केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बेंगलुरू से वर्चुअली रूप से आयोजित किएजा रहे राष्ट्रीय गर्भावधि मधुमेह जागरूकता दिवससमिटमें मुख्य भाषण देते हुए कहा कि गर्भावस्था में मधुमेह की रोकथाम अगली पीढ़ी की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है कि डॉ. जितेन्द्र सिंह एक प्रसिद्ध मधुमेह रोग विशेषज्ञ भी हैं।
इस अवसर पर, डॉ. जितेन्द्र सिंह ने ‘डायबिटीज इन प्रेग्नेंसी स्टडी ग्रुप ऑफ़ इंडिया’ (डीआईपीएसआई) द्वारा तैयार “गर्भावस्था में मधुमेह का प्रबंधन” के लिए दिशानिर्देश जारी किए।डॉ. जितेंद्र सिंह डीआईपीएसआई केसंस्थापक सदस्यों में से एक हैं। प्रोफेसर वी.शेषैया इससमूह के प्रमुख हैं, जोभारत में डायबिटोलॉजीके संस्थापक जनकहैं औरमद्रास मेडिकल कॉलेज, चेन्नई में पहलेडायबिटोलॉजी विभाग के एमरिटस प्रोफेसर और संस्थापक प्रमुखहैं।
डॉ. शेषैया के साथ अपने कई दशकों सेलंबे जुड़ाव का स्मरण करते हुए उन्हें अपना एक प्रमुख गुरु बताया और कहा कि मैं 1970 के दशक का स्मरण करता हूं, जब डॉ. शेषैया ने गर्भवती महिलाओं के लिए “स्पॉट टेस्ट” की अवधारणा दी थी, जिसकादूसरे शब्दों में यह अर्थ हैकि गर्भावस्था के किसी भी चरण में अस्पताल में आने वाली किसी भी गर्भवती महिला का फास्टिंग या नॉन-फास्टिंग रक्त शर्करा परीक्षण किया जाना चाहिए। उस समय उनके कई समकालीन यह नहीं समझ पाए होंगे कि यह सब क्या है, लेकिन वास्तव में यह नैदानिक चिकित्सा में न केवल एक क्रांतिकारी अवधारणा थी, बल्कि भारतीय समाज में मौजूद विषमता और सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को देखते हुए सामाजिक स्तर पर एक नई अवधारणा भी थी।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहाकि डॉ. शेषैया द्वारा दी गई अवधारणा को संस्थागत बनाने के लिए व्यापक अनुसंधान के लिए लगभग एक चौथाई सदी का गहन शोध किया गया है। उन्होंने गर्भवती महिलाओं में रक्त शर्करा के नियंत्रण के परिणाम और लाभों का परीक्षण करने के लिए एक शुरुआती अध्ययनआयोजित करने पर उन्हें गर्व अनुभव हो रहा है। उन्होंने कहा कियह गर्व की बात है कि डॉ. शेषैया के मार्गदर्शन में तैयार किए गए “मधुमेह प्रबंधन” के दिशानिर्देश गर्व का विषय हैं और आज इनका पूरे विश्व में पालन किया जा रहा है और यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसकी सिफारिश की है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पूरी अवधारणा इस तथ्य के इर्द-गिर्द घूमती है कि गर्भकालीन मधुमेह की बीमारी से ग्रसित महिला को भविष्य में डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है और इसलिए इसका उद्देश्य रक्त शर्करा के स्तर को कडाई से नियंत्रित किया जाना चाहिए, ताकि उसकी मेटाबोलिक मिलियू और इंट्रा-यूटेराइन माहौल शारीरिक रूप से गैर-डायबिटिक गर्भवती महिला कीतरह होना चाहिए और गर्भ में पल रहे बच्चे को यह आभास नहीं होना चाहिए कि उसकी मां कभी मधुमेह से गुजरी है।
डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा आज जारी किए गए गर्भावस्था में मधुमेह के दिशानिर्देश न केवल मधुमेह के मामले में सेवा प्रदान करेंगे, बल्कि नरेन्द्र मोदी के “न्यू इंडिया” में भी विनम्र योगदान देंगे,क्योंकि “न्यू इंडिया” में 40 वर्ष की कमआयु की 70 प्रतिशतआबादी शामिल हैं और आज सामने आ रही चुनौतियांयुवाओं में भी टाइप-2 मधुमेह की बीमारी की बढ़ती हुई मौजूदगी का सामना कर रही है। उन्होंने कहा कि न्यू इंडिया की ताकत उसके युवाओं द्वारा निर्धारित की जाएगी और मधुमेह बीमारी के कारण इस युवा ऊर्जा काकम उपयोग नहीं किया जा सकता है।