नई दिल्ली: भारत के राष्ट्रपति ने शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 में संशोधन करने के लिए 7 जनवरी, 2016 को शत्रु संपत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) अध्यादेश 2016 जारी कर दिया है।
अध्यादेश के माध्यम से इस संशोधन में शामिल है कि यदि एक शत्रु संपत्ति संरक्षक के निहित है, तो यह शत्रु, शत्रु विषयक अथवा शत्रु फर्म का विचार किए बिना, अभिरक्षक के निहित ही रहेगी। यदि मृत्यु आदि जैसे कारणों की वजह से शत्रु संपत्ति के रूप में इसे स्थगित भी कर दिया जाता है, तो भी यह अभिरक्षक के ही निहित रहेगी। उत्तराधिकार का कानून शत्रु संपत्ति पर लागू नहीं होता। एक शत्रु अथवा शत्रु विषयक अथवा शत्रु फर्म के द्वारा अभिरक्षक में निहित किसी भी संपत्ति का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता और अभिरक्षक शत्रु संपत्ति की तब तक सुरक्षा करेगा जब तक अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप इसका निपटारा नहीं होता।
शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 में उपर्युक्त संशोधनों से इस अधिनियम में मौजूद कमियों को दूर किया जा सकेगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अभिरक्षक के निहित शत्रु संपत्तियां ऐसी ही बनी रहेंगी और इन्हें शत्रु अथवा शत्रु फर्म को वापस नहीं किया जा सकता।
शत्रु संपत्ति अधिनियम को भारत सरकार ने 1968 में लागू किया था, जिसके अंतर्गत अभिरक्षण में शत्रु संपत्ति को रखने की सुविधा प्रदान की गई थी। केंद्र सरकार भारत में शत्रु संपत्ति के अभिरक्षण के माध्यम से देश के विभिन्न राज्यों में फैली शत्रु संपत्तियों को अपने अधिकार में रखती है, इसके अलावा शत्रु संपत्तियों के तौर पर चल संपत्तियों की श्रेणियां भी शामिल है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि शत्रु संपत्ति पर अभिरक्षण जारी रहे, तत्कालीन सरकार के द्वारा 2010 में शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 में एक अध्यादेश के द्वारा उपयुक्त संशोधन किए गए थे। हालांकि यह अध्यादेश 6 सितंबर, 2010 को समाप्त हो गया था और 22 जुलाई, 2010 को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया गया। हालांकि, इस विधेयक को वापस ले लिया गया और 15 नंवबर, 2010 को लोकसभा में संशोधित प्रावधानों के साथ एक और विधेयक पेश किया गया। इसके पश्चात इस विधेयक को स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। हालांकि यह विधेयक लोकसभा के 15वें कार्यकाल के दौरान पारित नहीं हो सका और यह समाप्त हो गया।
1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के मद्देनजर, भारत से पाकिस्तान के लिए लोगों ने पलायन किया था। भारत रक्षा अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए भारतीय रक्षा नियमों के तहत भारत सरकार ने ऐसे लोगों की संपत्तियों और कंपनियों को अपने अधिकार में ले लिया, जिन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली थी। ये शत्रु संपत्तियां, भारत में शत्रु संपत्ति के अभिरक्षण के रूप में केंद्र सरकार द्वारा अभिरक्षित थीं।
1965 के युद्ध के बाद, भारत और पाकिस्तान ने 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर किए। ताशकंद घोषणा में शामिल एक खंड के अनुसार दोनों देश युद्ध के संदर्भ में एक-दूसरे के द्वारा कब्जा की गई संपत्ति और परिसंपत्तियों को लौटाने पर विचार-विमर्श करेंगे। हालांकि पाकिस्तान सरकार ने वर्ष 1971 में स्वयं ही अपने देश में इस तरह कि सभी संपत्तियों का निपटारा कर दिया।