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निमोनिया एवं डायरिया की रोकथाम हेतु दो दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: निमोनिया एवं डायरिया प्रदेश के लिए एक बड़ा चैलेंज है। स्वास्थ्य के संकेतकों में सुधार हेतु हमें हर संभव प्र्रयास करने होगंे। जनपद स्तर पर बजट की कोई कमी नहीं हैं। जिन आशाओं द्वारा अच्छा कार्य नहीं किया जा रहा है उनके स्थान पर योग्य आशाओं को रखा जाय ताकि स्वास्थ्य सेवाओं की, लोगों तक सही जानकारी पहुंचायी जा सके। यदि क्षेत्र में कार्य करने हेतु अतिरिक्त आशाओं की आवश्यकता हो तो उसे तत्काल पूरा किया जायेगा।
यह बात आज यहां परिवार कल्याण राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाई, एन.एच.एम., डब्लू.एच.ओ., यूनिसेफ एवं टी.एस.यू. के संयुक्त तत्वाधान में होटल गोल्डन ट्यूलिप लखनऊ में ‘‘निमोनियाँ एवं डायरिया की रोकथाम हेतु समेकित प्रयास’’ कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए प्रमुख सचिव चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण श्री अरिवन्द कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि विभिन्न विभागों द्वारा जनपद एवं ब्लाक स्तर पर इस हेतु गठित समितियों के मध्य समन्वय स्थापित करते हुए योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन किया जाये। जनपद स्तर पर मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं हेतु आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों की गुणवत्ता का स्वंय अनुश्रवण किया जाये। निमोनिया एवं डायरिया पर तैयार की गयी आई0ई0सी0 सामग्रियों एवं वीडियो फिल्म को जिला चिकित्सालयों में स्थापित एल.ई.डी. टी0वी0 पर प्रदर्शित किया जाये, जिससे जन समुदाय का अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त हो सके।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक श्री अमित कुमार घोष ने कहा कि  उत्तर प्रदेश में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत का मुख्य कारण निमोनिया और डायरिया है इनमें 13 प्रतिशत मौतें निमोनिया और 11 प्रतिशत डायरिया से होती है। इन मौतों को समुदाय स्तर पर समेकित प्रयासों से रोका जा सकता है। यह वर्ष मातृ एवं बाल स्वास्थ्य की सुरक्षा के अभियान के रूप में मनाया जा रहा है। इस अभियान मेें डायरिया एवं निमोनिया जैसी बीमारियों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। उन्होने कहा कि प्रदेश में मातृ एवं शिशु की मृत्यु दर में कमी लाना सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है। इसके लिए हमे मिल जुल कर प्रयास करना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुश्री अन्जु पुरी ने कहा कि निमोनिया एवं डायरिया की समस्या स्वास्थ्य से सम्बन्धित सभी सहयोगी विभागों के अन्तर क्षेत्रीय मुद्दे हैं जिसकी रोकथाम हेतु कारकांे में -टीके, पोषक तत्व, स्तनपान, सुरक्षित पेयजल, साफ-सफाई आदि बातें शामिल हैं उन्होंने कहा कि डायरिया एवं निमोनियाँ से होने वाली मौतों में 88 प्रतिशत मामलों को सस्ते इलाज से बचाया जा सकता है।
यूनिसेफ के हेल्थ स्पेशलिस्ट श्री प्रवीण कुमार ने बताया कि यह रोग गरीबों की बस्तियों व परिवारों में अधिक फैलते है। शुद्ध पेयजल साफ सफाई एवं कुपोषण से भी इस बीमारी के खतरे बढ़ जाते है 50 प्रतिशत मौतें घरेलू प्रदूषण से होती है। समय से इलाज न होने पर अकारण मौतें हो जाती है।

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