानी तालुकाओं में चली जाती है। रोजी-रोटी की तलाश में हम पहाड़ों में वो ताकत पैदा करें ताकि हमारी जवानी को कभी पहाड़ छोड़़ने की नौबत न आए। पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आ जाए, ये काम करने की दिशा में एक के बाद एक कदम भारत सरकार उठा रही है।

उत्‍तराखंड की सरकार भी इतने कम समय में, इतने महत्‍वपूर्ण फैसले लिए, इतने महत्‍वपूर्ण initiative लिए और उसी का परिणाम है कि आज विकास एक नई ऊंचाइयों की ओर आगे बढ़ रहा है। एक नया आत्‍मविश्‍वास पैदा हो रहा है।

उत्‍तराखंड के पास बहुत सामर्थ्‍य है। यहां discipline, यहां की रगों में है। कोई परिवार ऐसा नहीं है कि जिस परिवार में कोई फौजी न हुआ हो। कोई गांव ऐसा नहीं है जहां 250-300 सेवा निवृत्‍त फौजी न हों और जहां फौजी इतनी संख्‍या में हो वहां तो discipline काबिले दाद होते हैं। यात्रियों के लिए ये discipline एक बहुत बड़ा संबल होती है। टूरिस्‍टों के लिए ये discipline एक बहुत बड़ी ताकत होती है। इसको हमने परिचित करवाना चाहिए। इसके लिए हमने योजना बनानी चाहिए। निवृत्‍त हमारे फौजियों को उसके इस अनुभव का उपयोग करते हुए, टूरिस्‍टों में एक नया विश्‍वास पैदा करने के लिए हमने एक ऐसी व्‍यवस्‍था की रचना करनी चाहिए जो हमारे दूसरों के लिए एक बहुत बड़ा संबल बन सकती है। बहुत बड़ी संभावनाएं हैं। और उस संभावनाओं को ले करके उत्‍तराखंड का विकास, उत्‍तराखंड देश के लिए सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र बने, सबसे चहेता tourist destination बने, tourist के लिए तो उत्‍तराखंड, यात्री के लिए तो उत्‍तराखंड, adventure के लिए तो उत्‍तराखंड, उत्‍तम प्रकृति के लिए, प्रकृति की गोद में रहने वालों की इच्छा के लिए उत्‍तराखंड, संशोधन, आवष्किार करने वालों के‍ लिए उत्‍तराखंड।

ये ताकत जिस धरती में है, मैं आप सबको निमंत्रण देता हूं कि आइए आज दीवाली के इन दिनों में और एक प्रकार से नव वर्ष के प्रारंभ में, हमारे यहां पूरा हिन्‍दुस्‍तान दीवाली के दिन पुराने बहीखाते पूरे करता है और नया बहीखाता शुरू होता है। आज एक विकास का नया बहीखाता शुरू हो रहा है। उस नए बहीखाते से हम विकास की गाथा प्रारंभ कर रहे हैं। नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए आगे बढ़ेंगे। मैंने आज भी कई और सुझाव दिए हैं। राज्‍य सरकार इसको दोबारा देखगी। फिर एक बार एकाध महीने में मैं दोबारा मिलूंगा। जिन चीजों को मेरे मन में और भी इस इलाके में करने के इरादे हैं, उसको भी बल दूंगा। लेकिन हम सबकी जिम्‍मेदारी है पर्यावरण की रक्षा करना। हम सबकी जिम्‍मेदारी है प्रकृति की रक्षा करना। अगर हम पर्यावरण की रक्षा करेंगे, पर्यावरण हमारी रक्षा करेगा, ये मैं गारंटी देता हूं। अगर हम प्रकृत्ति की रक्षा करेंगे, प्रकृत्ति हमारी रक्षा करेगी, ये मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं।

सदियों का इतिहास गवाह है कि जब-जब प्रकृत्ति की रक्षा हुई है जहां-जहां रक्षा हुई है वहां प्रकृत्ति की तरफ से कोई कठिनाई नहीं आई है। जहां-जहां पर्यावरण की रक्षा हुई है, पर्यावरण को कभी कोई कठिनाई नहीं आई है। और ये वो धरती है जहां से हम लोगों को वो शक्ति दे सकते हैं।

हमने एक बीड़ा उठाया था, लकड़ी के चूल्‍हों से लोगों को मुक्ति दिलाकर जंगलों को काटने से बंद करने के लिए प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना से गरीब से गरीब परिवार में गैस का चूल्‍हा पहुंचाना, गैस का सिलेंडर पहुंचना। पर्यावरण की रक्षा का बड़ा अभियान था। उत्‍तराखंड और भारत सरकार ने मिल करके उत्‍तराखंड में इस काम को बहुत बड़ी मात्रा में आगे पहुंचाया है।

अब दूसरा बीड़ा उठाया है। हिन्‍दुस्‍तान में आज चार करोड़ परिवार ऐसे हैं जिनके घर में बिजली का लट्टू नहीं है। आज भी 18वीं, 19वीं शताब्‍दी में जीने के लिए मजबूर हैं। ये 21वीं सदी है, गरीब से गरीब परिवार में भी बिजली का लट्टू जलना चाहिए कि नहीं जलना चाहिए? गरीब परिवार को भी रात को बच्‍चों को पढ़ना हो तो बिजली मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए। गरीब को भी अगर आटे चक्‍की पर पिसवाने हैं, गेहूं अपना पिसवाना है, अनाज पिसवाना है; उसको 10 किलोमीटर जाना पड़े उसके बजाय अपने ही गांव में चक्‍की हो बिजली से चलने वाली चक्‍की हो उसका गेहूं पिसने का काम, बाजरा पिसने का काम होगा कि नहीं होगा? गरीब की जिंदगी को बदल लाने के लिए प्रधानमंत्री सौभाग्‍य योजना से चार करोड़ परिवारों में घर के अंदर connection देने का मैंने बीड़ा उठाया है। उत्‍तराखंड में भी अभी भी हजारों परिवार हैं जिनके यहां मुझे बिजली पहुंचानी है।

मैं उत्‍तराखंड सरकार को निमंत्रण देता हूं, भारत सरकार के इस अभियान को आप उठा लीजिए। और राज्‍यों-राज्‍यों के बीच स्‍पर्धा हो, कौन राज्‍य सबसे पहले सौभाग्‍य योजना पूरी करता है? कौन राज्‍य सबसे पहले प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना पहुंचाता है? कौन राज्‍य सबसे ज्‍यादा tourism को आगे बढ़ाता है? आने वाले समय के लिए जो विकास के क्षेत्र हैं उसके लिए राज्‍यों-राज्‍यों के बीच एक तंदुरुस्त स्‍पर्धा हो। मैं सभी हिमालयन स्‍टेट को स्‍पर्धा के लिए निमंत्रण देता हूं। मैं देश के सभी राज्‍यों को निमंत्रण देता हूं। आइए एक राज्‍य दूसरे राज्‍य के साथ तंदुरुस्त स्‍पर्धा करे। Healthy competition करे और विकास की नई ऊंचाइयों में आगे ले जाए।

मुझे उत्‍तराखंड को इस बात के लिए बधाई देनी है- शौचालय, खुले में शौच से मुक्ति; पिछले दिनों मुझे बताया गया कि उत्‍तराखंड ने ग्रामीण क्षेत्र में शौचालय के काम को पूरा कर दिया है। अब गांव में किसी को भी खुले शौचालय में जाना नहीं पड़ रहा है। शहरों में काम चल रहा है। कुछ ही समय में शहर समेत पूरा उत्‍तराखंड खुले में शौचालय से मुक्‍त होने के लिए तैयारी कर रहा है।

अब तक काम में जो आपने गति दी है, इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूं। लेकिन मेरा आग्रह रहेगा कि इसको एक mission mode में चलाया जाए। नगरों में भी किसी को खुले में शौच जाने की मजबूरी न हो।

कुछ दिन पहले मैं उत्‍तर प्रदेश गया था। उत्‍तर प्रदेश में बड़ा बीड़ा उठाया योगीजी की सरकार ने। और उन्‍होंने अब शौचालय का नाम ही बदल दिया है। अब वो शौचालय को शौचालय नहीं कहते। शौचालय को संड़ास नहीं करते। उन्‍होंने शौचालय के लिए नाम रख दिया है इज्‍जतघर।

मैं समझता हूं जो मां-बहनों को खुले में शौच जाना पड़ता है वो इस बात को भलीभांति समझती हैं कि इज्‍जतघर का मतलब क्‍या होता है। हम भी इस इज्‍जतघर का अभियान चलाएं। माताओं-बहनों को इज्‍जत देने के लिए शौचालय अपने-आप में एक बहुत बड़ी सुविधा होती है। उनके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए भी बहुत सुविधा होती है। और अभी यूनिसेफ ने सर्वे किया है। हिन्‍दुस्‍तान के दस हजार गांव का सर्वे किया। और जिन घरों में शौचालय बनाया था वो और जिन घरों में शौचालय नहीं था, वो। जो गांव शौचालय के संबंध में जागरूक थे वो और जो गांव शौचालय के संबंध में जागरूक नहीं थे, वो; उन सबका उन्‍होंने अध्‍ययन किया है, यूनिसेफ ने। United Nations की ये संस्‍था है और उन्‍होंने पाया कि शौचालय न होने के कारण भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार की बीमारियाँ जो घर में आती हैं, और बीमारी के कारण बच्‍चा बीमार हो तो मां उसमें व्‍यस्‍त हो जाती है, बाप व्‍यस्‍त हो जाता है, बच्‍चा स्‍कूल नहीं जाता है। रोजी-रोटी कमाने के लिए पिता नहीं जा पाता है। मां बीमार हो गई तो पूरा घर बीमार हो जाता है। घर में कमाने वाला अगर बीमार हो गया तो आय बंद हो जाती है, पूरा परिवार भूखा मर जाता है। और ये सब देख करके उन्‍होंने सर्वे किया कि शौचालय अगर नहीं है तो बीमारी का जो खर्चा होता है और शौचालय बन जाता है तो यूनिसेफ वालों ने सर्वे करके निकाला है कि गरीब परिवार का बीमारी के पीछे 50 हजार रुपये का जो खर्चा बच जाता है, आप सोचिए अगर एक परिवार का साल का 50 हजार रुपया बच जाए, उस परिवार की जिंदगी में कितनी बड़ी ताकत आ जाएगी।

एक शौचालय जिंदगी बदल सकता है और इसलिए पूरे देश में जितनी श्रद्धा के साथ बाबा केदारनाथ का धाम का निर्माण करता है, उसी श्रद्धा के साथ मुझे हिन्‍दुस्‍तान के गरीबों को शौचालय बनाने का अभियान भी चलना है। मेरा देश तभी आगे बढ़ेगा। उस भाव को ले करके हम आगे चलें।

मैं फिर एक बार उत्‍तराखंड की सरकार को अभिनंदन करता हूं, उनका धन्‍यवाद करता हूं। और देशभर के चार धाम यात्रा पर आने वाले लोग, जिन्‍हें पता है हमने 12 हजार करोड़ के चार धाम को जोडने वाले नए road बनाने का काम आरंभ कर दिया है। आधुनिक connectivity की व्‍यवस्‍था आरंभ कर दी है।

अब ये केदारधाम इस प्रकार से बनेगा। मेरा केदारनाथ भव्‍य होगा, दिव्‍य होगा। प्रेरणा के लिए उत्‍तम स्‍थान बनेगा। ये सवा सौ करोड़ देशवासियों की श्रद्धा का केन्‍द्र बन रहा है। हर बच्‍चे का इरादा रहता है बूढ़े मां-बाप को कभी न कभी चार धाम की यात्रा कराऊंगा।

आज ये सरकार वो काम कर रही है जो सवा सौ करोड़ देशवासियों का सपना है; उनको पूरा करने के लिए काम कर रही है। काम उत्‍तराखंड की धरती पर हो रहा है लेकिन काम हिन्‍दुस्‍तान के जन-जन के लिए हो रहा है। उस काम को आपके सामने प्रारंभ करते हुए जीवन में एक अत्‍यंत दिव्‍य संतोष की अनुभूति करता हूं।

मेरी आप सबको शुभकामनांए, फिर एक बार भोले बाबा को वंदन करता हूं। फिर एक बार मैं आपसे आग्रह करता हूं मेरे साथ दोनो मुट्ठी बंद करके पूरी ताकत से बोलिए-

जय जय बाबा भोले, जय जय बाबा भोले

जय जय बाबा भोले, जय जय बाबा भोले

बहुत धन्‍यवाद।

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