नई दिल्ली: राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने झारखंड के रांची में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के तीन दिन तक चलने वाले 88वें वार्षिक
सम्मेलन का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि वह पिछले तीन दशकों से संगठन के साथ करीब से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि बंगाली साहित्य, भाषा और संस्कृति की महान परंपराओं की उत्पत्ति ‘चार्यापदा’ काल की है। यह एक बंगाली संकलन है, जिसे विख्यात विद्वान हाराप्रसाद शास्त्री द्वारा 1907 में नेपाल में खोजा गया था।
राष्ट्रपति ने कहा कि निखिल बंग साहित्य सम्मेलन को शुरुआत में प्रबासी बंग साहित्य सम्मेलन के रूप में जाना जाता था। इसकी शुरुआत 1922 में हुई थी। अगले ही वर्ष, 1923 में हुए वाराणसी सत्र में इसे रवींद्र नाथ टैगोर का संरक्षण प्राप्त हुआ। अन्य दिग्गजों के साथ-साथ रवींद्र नाथ और काजी नजरूल इस्लाम द्वारा रचित गीत, संगीत ने राष्ट्र निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाई।
राष्ट्रपति ने कहा कि बंगाली साहित्य का मूल तत्व मानव और उसकी सोच है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह बंगाली साहित्य ही था जिसने हमारी सामाजिक सोच और सामाजिक सुधारों को प्रभावित किया। उन्होंने माइकल मधुसूदन दत्ता, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, रवींद्र नाथ टैगोर और अन्य कवियों तथा लेखकों का नाम लिया, जिन्होंने हमारे मन को समृद्ध बनाने में काफी योगदान दिया है। राष्ट्रपति ने सम्मेलन के सभी प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे भारतीय साहित्य के संरक्षण और प्रोत्साहन की दिशा में सार्थक योगदान देना जारी रखें।