नई दिल्ली: राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में छठे भारत जल सप्ताह का उद्घाटन किया। भारत जल सप्ताह 2019 का विषय ‘जल सहयोग – 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटना’ है और इसका आयोजन जलशक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग की ओर से किया गया है।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि यदि हमें जल से संबंधित चुनौतियों से कारगर ढंग से निपटना है तो विभिन्न हितधारकों के बीच में सहयोग महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि जल से जुड़े मसले इतने बहुआयामी और जटिल हैं कि किसी एक सरकार या मात्र एक देश द्वारा इन्हें सुलझाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि भविष्य में सभी के लिए जल को चिर-स्थायी बनाने में मदद करने के लिए समस्त देशों और उनके जल समुदायों को एकजुट होना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम लोग अक्सर ‘कार्बन फुटप्रिंट’ में कमी लाने की बात करते हैं। अब समय आ गया है कि हम अपने ‘वॉटर फुटप्रिंट’ में कमी लाने की भी बात करें। हमारे किसानों, प्रमुख उद्योगपतियों और सरकारी निकायों को विभिन्न फसलों और उद्योगों के ‘वॉटर फुटप्रिंट’ के बारे में सक्रिय रूप से विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें ऐसी कृषि और औद्योगिक पद्धतियों को बढ़ावा देने की जरूरत है, जिनमें पानी का उपयोग कम हो।
राष्ट्रपति ने कहा कि भूमि जल संसाधनों का प्रबंधन और मानचित्रण जल गवर्नेंस का एक महत्वपूर्ण पहलू है। उन्होंने कहा कि बोरिंग मशीनों के व्यापक उपयोग के कारण भूमिगत जल का अनियंत्रित और अतिशय दोहन हुआ है। उन्होंने कहा कि हमें अपने भूमिगत जल की अहमियत समझनी होगी और जिम्मेदार बनना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा बहुमूल्य वर्षा जल बर्बाद न होने पाए। हमें अपने मौजूदा जलाशयों, बांधों और अन्य जल स्रोतों का उपयोग करते हुए तथा अपने घरों और आस-पड़ोस में जल संभरण उपाय अपना कर वर्षा जल को संचित करने और उसका भंडारण करने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि जल से संबंधित अपने विभिन्न मामलों का समाधान तलाशने का प्रयास करते समय हमें जल संरक्षण की अपनी प्राचीन पद्धतियों को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि परम्परागत ज्ञान के आधुनिक प्रौद्योगिकी और तकनीकों के साथ मिश्रण से हमें जल की दृष्टि से सुरक्षित देश बनने में मदद मिल सकती है। उन्होंने समस्त राज्यों, सार्वजनिक एवं निजी संगठनों और जनता के बीच सुदृढ़ सहयोग के साथ समस्त हितधारकों से जल से संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करने का संकल्प लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों से स्वच्छ भारत अभियान में समाज के सभी वर्गों साथ ही संगठनों की भागीदारी देखने को मिल रही है, जिन्होंने इसकी जिम्मेदारी उठायी और इसे अपना निजी मिशन बना लिया। उन्होंने कहा कि जल शक्ति अभियान के प्रति हमें इसी तरह का समर्पण और प्रतिबद्धता दर्शाने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि ‘स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन’ के लिए अनेक परियोजनाओं की आवश्यकता है, जो गंगा का निरंतर और प्रदूषण मुक्त प्रवाह सुनिश्चित कर सकें। उन्होंने बल देकर कहा कि गंगा और अन्य नदियों को स्वच्छ बनाना अकेले सरकार का मिशन नहीं हो सकता, ये हमारा सामूहिक प्रयास और हमारा सामूहिक वादा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नागिरक होने के नाते हमें इस उद्देश्य के लिए हर हाल में योगदान देना चाहिए। उदाहरण के लिए, हमने हाल ही में गणेश चतुर्थी मनाई है और कुछ दिन बाद नवरात्र हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि नदियों में विसर्जित की जाने वाली देवी-देवताओं की प्रतिमाएं पर्यावरण के अनुकूल सामग्री से निर्मित हों। इससे नदियों को स्वच्छ रखने और सामुद्रिक जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित रखने में मदद मिलेगी।