नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने आज कहा कि राज्य सरकारें ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल के प्रदूषण की समस्या के समाधान और सस्ते शौचालयों के निर्माण के लिए अपने द्वारा मंजूर प्रौद्योगिकियों को चुनने और अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं। इस विषय पर आयोजित एक कार्यशाला को आज यहाँ सम्बोधित करते हुए ग्रामीण विकास, पेयजल और स्वच्छता मंत्री श्री बीरेंदर सिंह ने कहा कि पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ समिति की ओर से अब तक 54 से भी अधिक प्रौद्योगिकियां मंजूर की गयी हैं।
उन्होंने राज्यों से मांग करते हुए कहा कि वे उन्हें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार प्राथमिकता के आधार पर अपनायें, क्योंकि वे किफायती, मापनयोग्य, टिकाऊ और सामाजिक तौर पर स्वीकार्य हैं, किन्तु श्री सिंह ने चेताया कि केवल वर्ष 2019 तक देश को खुले शौच से मुक्त बनाने के भौतिक लक्ष्य तक पहुंचने से ही प्रधानमंत्री के सपने को पूरा करने में मदद नहीं मिलेगी। उन्होंने बताया कि नव-निर्मित शौचालयों को चालू और टिकाऊ बना रहना चाहिए। मंत्री महोदय ने इस बात पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के निर्माण के लिए कम्पनियां न तो आगे आ रही हैं और न ही वे इसके लिए कोई प्रतिबद्धता दर्शा रही हैं और जो कुछ किया जा रहा है वह टुकड़ों में किया जा रहा है। स्वच्छ भारत अभियान में नए उत्साह के साथ भाग लेने के लिए उन्होंने गैर-सरकारी संगठनों की सराहना करते हुए उन्हें इस दिशा में सभी संभव सहायता देने का आश्वासन दिया।
पेयजल और स्वच्छता राज्यमंत्री श्री राम कृपाल यादव ने कहा कि स्वाधीनता के 68 वर्ष बाद भी देश में 60 प्रतिशत से अधिक लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह न केवल शर्मनाक है, बल्कि ग्रामीण लोगों, विशेषकर बच्चों के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी एक बड़ा जोखिम भी है, क्योंकि इससे पेयजल दूषित होता है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के अभाव के कारण महिलाएं अधिक पीडि़त होती हैं और यह सीधे तौर पर उनकी सुरक्षा से भी जुड़ा है, क्योंकि बलात्कार की अधिकांश घटनाएं तब होती हैं जब महिलाएं खुले में शौच के लिए जाती हैं। उन्होंने स्वच्छता को एक जन-आंदोलन बनाने का आह्वान किया और इसके लिए व्यापक जागरूकता पैदा करने पर जोर दिया।
इस अवसर पर पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय में सचिव सुश्री विजय लक्ष्मी जोशी ने कहा कि 2 अक्टूबर, 2019 तक 07 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जाना है, जो कोई बड़ी चुनौती नहीं है, किन्तु निश्चित तौर पर शौचालयों का इस्तेमाल होना एक काफी बड़ा मुद्दा है और इसके लिए सोच में बदलाव की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एक अन्य बड़ी चुनौती यह है कि इस्तेमाल में आने वाला 85 प्रतिशत जल भू-जल से प्राप्त होता है, जो धीरे-धीरे सूख रहा है और दूषित भी हो रहा है तथा इस लक्षण को विपरीत दिशा में मोड़ने के लिए सबको साथ मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने बताया कि देश में 64,000 से भी अधिक आवास क्षेत्रों में जल प्रदूषण की समस्या है तथा इसके लिए प्रौद्योगिकी ही एकमात्र समाधान है। उन्होंने शौचालय और स्वच्छता सम्बन्धी उपकरणों के क्षेत्र में व्यवसाय का अवसर प्राप्त करने के लिए कम्पनियों को आमंत्रित किया, क्योंकि अगले चार वर्षों में बड़ी संख्या में शौचालयों का निर्माण होना है।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक और पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष डॉ. आर. ए. माशेलकर ने अपने भाषण में कहा कि शीघ्र काम में लाने योग्य किफायती प्रौद्योगिकी इस समय की मांग है और उन्होंने हितधारकों से पूरे उत्साह से इस अभियान में भाग लेने का आह्वान किया।
इस कार्यक्रम के दौरान श्री बीरेंदर सिंह ने एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया, जिसमें विशेषज्ञ और वैज्ञानिक जल प्रदूषण की समस्या से निपटने और सस्ते शौचालयों के निर्माण के लिए किफायती प्रौद्योगिकियों को दर्शा रहे हैं।