देहरादून: मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि केंद्र सरकार अर्धकुम्भ के लिए 500 करोड़ रूपए की राशि शीघ्र अवमुक्त करे। बाह्य सहायतित परियोजनाओं
(ईएपी) में फंडिंग पैटर्न 90ः10 या 80ः20 किया जाए। सीएसटी के अंतर्गत 1170 करोड़ रूपए की क्षतिपूर्ति की जाए। मेडिकल कालेज व नर्सिंग कालेज के लिए 275 करोड़ रूपए की वित्तीय सहायता दी जाए। शतप्रतिशत केंद्र सहायतित एससी, एसटी व ओबीसी के पोस्ट-मेट्रिक छात्रवृत्ति की राशि अवमुक्त की जाए। पर्यावरणीय सेवाआंे के लिए प्रतिवर्ष 2 हजार करोड़ रूपए का ग्रीन बोनस दिया जाए।
मुख्यमंत्री के मीडिया प्रभारी सुरेंद्र कुमार ने जानकारी दी है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केंद्रीय बजट से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली को पत्र लिखकर विभिन्न बिंदुओं पर केंद्रीय सरकार से सहायता का अनुरोध किया है।
अर्धकुम्भ के लिए 500 करोड़ रूपए की राशि अवमुक्त की जाए: मुख्यमंत्री श्री रावत ने अपने पत्र में कहा है कि अर्धकुम्भ व महाकुम्भ के आयोजनों के लिए केंद्र द्वारा हमेशा पर्याप्त सहायता दी जाती रही है। यह आश्चर्यजनक है कि जहां 6 राज्यो को इसी तरह के आयोजनों के लिए भारत सरकार द्वारा सहायता राशि प्रदान कर दी गई है वहीं उत्तराखण्ड को नीति आयोग की संस्तुति के बावजूद किसी प्रकार की सहायता नहीं दी गई है। इस कारण अर्धकुम्भ के सुरक्षित व सफल आयोजन के लिए राज्य सरकार को अपनी विकास योजनाओं में से फंड को हस्तांतरित करना पड़ा है। अर्धकुम्भ के कार्यों में 90 फीसदी स्थाई प्रकृति के हैं। कुल 500 करोड़ रूपए के परिव्यय में से 325 करोड़ रूपए की परियोजनाएं स्थाई प्रकृति की हैं। अर्धकुम्भ में वित्तीय सहायता के लिए वित्त मंत्रालय व नीति आयोग से निरंतर अनुरोध किया जाता रहा है। नीति आयोग द्वारा 166.67 करोड़ रूपए की संस्तुति के बावजूद अभी तक राज्य को अर्धकुम्भ के लिए कोई धनराशि नहीं दी गई है। यद्यपि राज्य सरकार के अपने प्रयासों से अभी तक अर्धकुम्भ मेले का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया है फिर भी विकास कार्यों के लिए राज्य के वित्तीय संसाधनों की सीमितता को देखते हुए प्राथमिकता से 500 करोड़ रूपए की सहायता दी जाए। यदि पूरी धनराशि अभी दिया जाना सम्भव न हो तो वर्ष 2016-17 के केंद्रीय बजट में इसका प्राविधान किया जाए ताकि उत्तराखण्ड को पुनर्भुगतान किया जा सके।
ईएपी में फंडिंग पैटर्न 90ः10 या 80ः20 किया जाएः उत्तराखण्ड को यहां की विशेष परिस्थितियों के कारण विशेष राज्य का दर्जा देते हुए उसी के अनुरूप केंद्रीय सहायता मिलती रही है। उत्तराखण्ड की बहुत सी जलविद्युत परियोजनाओं सहित अनेक परियोजनाओं पर अनेक कारणों से रोक लगाई गई है। आपदा संवेदनशीलता, दो अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं, दुर्गम भौगोलिक क्षेत्र, 70 फीसदी फोरेस्ट कवर, सीमित आर्थिक संसाधन होते हुए भी हमने एफआरबीएम के मानकों को पूरा किया है और राज्य की प्रति व्यक्ति आय देश के राष्ट्रीय औसत से अधिक रही है। इन सब बातों को देखते हुए भारत सरकार से राज्य को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। आर्थिक सर्वे 2015 द्वारा भी इस बात को माना गया है कि हमारे राज्य को 14 वें वित्त आयेाग की संस्तुतियों से किस प्रकार नुकसान हुआ है। उत्तराखण्ड लगभग 2800 करोड़ रूपए के नुकसान में रहा है। मुख्यमंत्री ने इस बात पर आभार व्यक्त किया कि कुछ केंद्र प्रवर्तीत योजनाओं में 90ः10 व 80ः20 के अनुपात में सहायता पुनः प्रारम्भ की गई है। उत्तराखण्ड में आपदा न्यूनीकरण व पुनर्निर्माण, सार्वजनिक सेवाओं सहित अधिकांश विकास योजनाओं में बाह्य सहायतित परियोजनाओं(ईएपी) का महत्वर्पूण योगदान है। इसलिए जब तक ईएपी में फंडिंग पैटर्न 90ः10 या 80ः20 नहीं किया जाता है तब तक विशेष राज्य के दर्जे से उत्तराखण्ड को विशेष लाभ नही होने वाला है।
पर्यावरणीय सेवाआंे के लिए 2 हजार करोड़ रूपए का ग्रीन बोनस:उत्तराखण्ड के 70 फीसदी भाग पर फोरेस्ट कवर है और 14 प्रतिशत भाग नेशनल पार्क व वन्य जीव अभ्यारण्यों के अंतर्गत आता है। देश का 1 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्रफल रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य में 4 प्रतिशत वन क्षेत्र है। यहां का ग्रीन कवर देश को अमूल्य पर्यावरण सेवाएं प्रदान कर रहा है। इन सेवाओं का मूल्य निकालते हुए देश की लेखा प्रणाली में शामिल की जानी चाहिए और राज्यों को वित्तीय संसाधनों के हस्तांतरण के फार्मूले में लिया जाना चाहिए। ‘‘प्रदूषण करने वाले चुकाएं व पर्यावरण संरक्षण करने वालों को क्षतिपूर्ति की जाए’’ सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए। भारत सरकार द्वारा स्थापित चतुर्वेदी समिति व मुखर्जी समिति ने भी पर्यावरणीय सेवाओं की क्षतिपूर्ति के लिए एक मेकेनिज्म बनाने का समर्थन किया था। विभिन्न शोध पत्रों द्वारा उत्तराखण्ड की पर्यावरणीय सेवाओं का मूल्य लगभग 30 हजार करोड़ रूपए प्रतिवर्ष आंका गया है। जब तक ऐसा मेकेनिज्म विकसित नहीं कर लिया जाता है तब तक उत्तराखण्ड को 2 हजार करोड़ रूपए प्रतिवर्ष का ग्रीन बोनस दिया जाए।
सीएसटी में 1170 करोड़ रूपए की क्षतिपूर्तिः सीएसटी के अंतर्गत 1170 करोड़ रूपए की क्षतिपूर्ति केंद्र द्वारा उत्तराखण्ड को की जानी है। संज्ञान में आया है कि वर्ष 2015-16 में 241 करोड़ रूपए अवमुक्त किए जा रहे हैं। फिर भी 929 करोड़ रूपए बकाया रह जाएंगे। यह राशि सीमित संसाधानों वाले उत्तराखण्ड के लिए बहुत मायने रखती है। इसलिए शेष 929 करोड़ रूपए का प्राविधान 2016-17 के केंद्रीय बजट में किया जाए।
मेडिकल कालेज व नर्सिंग कालेज के लिए 275 करोड़ रूपए की वित्तीय सहायताः उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन का सबसे महत्वपूर्ण कारण मेडिकल सुविधाओं का अभाव है। राज्य के 13 जिलों में से 2 जिलों में पिछले दशक में जनसंख्या में ऋणात्मक वृद्धि देखने को मिली है। इसलिए राज्य में मेडिकल सुविधाओं पर विशेष फोकस करना होगा। इसी क्रम में अल्मोड़ा, हल्द्वानी व देहरादून में मेडिकल कालेज या तो स्थापित किए जाने हैं या फिर अपग्रेड किए जाने हैं। हल्द्वानी मेडिकल कालेज में स्टेट केंसर यूनिट, सुशीला तिवारी अस्पताल में बर्न यूनिट और वायरल रिसर्च एंड डायग्नोसिस लैब स्थापित किए जाने हैं। अल्मोड़ा, टिहरी, पिथौरागढ, पौड़ी व चमोली में पांच नर्सिंग कालेज स्थापित किए जाने हैं। उक्त मेडिकल कालेज व नर्सिंग कालेज के लिए 275 करोड़ रूपए की वित्तीय सहायता केंद्र सरकार प्रदान करे या 2016-17 के बजट में इसके लिए प्राविधान करे।
एससी, एसटी व ओबीसी के पोस्ट-मेट्रिक छात्रवृत्ति की राशि अवमुक्त की जाएः एससी, एसटी व ओबीसी के पोस्ट-मेट्रिक छात्रवृत्ति योजना जो कि शत प्रतिशत केंद्र सहायतित होती है, में वर्ष 2014-15 व 2015-16 के लिए 189 करोड़ रूपए भारत सरकार से अवमुक्त होने हैं। जबकि 2016-17 के लिए इसमें 173 करोड़ रूपए की अतिरिक्त आवश्यकता होगी।
रोपवे, केबिल कार, एस्केलेटर, इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं को प्रोत्साहन दिया जाएः उत्तराखण्ड जैसे राज्य में यातायात के लिए सड़कों के ग्रीन टेक्नोलोजी युक्त नए विकल्प भी तलाशने होंगे। समान परिस्थितियों वाले बहुत से स्थानों पर रोपवे, केबिल कार, एस्केलेटर आदि विकल्पों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया रहा है। शहरी विकास व पर्यटन विकास के लिए सार्वजनिक यातायात हेतु आरबीआई की गाईडलाईन्स के तहत ‘मास्टर लिस्ट आॅफ इंफ्रास्ट्रक्चर’’ में यातायात के सब सेक्टर के तौर पर रोपवे, केबिल कार, एस्केलेटर, फनीकुलर को लिया जाना चाहिए। हाईस्पीड रेल या मेट्रो रेल के लिए विश्व के अग्रणी निर्माताओं को मेक इन इंडिया के तहत आकृष्ट करने हेतु विशेष नीति बनानी होगी। 11 हिमालयी राज्य व अरावली व विंध्याचल स्थित शहरों में इसकी काफी सम्भावना है। यात्री सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता के लिए हाई एल्टीट्यूड क्षेत्रों में रोपवे उच्च तकनीक का उपयोग किया जा सके, इसके लिए कस्टम ड्यूटी को ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों में कम किया जाना चाहिए।