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उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटा

उत्तराखंड

नैनीताल: नैनीताल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को हटा दिया

है। कोर्ट ने 27 मार्च की रात को राष्ट्रपति शासन लगाए जाने से पूर्व की स्थिति को बहाल करते हुए विधानसभा में शक्ति परीक्षण के लिए 29 अप्रैल की तिथि तय की है।

बृहस्पतिवार को आए हाईकोर्ट के इस निर्णय से तीन बातें सामने आई हैं। पहली हरीश रावत सीएम बहाल हो गए हैं, दूसरी उन्हें 29 अप्रैल को सदन में बहुमत साबित कहना है और तीसरी बागी विधायकों को निष्कासित करने के मामले में 23 अप्रैल को एकलपीठ के समक्ष सुनवाई होनी है।

इसी के बाद तय होगा कि वे मतदान में भाग ले पाएंगे या नहीं। केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे राकेश थपलियाल ने कहा कि फैसले के अध्ययन के बाद तथा केंद्र से विचार विमर्श कर सुप्रीम कोर्ट जाने के विकल्प पर विचार करेंगे।

हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को अपना अहम फैसला देते हुए लगभग 28 दिनों से अलग अलग मुद्दों को लेकर हो रही बहस के बाद अपना निर्णय सुनाया।

निर्णय की मुख्य बात यह थी कि इसके अनुसार कोर्ट ने 26 मार्च की स्थिति को बहाल कर दिया, जिसके अनुसार तब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे उन्हें फलोर टेस्ट में बहुमत साबित करना था और बागी विधायक स्पीकर के द्वारा निलंबित थे। अत: इस निर्णय के अनुसार पुन: वहीं स्थितियां बन गई हैं।

मुख्य न्यायाघीश केएम जोसेफ एवं न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की संयुक्त खंडपीठ के समक्ष मामले  की सुनवाई हुई। उत्तराखंड में धारा  356 का प्रयोग कर राष्ट्रपति शासन लगाने के निर्णय को हरीश रावत ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने, बागी विधायकों तथा वित्त विधेयक के संबंध में बृहस्पतिवार को हाईकोर्ट ने विस्तारपूर्वक निर्णय लिखाया। निर्णय लिखाने में लगभग चार घंटे लगे। इसमें अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी, असिस्टेंट  सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, मनिंदर चड्ढा, भारत सरकार की ओर से हरीश साल्वे, बागी विधायकों की ओर से पैरवी करने आए दिनेश द्विवेदी की ओर से हाईकोर्ट में दिये गए तर्कों को लिखा गया।

कोर्ट ने अपने निर्णय में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से दिए गए कर्नाटक के एसआर बोम्मई केस में गोपनीय दस्तावेज का जिक्र भी किया है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने और बजट अध्यादेश के खिलाफ याचिका  दायर की थी।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि राष्ट्रपति ने 31 मार्च  को अध्यादेश जारी किया था, जिसके द्वारा उत्तराखंड के वित्त विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पारित कर दिया। याचिका में कहा था कि वित्त विधेयक जो कि उत्तराखंड विधानसभा पूर्व में ही पारित कर चुकी है उसको केंद्र सरकार पुन: पारित नहीं कर सकती।

साथ ही कहा कि वित्त विधेयक विधानसभा में पारित हुआ या नहीं हुआ इसका निर्णय केवल विधानसभा अध्यक्ष ही कर सकता है। पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर राष्ट्रपति शासन को हटाते हुए 29 को फ्लोर टेस्ट करने के आदेश पारित किए हैं।

निर्णय में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट की ओर से राज्यपाल को लिखे खत में दी गई दलीलों का भी जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था कि 27 विधायकों ने फ्लोर टेस्ट की मांग की थी, जबकि 9 बागी विधायकों का नाम उसमें नहीं था।

निर्णय में तुषार मेहता की दलीलें भी कोट की गई हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि 18 मार्च की रात 11.30  बजे अजय भट्ट ने 35 विधायकों के साथ राजभवन में राज्यपाल को पत्र देकर वित्त विधेयक गिरने का हवाला देकर हालातों से अवगत कराया था।

निर्णय में याचिकाकर्ता हरीश रावत के अधिवक्ता अभिषेक मनुसिंघवी की दी गई दलील नोट कराई गई। जिसमें सिंघवी ने कहा था कि विधानसभा स्पीकर के बिल स्वीकृत कहने और राज्यपाल के विवादित कहने से राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता।

उन्होंने यह भी कहा था कि मामला 18 मार्च के वित्त विधेयक के अल्पमत में होने का नहीं है बल्कि ये 28 मार्च के प्रस्तावित फ्लोर टेस्ट का है। उन्होंने न्यायालय को बताया कि स्पीकर ने 28 मार्च को सदन की पूरी कार्यवाही से राज्यपाल को लिखित कागजों के साथ अवगत कराया था।

निर्णय में मनु सिंघवी की उस दलील का भी जिक्र किया गया है जिसमें उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन को ब्लैक मेलिंग का तरीका बताते हुए हरियाणा के बूटा सिंह गवर्नमेंट का उदाहरण दिया था।

फैसले में सिंघवी की उस दलील का भी जिक्र किया गया है जिसमें उन्होंने कर्नाटक के एसआर बोम्मई केस का उदाहरण देते हुए कहा था कि वहां मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद फ्लोर टेस्ट का मौका दिया गया था।

साभार अमर उजाला

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