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राष्ट्रपति का भोपाल के राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की चौथी रिट्रीट के उद्घाटन पर दिया गया अभिभाषण

देश-विदेश

नई दिल्ली: न्यायाधीशों की चौथी रिट्रीट के उद्घाटन के अवसर पर आपके बीच आकर मैं बहुत प्रसन्‍न हूं। यह रिट्रीट

लगभग 7 वर्षों के अंतराल के बाद हो रहा है। मैं रिट्रीट के आयोजन के लिए, भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य साथी न्यायाधीशों को बधाई देता हूं।

यह रिट्रीट कानूनी विवादों एवं न्‍याय निर्णयन के वैश्विक एवं अंतरराष्‍ट्रीय तत्‍वों के साथ-साथ देश के सामने मौजूद समसामयिक चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा। इस तरह का विचार-विमर्श एवं प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण हैं, साथ ही, यह न्यायाधीशों को समय के साथ तालमेल बनाए रखने में सक्षम बनाता है और तेजी से बदलती दुनिया में निष्पक्ष एवं कारगर न्‍याय प्रदान करने में समर्थ बनाता है।

न्यायपालिका, जो हमारे लोकतंत्र के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है, संविधान और कानूनों की अंतिम व्याख्याता है। यह गैर कानूनी कार्य करने वालों से तेजी से तथा प्रभावी तरीके से निपटने के द्वारा सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करती है। लोगों ने न्यायपालिका में जो विश्वास और भरोसा जताया है उसे हमेशा बरकरार रखा जाना चाहिए। लोगों के लिए न्याय सा‍र्थक हो, इसके लिए जरूरी है कि यह सुविधापूर्ण, किफायती एवं त्वरित हो।

भारत में हमारे पास एक लिखित संविधान है जो एक जीवंत दस्तावेज है न कि पत्थर पर लिखा गया कोई अवशेष। भारत जैसे विकासशील देश की परिस्थितियों को देखते हुए हमारी न्यायपालिका ने न्याय के दायरे को विस्तारित कर दिया है। मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्‍च न्यायालय ने न्‍यायिक अन्वेषणों एवं कार्यशीलता के जरिये ‘अधिस्थिति’ के सामान्य विधि सिद्धांत को विस्तारित किया है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने उत्कृष्ट मानदंडो एवं उदात्त आदर्शों के लिए वैश्विक ख्‍याति अर्जित की है। मुझे भरोसा है कि सर्वोच्च न्यायालय हमेशा ही न्याय का एक पहरेदार बना रहेगा।

इस रिट्रीट में भाग लेने के लिए मुझे आमंत्रित करने तथा औपचारिक रूप से इसका उद्घाटन करने का अवसर प्रदान करने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं।

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