नई दिल्ली: राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने कहा है कि मानवाधिकारों को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाना समाज की सामूहिक जिम्मेदारी। उन्होंने कहा कि इस संबंध में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने जागरूकता फैलाने और सिविल सोसाइटी के साथ जुड़ना का काम अच्छी तरह से किया है। श्री रामनाथ कोविंद आज नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा आयोजित मानव अधिकार दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे।
मानव अधिकारों और लैंगिग समानता के क्षेत्र में हंसाबेन मेहता के योगदान की चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इस बारे में हम शुरूआत अपने आप से यह पूछकर कर सकते हैं कि क्या हम समाज के रूप में समान अधिकारों तथा महिलाओं की समान मर्यादा के हंसाबेन मेहता के विजन पर खरे उतरे हैं दुर्भाग्यवश हाल के दिनों की घटनाएं हमें इस विषय में सोचने के लिए बाध्य करती हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि देश के अनेक भागों से महिलाओं के साथ जघन्य अपराध की घटनाओं की खबरें आ रही हैं। यह केवल एक स्थान या एक देश तक सीमित नहीं हैं। विश्व के अनेक भागों में कमजोर लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है। इसलिए पूरे विश्व के लिए आदर्श रूप में मानव अधिकार दिवस मनाने का रास्ता इस बात का आत्मनिरीक्षण करना है कि हमें मावन अधिकार घोषणा की मूल भावना के प्रति और क्या करने की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आत्मनिरीक्षण के साथ-साथ हमें मानव अधिकार दस्तावेज की फिर से व्याख्या करनी चाहिए और मानव अधिकार सिद्धांत का विस्तार करना चाहिए। हमें हमदर्दी और कल्पना की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए बच्चे और बंधुआ मजदूरों तथा जेल में बंद लोगों के बारे में सोचना चाहिए जो न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि इस बारे में तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि मानव अधिकार चार्टर का पालन करने वाला सद्भावपूर्ण समाज बनाया जा सके।
राष्ट्रपति ने कहा कि आत्मनिरीक्षण आवश्यक है। लेकिन स्थिति की हमारी समझ तब तक अधूरी होगी जब तक हम विषय के दूसरे पहलू यानी कर्तव्यों की अनदेखी करते रहेंगे। गांधी जी ने अधिकारों और कर्तव्यों को एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में देखा। हमारा राष्ट्रीय विमर्श का फोकस मानवाधिकारों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न पर है। यह हमें अपने मूलभूत कर्तव्यों पर विचार करने का भी मौका दे सकता है।