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12वें सिविल सेवा दिवस पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

देश-विदेश

नई दिल्लीः मंच पर उपस्थित सभी महानुभाव और विज्ञान भवन में उपस्थित आप सभी अधिकारीगण, देश के सुदूर कोने में अनवरत देश सेवा में जुटे सिविल सेवा के अन्‍यअधिकारीगण, देवियो और सज्‍जनों। आप सभी को सिविल सेवा दिवस की बहुत-बहुत बधाई है, बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं।

एक बार फिर मुझे आप सभी के साथ बातचीत करने का अवसर मिला है। आज का ये अवसर कई प्रकार से महत्‍व का है, Appreciation है, evaluation है और सबसे बड़ी महत्‍व की बात है introspection भी है। आज ये भी सोचने का दिन है कि बीते समय में जो संकल्‍प लिए गए, जो दिशा तय हुई, उस तरफ हम कितना आगे बढ़े, कितना सफल रहे। देश के सामान्‍य मानवी की जिंदगी में हम कितना बदलाव ला पाए।

साथियो, व्‍यक्ति हो या फिर व्यवस्‍था, कितना भी सक्षम, कितना भी प्रभावी क्‍यों न हो, बेहतर काम के लिए निरंतर motivation की आवश्‍यकता रहती है। एक प्रयास पुरस्‍कारों के माध्‍यम से किया जाता है। Prime Minister’s Awards इसी कड़ी में एक कोशिश है।

आज कई अधिकारियों को अपने क्षेत्र में अच्‍छे काम के लिए Prime Minister’s Award दिए गए। जिनको ये सम्‍मान मिला, उन सबको मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं और भविष्‍य में इससे भी ज्‍यादा अच्‍छा करने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं भी देता हूं।

साथियो, इन awards का उद्देश्‍य motivation तो है, लेकिन साथ-साथ इसका विस्‍तार हो, व्‍यापकता हो, और ज्‍यादा कैसे हो; ये एक प्रकार से सरकार की प्राथमिकताओं को भी परि‍लक्षित करता है। और इस बार भीpriority programs और innovation की कैटेगिरी में पुरस्‍कार की व्‍यवस्‍था की गई थी।priority programs में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, दीनदयाल उपाध्‍याय कौशल योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और digital payments, इनके प्रचार-प्रसार के लिए भी award दिए गए।

जिन योजनाओं के लिए सम्‍मान दिया गया है, ये न्‍यू इंडिया के हमारे जो सपने हैं, उनको पूरा करने के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण है। ये हमारी अर्थव्‍यवस्‍था और सामान्‍य जन-जीवन के स्‍तर को ऊपर उठाने के लिए, उनकीease of leaving के लिए अहम है। World bank हो या global rating agencies हों, वहां पर तो ease of doing business की चर्चा होती रहती है। लेकिन भारत जैसा देश ease of doing business से कुछ हासिल करके रुक नहीं सकता है। हमारे लिए तो सामान्‍य मानवी की जिंदगी में सरलता कैसे आए, सुगमता कैसे आए? और इस बात को हम भूल नहीं सकते हैं कि हमारी इतनी बड़ी फौज, इतने सालों का अनुभव, पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग आए, कुछ-न-कुछ अच्‍छा करके गए; लेकिन इसके बावजूद भी एक सामान्‍य मानवी को सरकार के साथ हर पल जद्दोजहद रहती है, वो जूझता रहता है, सरकार में अपनी जगह खोजता रहता है, अपने हक का पाने के लिए तो तड़पता रहता है। और ये सबसे बड़ी रुकावट है ease of life के बीच में।

अगर हम इतना सा कर लें, उसके हक के लिए उसको मांगना न पड़े,  मैं समझता हूं सवा सौ करोड़ देशवासियों की जिंदगी में जो बदलाव आएगा, उसको देश को बदलने में समय नहीं लगेगा जी। वो बदल देंगे, देश वो ही बदल देंगे, हम तो देखते रह जाएंगे, बदल जाएगा देश। उस शक्ति का हम एहसास करें, हम अनुभव करें और ये सारी व्‍यवस्‍था, ये ताम-झाम, ये कानून, ये नियम, ये व्‍यवस्‍थाएं, अगर उस इंसान के केंद्र में रख करके हम करते हैं तो न जाने जिंदगी कैसे बदल पाएगी और हमें भी अपनी आंखों के सामने जब चीजें बदलते देखते हैं तो बहुत संतोष मिलता है। परिवार में भी बेटा अपनी आंखों के सामने जब बड़ा होता है तो मां को भी ध्‍यान में नहीं आता है, वो कल कितना था, आज कितना हो गया। लेकिन अगर दो-तीन साल कहीं बाहर गया है और वहां से जब आता है तो मां भी देखती रह जाती है, अरे! तू तो इतना सा गया था, इतना बड़ा बनके आ गया। उसके मन को एक नया संतोष मिल जाता है।

और मुझे बताया गया है कि इस वर्ष इन पुरस्‍कारों में जो आवेदन आए, यहां पर बैठे हुए तो लोग बहुत प्रसन्‍न हैं, लेकिन मुझे प्रसन्‍न होने में बहुत मुसीबत रहती थी। अच्‍छा ही है।

क्‍या आज भी मेरे देश में ऐसे districts हो सकते हैं, ऐसे अफसर हो सकते हैं कि जिनका मन ही न करे कि मैं भी स्‍पर्धा में शरीक हो जाऊं? मैं भी कोशिश करूं? मैं समझता हूं जो आए हैं उनका स्‍वागत है लेकिन जो नहीं आए हैं उनके लिए मुझे चिन्‍ता सता रही है।

इसका मतलब हुआ कि उनकी जिंदगी में ठहराव आ गया है, भीतर की ऊर्जा समाप्‍त हो चुकी है और ये जिंदगी नहीं हो सकती। जीवन के आखिरी पल तक नया करने का अगर इरादा नहीं, उमंग नहीं, उत्‍साह नहीं, कोशिश नहीं, तो फिर उससे बड़ा जीवन का अंतकाल नहीं हो सकता है।

और मैं नहीं मानता कि district level पर कोई बहुत बड़ी आयु में और बहुत मुसीबतों में फंसे हुए लोग हैं, मैं नहीं मानता। ऊर्जा से भरे हुए लोग होते हैं, कुछ कर दिखाने के हौसले को ले करके आए होते हैं। तो मैं चाहूंगा कि अब हम ये भी कर सकते हैं कि कोई ये भी कहे कि- लिखे- मुझे इस बार, इस साल कुछ कहने को, करने योग्‍य मेरे पास नहीं है, क्षमा करें, बस इतना कर दे। कभी तो उसका पता ही नहीं होता है कि वो स्‍पर्धा से हट चुका है।

और मैं ये चाहूंगा कि इस बार जो आपके पास आए हैं, उसमें जो आखिरी 25 हैं, उनको जरा खोजा जाए। उनको एक बार बुलाया जाए, उनकी मुसीबतें समझी जाएं। मैं किसी के प्रति एक्‍शन के पक्ष का व्‍यक्ति नहीं हूं। उनको हम समझें, क्‍या कठिनाई है। क्षेत्र विशेष की कठिनाई है, उसके परिवार में कोई समस्‍या है; कुछ तो होगा।

मैं नहीं मानता हूं मेरा साथी ऐसा हो सकता है, यार चल लो, चलने दो, जिंदगी गुजारी है, ऐसा नहीं हो सकता है; वो मेरासाथीहो ही नहीं सकता। उसके दिल में कुछ न कुछ तो ऊर्जा पड़ी होगी। लेकिन हम में से कोई फिर से एक बार जो उस पर राख जम गई है, उसमें एक बार फिर चेतनमंद करने का प्रयास करे। आप देखिए वो 25 जो इस बार पीछे हैं, मैं विश्‍वास  से कहता हूं, अगर उनको मौका मिलेगा तो शायद पहले 25 में वो ही होंगे अगली बार।

आखिरकार सफलता के अंदर योजनाओं का जितना महत्‍व है उससे ज्‍यादा मानवीय स्‍पर्श का है, और ये मानवीय स्‍पर्श ही है जो team spirit को पैदा करता है। ये मानवीय स्‍पर्श ही है जो सपनों को साकार करने के लिए खपरे के इरादों को मजबूत करता है। और इसलिए कहा, हमारी कोशिश जो अच्‍छे हैं उनको पुरस्‍कार करने का अवसर मिले लेकिन जो कठिन हैं उनको अधिक प्‍यार दे करके, अधिक प्रोत्‍साहन दे करके, एक अच्‍छे माहौल में यहां बुला करके, आओ हम भी, और मैं भी समझ लूंगा, क्‍योंकि कोई निकम्‍मा नहीं है जी, कोई बेकार नहीं है। हर कोई एक ऊर्जा ले करके आया है। आवश्‍यकता है कि हम उस ऊर्जा को….

कभी-कभी हमने देखा होगा कि घर में एकाध बिजली का बल्‍ब चलता नहीं है। तो सीधा सी सोच यहीं होता है कि नहीं ये तो फ्यूज हो गया है, ये लट्टू बेकार है। लेकिन दूसरा समझदार होता है, कहता है ठहरो जरा, कहींdisconnect तो नहीं हो गया?  तो वो प्‍लग को ठीक करता है और फिर वो लट्टू काम करने लग जाता है। कहीं-कहीं वो किनारे पर बैठा हुआ हमारा व्‍यक्ति हमसे disconnect तो नहीं हो गया है? और एक बार आप देख लीजिए, थोड़ा सा connect कर लीजिए, फिर वो बिजली की तरह चमकने लग जाएगा और पूरी रोशनी देना शुरू कर देगा, जो ओरों की जिंदगी को बदलने के लिए काबिल होती है।

आज मुझे यहां दो पुस्‍तकों का लोकार्पण करने का भी मौका मिला है। Prime Minister’s Award जो प्राप्‍त किए हैं, उसकी सारी उसमें बारीकियां हैं, एक इसे और दूसरा जो किताब है aspiration districts के संबंध में। अब तो मैं समझता हूं बहुत बड़ी मात्रा में यहां से हमारे अधिकारी district में जा रहे हैं। एक प्रकार से back to basic का movement चल रहा है।

उसने भी सोचा नहीं होगा कोई ऐसा भी प्रधानमंत्री आएगा यार, फिर उसी काम में रगड़ेगा। लेकिन मैं देख रहा हूं कि करीब-करीब 1000 अफसर दूर-सुदूर उन district में जाएं और जो उस राज्‍य की एवरेज में भी पीछे हैं, और कोई ये 1000 लोग आगे आए हैं, वो कोई हुक्‍म से नहीं आए हैं, अंत:प्रेरणा से आए हैं। ये अंत:प्रेरणा ही है जो मुझे उस aspirational districtको leading roleमें देख रही है जी। आप देखिए अगर तीन साल हम, तीन साल निर्धारित लक्ष्‍य को ले करके time frame में उस काम को करेंगे तो ये hundred and fifteen districts राज्‍य के driving force बन जाएंगे, देश के driving force बन जाएंगे; ये ताकत उसमें पड़ी है।

और हर किसी को लगता है कि जितने parameter में हमको, क्‍योंकि अनुभव ये आता है कि व्‍यवस्‍था में कोईdistrict होता है, push करते हैं, हमारे आंकड़े-वांकड़े ठीक हो जाते हैं तो जब भी पेश करना होता है और हो जाता है भई हमने hundred का टारगेट किया था 80 achieve कर लिया, लेकिन 80 एक ही कोने में कर लिया है।

कभी हम, अब तो साइकिल का जमाना नहीं रहा, लेकिन पहले के जमाने में साइकिल में जब हवा भरने जाते थे फिर वो एक मीटर रहता था, नापते थे कि कितने point हवा उसमें भरी, तो उससे पता चलता था कि अब साइकिल चलेगी। लेकिन कभी-कभार साइकिल की ट्यूब में किसी एक तरफ गुब्‍बारा हो जाता था। और वो जो मीटर था वो बराबर दिखाता था कि हां जितने point हवा जानी चाहिए, उसमें गई है। मीटर सही चल रहा है; साइकिल चलेगी कि नहीं चलेगी? क्‍योंकि एक तरफ वो गुब्‍बारा हो गया है, बाकी ट्यूब खाली पड़ी है; वो गुब्‍बारा ही रुकावट का कारण बन जाता है। कभी-कभी कुछ राज्‍यों में एकाध-दो district इतना अच्‍छा कर लेते हैं कि आंकड़ों में तो राज्‍य बहुत अच्‍छा लगता है लेकिन पूरे विकास की यात्रा के लिए वो ही एक रुकावट बन जाता है।

हमारी कोशिश है hundred fifteen districts में समान रूप से विकास की मात्रा को बढ़ाते चलें, आप देखिए परिणाम तेज आएंगे। एक सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा होता है और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा होता है कि आपने देखा होगा घर में भी तीन-चार बच्‍चे हैं, एकाध अच्‍छा करता है तो मां-बाप का हमेशा उस पर ध्‍यान रहता है। कोई मेहमान आ जाएंगे तो उसी को पेशकरते हैं, इस बार दसवीं में इतने marks लाया था। येXII में गया है, बहुत अच्‍छा है, ये तो डॉक्‍टर बनेगा जी। और दो जो हैं उसको क्‍या, अभी तो बात मत कर, कमरे में बैठ और पूछते हैं तो नहीं वो खेल रहा है, खेलने के लिए गया है बाहर। अब, हमें तो खुशी हो जाती है मां-बाप ने अच्‍छे बेटों को दिखा दिया, दुनिया को मैसेज चला गया, लेकिन उन दो बच्‍चों के मन पर इतनी बीतती है वो निराशा की गर्त में हमारे ही प्रयासों से हम धकेलते चले जाते हैं। फिर वो खुद में उठने का हौसला खो देता है।

हमारे यहां भी इन districts का वही हाल हुआ है कि जो अच्‍छे हैं उनको तो बहुत बार ले आए, Prime Minister Award तक खींच करके ले आए, लेकिन जो- कठिनाई है उनकी, कोई न कोई स्‍थानीय अवस्‍थाएं होंगी, कुछ न कुछ कारण होंगे; अब वो, उनको लगता है छोड़ो यार हम तो किसी गिनती में ही नहीं हैं, हमारा तो कोई हिसाब-किताब है नहीं, चलो यार दो-तीन साल यहां लगी है ड्यूटी, निकाल देंगे यार। और वो भी फिर सोचता रहता है कि कोई अच्‍छे कुर्ते वाले नेताजी कौन हैं जरा ट्रांसफर करवा दो और जितना लंबा कुर्ता उतनी लंबी फिर पहुंच़।

और इसलिए मैं समझता हूं कि हम लोगों के लिए बड़ी आवश्‍यकता है कि हम सिर्फ आंकड़ों की पूर्ति और उसमें हमारा ग्राफिक सिस्‍टम में ऊंचाई के बजाय सफलता के लिए एक strategic सोच बहुत आवश्‍यक होती है। अगर strategic thinking होता है तो फिर proper planning के लिए भी मन उसके साथ अपने-आप जुड़ता रहता है, experience उसमें role playकरता है। और आपने देखा होगा कि जो लोग सफल हो रहे हैं वे जोdetailing करने की आदत रखते हैं वही सफल होते हैं।

कभी-कभार हम लोगों को लगता है यार ये कोई आपका कार्य है, इतना detail काहे देखते हो। उसको हर बार इस detail में नहीं जाना होता है। कुछ चीजों में अगर detailing वो कर लेता है तो अपनी टीम को भी आदत लग जाती है और वो एक character बन जाता है, एक स्‍वभाव बन जाता है, एक संस्‍कार बन जाते हैं। और आप, उसके बाद आप देखिए कि आपको बार-बार implementation के लिए देखना नहीं पड़ता। वो अपने-आप चलता रहता है।

आपने किसी मां को सब्‍जी में नमक कितना डाला, वो सोने की तरह तराजू में करते देखा है क्‍या?  की सोने तरह घर में तराजू लगा है, बड़ा इलेक्‍ट्रॉनिक तराजू लगा है और फिर आप नमक का नाप लें, फिर आप डाल दें, ऐसा तो नहीं होता? आंख बंद करके डाल देती है ठीक हो जाता है क्‍योंकि किसी समय detailing कर लिया था, अब practice हो गई है, अब आराम से इस चीज को कर लेती है। हम हमारी व्‍यवस्‍था में स्‍वभाव को अगर लाते हैं तो हम अपने-आप में मैं समझता हूं कि बहुत बड़ा परिणाम ला सकते हैं।

इन aspirational districts को हर parameter से हमने ऊपर लाना है। एकाध-दो चीज में अच्‍छा कर-करके दिखावा नहीं करना है जी। हर प्रकार से हमने उन parameters को बदलना है। लेकिन अगर सरकारी व्‍यवस्‍था से हुआ होता तो बहुत पहले ही हो गया होता। ऐसा तो नहीं है कि ऐसे district में कोई अफसर नहीं आए होंगे। आज भी हो सकता है जो aspirational districts हैं, वहीं पर जिसने अपने जीवन की शुरूआत की होगी, वो शायद उस राज्‍य का chief secretary बन करके बैठा होगा। मतलब अफसर तो होनहार था ही था, अफसर तो शानदार था ही था, कोई यहां दिल्‍ली में आ करके बहुत ही अच्‍छे department का secretary बना हुआ होगा। हो सकता है कोई ऐसा भी अफसर होगा कि जिसकी चारों तरफ वाहवाही सुनने को मिलती होगी और वो वहीं से आया होगा जहां आज कई पिछड़े हुए district में जिंदगी के महत्‍वपूर्ण 25-27-30 साल की उम्र में तीन साल वहां बिता करके आया होगा। इसका मतलब ये हुआ कि वहां कुछ योग्यता का ही अभाव होगा, ऐसा नहीं होगा, सब कुछ होगा।

भारत जैसे देश में सफलता के लिए हमारी लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था, ये कोई पांच साल का contract system नहीं है जी। हमारी democratic व्‍यवस्‍था, यानी हम और जनता के बीच का नाता है, ये जो सोच है वो ही एक सबसे बड़ी रुकावट है। और इसलिए जन-भागीदारी भारत जैसे देश की सफलता का आधार है participatory democracy. हमने देखा है, आप में से सब लोगों ने अफसर के नाते जब district level पर काम किया होगा, हम natural calamities के समय कल्‍पना भर का quantum of workजिसको कहते हैं, हम बड़ी आसानी से कर लेते हैं। एक व्‍यवस्‍था तो वो ही है लेकिन होता इसलिए है कि natural calamities के समय समाज पूरी तरह हमारे साथ जुड़ जाता है। हर कोई हाथ बंटाता है, और उसके कारण हम संकट से बाहर निकल आते हैं। और मुझे लगता है कि हम देश को आगे ले जाने में जन-भागीदारी का महात्‍मय कैसे बढ़ाएं?  उसके महत्‍व को कैसे हम स्‍वीकार करें?

दुर्भाग्‍य से माना गया है कि ये काम elected bodyका है, political leaders का है। ये हमारी सोच की सबसे बड़ी गलती है। उनको जो करना है वो करते रहेंगे लेकिन शासन व्‍यवस्‍था में हम वो लोग हैं कि जिसके करने से सामान्‍य मानवी को कभी ये नहीं होता है कि अरे कुछ अपने लिए कर रहा है। मैं कुछ भी करूंगा तो पहले- यार, हूं, 2019 आ रहा है, इसलिए मोदीजी आए हैं। तुरंत उसके दिमाग में और 24×7 का तो यही काम होता है, वो inject करता ही रहता है।

आप जाएंगे तो ऐसा नहीं लगता है, आप जांएगे तो उनको लगता है अरे नहीं, नहीं, साहब आए हैं, इतनी मेहनत कर रहे हैं जरूर यार कुछ मतलब की बात होगी। वो तुरंत आपके साथ जुड़ता है। और इसलिए आज हमारे administrative system के जो अलग-अलग स्‍तर के लोग हैं, उन्‍होंने leadership देने की दिशा में आगे आना चाहिए। ये एक नया पहलू है जिस पर हमने सोचना चाहिए।

आजादी के पहले administration का काम अंग्रेज सल्‍तनत को सलामत रखना था, आजादी के बादadministrative व्‍यवस्‍था से जुड़े हुए लोगों का काम जनता-जनार्दन को आन-बान-शान-आबाद करने का होता है। यही अगर सपना रहता है तो मैं मानता हूं जिन उम्‍मीदों को ले करके चले हैं हम उन उम्‍मीदों को पूरा कर सकते हैं। और इसलिए हम जिन कामों को ले करके निकले हैं, न्‍यू इंडिया का सपना है। ये बात सही है जब चम्‍पारण सत्‍याग्रह महात्‍मा गांधी ने किया होगा, जब आजादी के लिए बिगुल बजाया होगा तो कोई दूसरे ही दिन सुबह आजादी मिल जाने वाली है, ऐसा थोड़ा होगा। लेकिन चूंकि दूसरे दिन आजादी नहीं मिलने वाली है, इसलिए गांधीजी को अपने मुंह पर ताला लगाकर बैठना? कि यार आजादी मत बोलो, अभी मिलने वाली नहीं है, लोग निराश हो जाएंगे; जी नहीं, समाज के सामान्‍य मानवी के हृदय में आशा-आकांक्षा-अरमान-सपना-उम्‍मीदें इसकी cumulative effect होती है जो उसको आगे चलने के लिए हमें सहज रूप से जोड़ देती है।

अगर twenty, twenty two आजादी के 75 साल हो रहे हैं, इससे बड़ी प्रेरणा क्‍या होती है जी? हम पारिवारिक जीवन में भी देखते हैं, पता होता है कि भई कि चलो मई महीने में बच्‍चे का जन्‍मदिन आने वाला है तो फरवरी-मार्च से ही, अच्‍छा जी जन्‍म दिन पर क्‍या करेंगे? समझदार मां-बाप कहते हैं देखो भई इस बार तुम्हारा जन्‍मदिन बहुत बढ़िया मनाना है। तुम एक काम करो, इस महीने इतना कर दो। उसको भी लगता है, हां-हां मेरा जन्‍मदिन है, मैं जरा ये कर लूं। घर में शादी होने वाली है, लगता है यार बहुत साल हो गए घर को चूना-वूना नहीं लगवाया, रंग-रोगन नहीं किया है; चलो शादी है करवा लेंगे।

हर एक व्‍यक्ति के जीवन में एक-एक-एक-एक ऐसे मुकाम होते हैं। उन मुकामों के आधार पर ही गति निर्धारित हो जाती है।twenty, twenty two, इससे बड़ा कोई मुकाम नहीं हो सकता है हमारे लिए, कि देश के दीवानों ने देश की आजादी के लिए जिंदगी खपा दी थी। इससे बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती है। आइए हम जिसको भी प्‍यार करते हैं, उसका पुन: स्‍मरण करें और उसके जो सपने थे, उसका स्‍मरण करें। और स्‍मरण करें, हम भी चल पड़ें, पांच साल में हम बहुत कुछ देश को दे सकते हैं जी, बहुत कुछ दे सकते हैं। जिन्‍होंने आजादी के लिए जंग लड़ा होगा, उन्‍होंने थोड़ा सोचा होगा कि चलो भई देश की आजादी आ जाएगी, मैं कुछ बन जाऊंगा। नहीं, उनको तो पता था जब आजादी आएगी तब तक हम पता नहीं कहां होंगे कहां नहीं होंगे। लेकिन वो अपने सपनों के लिए खपता रहा। और वो खप गए तो हम उसको पाने के लिए सौभाग्‍यशाली भी बने। क्‍या हमारा भी तो आने वाली पीढ़ी के लिए कोई दायित्‍व होता है? और इसलिए हमारी जो एक व्‍यवस्‍था है उसको ले करके हमें आगे चलना चाहिए।

ये भी बात हमको स्‍वीकार करनी होगी कि हमारा एक structure होगा, हमारी निर्णय प्रक्रियाएं होती होंगी, एक, मैं तो अनुभव किया हूं, क्‍योंकि मुझे लंबे अर्से तक राज्‍य में काम करने का सौभाग्‍य मिला। एक प्रकार से आप ही लोगों के बीच में मैं पिछले 20 साल से पला-बढ़ा हूं। आप ही लोगों के अनुभव से सीखता आया हूं मैं क्‍योंकि आपही के बीच में मैं रहा हूं। लेकिन मैंने ये अनुभव किया है कि यही पुराना structure होने के बावजूद भी अगर नवाचार नहीं होगा, innovation नहीं होगा, हमारी निर्णय प्रक्रियाओं में हम तेजी नहीं लाएंगे। और आज सौभाग्‍यसे technology हमारी कमियों को पूरा कर सकती है, हमारी वो additional strength बन सकती है। हम चीजों का सरलीकरण करने के लिए technology का भरसक उपयोग कर सकते हैं। क्‍या हम उन चीजों को स्‍वीकार….

आपको पता होगा जब मैं नया-नया आप सबके बीच में आया था तो मेरा बड़ा आग्रह था कि हम space technology का उपयोग हमारी governance में कैसे करें? और मैंने joint secretary level के अधिकारियों को अभ्‍यास दिया, फिरweekend में लगातार उस प्रक्रिया को चलाए रखा। तो हमारे अफसरों को भी ध्‍यान, ऐसा नहीं कि उनको कोई  technology की समझ नहीं है, लेकिन उनको लगता है चलो भाई जो चलता है, मैं कहां बदलाव करूं, कौन मानेगा मेरी बात को, तो वो बदलाव में isolation में फील करता था और उसेinstitutionalize नहीं कर रहा था।

अब धीरे-धीरे समझ आया कि हां space technology ultimately तो governance के लिए काम की चीज है। जिसने भी दिमाग खपाया, एकाध नौजवान को अपने साथ रख लिया, उसको कह दिया कि चलो तुम mind apply करो। Planning की detailing के अंदर उसको space technology के अंदर बड़ा role play कर रही है।

ये सारी व्‍यवस्‍थाएं जो आज से 20-25 साल पहले जो अफसर थे, उनके भाग्‍य में नहीं थीं, हम लोगों के भाग्‍य में हैं। क्‍या हम उपलब्‍ध जितनी भी प्रकार की technology है, ये हमारी स्‍वयं की capacity building के लिए, हमारे अपने सामर्थ्‍य के expansion के लिए, हमारी reach को और अधिक बढ़ाने के लिए, क्‍या हम इसका उपयोग कर सकते हैं क्‍या?  अगर उन चीजों को हम करते हैं तो मुझे विश्‍वास है कि हम इच्छित परिणाम को प्राप्‍त कर सकते हैं, और इसलिए समय की मांग है, जिस समय हम नारे सुन रहे थे, 21वीं सदी, 21वीं सदी आ रही है; हमने, आप भी तो उस समय शायद जूनियर अफसर रहे होंगे, राज्‍यों में काम करते होंगे। और उस समय बड़ा interesting cartoon भी famous हुआ था। एक सज्‍जन रेलवे प्‍लेटफार्म पर खड़े थे और दूर से ट्रेन आ रही थी। तो किसी ने उनको पकड़ा, अरे भाई तेरे को दौड़ने की जरूरत नहीं,  वो तो आने ही वाली है; यानी 21वीं सदी आने ही वाली थी, तुझे सामने से भागने की जरूरत नहीं है। 21वीं सदी के दो दशक पूर्ण होने पर आ रहे हैं। क्‍या हमने 21वीं सदी के अनुकूल हमारी निर्णय प्रक्रियाओं को, हमारी व्‍यवस्‍थाओं को हमने बदलाव करने की कोशिश की है क्‍या?

आज आपके सामने बड़े विस्‍तार से artificial intelligence की बात की गई। अब by and largeलोगों कोartificial intelligence कहो तो driverless car की तरह गाड़ी रुक जाती है उनकी। दुनिया बहुत बदल चुकी है जी। हम उन चीजों से, हो सकता है हम कर नहीं पाएंगे लेकिन ये भी एक शास्‍त्र है जो हमारे काम आ सकता है, उसके लिए expert हम hire करेंगे, रखेंगे। लेकिन हम व्‍यवस्‍थाओं की ओर अगर खुला मन नहीं रखेंगे तो क्‍या वो कहेंगे।

और आज दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती विकास के सामने सपनों को पूरा करने के लिए हम बदलती हुईtechnology के साथ अगर cope upनहीं कर पाएंगे तो शायद हम बहुत पीछे रह जाएंगे।

भारत के विषय में दुनिया में सभी तो हैं कि भई IT revolution में हमारा बहुत बड़ा contribution है। लेकिन हमारा दुर्भाग्‍य है कि हम उसी को ले करके, वाह-बहुत हो गया, बहुत हो गया। हम मूलभूत चीजें ले करके बैठ गए हैं, दुनिया ने उसी में से अपनी-अपनी चीजें create कर-करके विश्‍व खड़ा कर दिया।

हमें जो श्रेष्‍ठ हैं उसी के गीत गा करके बैठे रहने से काम चलने वाला नहीं है। हल पल, शायद 200 साल मेंtechnology ने मानव-जाति पर जितना प्रभाव पैदा नहीं किया होगा, उतना technology ने गत 40 साल में प्रभाव पैदा किया है। और मैं मानता हूं कि सामान्‍य मानवी के जीवन में, governance की जिंदगी में ये बहुत बड़ा role play करने वाला है। हम उन चीजों को ले करके अगर कर सकते हैं तो हो सकता है हमारा काम तो आसान होगा ही होगा, दूरगामीसाकारात्‍मक प्रभाव पैदा करने वाला होगा।

किसी भी सरकार की सफलता के मूल में, जब मैं कभी कहा था भाई minimum government – maximum governance. कभी-कभी ये सोचना चाहिए आपके इस award में कि कौन department है, departmentसरकार का, जो इस minimum government – maximum governance को साकार कर रहा है।

मैंने शायद पहले एक बार कहा था कहीं, मुझे पता नहीं किस forum में कहा होगा, शायद छोटी मीटिंग में, शुरू-शुरू में नया-नया आया था तो बात कर रहा था।

हिन्‍दू mythology में कहते हैं कि चार धाम की यात्रा करो तो मोक्ष मिल जाता है। ऐसा कहते हैं, पता नहीं कहां है, कहां नहीं, मुझे तो मालूम नहीं। लेकिन सरकार में 32-32 यात्रा के बाद भी फाइल का मोक्ष नहीं होता है। क्‍या हम लोगों को नहीं लगता है कि इसके कुछ हम रास्‍ते, और मैं ये shortcut शब्‍द प्रयोग नहीं करता, क्‍योंकि आप, अब तो शायद आपको रेलवे में जाने का सौभाग्‍य नहीं मिलता होगा, लेकिन मेरी तो पटरी पर जिंदगी गई तो मुझे मालूम है वहां पर लिखा रहता था- shortcut will cut you short. अगर कोई पटरी crossकरके जाने वाली जगह है तो वहां लिखा रहता है- और इसलिए मैं आपको shortcut नहीं कह रहा। लेकिन क्‍या हमें नहीं लगता है कि इतनी सारी चीजें, ये चीज यहां से जा करके ही आएगी साहब, ये foolproof, कहां तक हम ये चलाते रहेंगे जी?

हर फाइल को, हरेक को ठप्‍पा मारना ही चाहिए, जरूरी है क्‍या? क्‍या हम इन प्रक्रियाओं को सरल कर सकते हैं क्‍या? क्‍या उस पर जिसने अच्‍छे से काम किया, और foolproof बन सकता है, ऐसा नहीं प्रक्रियाएं सरल हो गईं तो foolproof  नहीं होता है। लेकिन हमें ये आदत छूटती नहीं है, हम आदत बदलते नहीं हैं।

What’s app का जमाना आ गया होगा, SMS का जमाना आया होगा,हमने SMS कर भी दिया होगा घर पर कि आज शाम को मेहमान आने वाले हैं, दो लोग खाना खाने के लिए आने वाले हैं, दोपहर को तीन बजेSMS कर दिया होगा, लेकिन 5 बजे फिर फोन करके पूछेंगे, मेरा SMS पढ़ा था?  तो हम व्‍यवस्‍थाओं पर भरोसा नहीं कर रहे। और इसलिए हम अतिरिक्‍त हमारी शक्ति खपा रहे हैं।

ये civil service day है,इसेintrospection के लिए होना चाहिए कि दुनिया की तुलना में हम उसी दिशा में चल रहे हैं कि deviated. दुनिया की तुलना में हम गति में बहुत पीछे हैं क्‍या? जो काम वो twenty-thirty में कर लेंगे क्‍या हमको उस पर सोचते-सोचते ही twenty-seventy  आ जाएगा क्‍या?

आप कल्‍पना कर सकते हैं जो हाल वो aspirational district का है, कहीं ऐसा तो न हो हमारे रहते हुए, हम दुनिया की नजरों में अपने-आपको वहां ला करके खड़ा कर दें। संभावनाओं से भरा हुआ देश है, शक्ति-सामर्थ्‍य ये भरा हुआ देश है, नई चीजों को स्‍वीकारने के स्‍वभाव का देश है, बदलती हुई परिस्थितियों से मुकाबला करने की ताकत रखने वाला देश है। क्‍या हम उसके लिए अपने-आपको सजगकर रहे हैं क्‍या? क्‍या घड़ी की सुई मेरी जिंदगी को चला रही है कि सामान्‍य मानवी के सपने मुझे चला रहे हैं? अगर घड़ी की सूई मेरे को चला रही है तो हर पहली तारीख को तनख्‍वाह आ जाता होगा, बैंक एकाउंट में जमा हो जाता होगा, जिंदगी वहीं अटक जाती है लेकिन जो सामान्‍य मानवी के साथ अगर मेरी जिंदगी का हर पल जुड़ जाता है तो उसको तो सपने साकार होंगे ही होंगे, लेकिन मेरी जिंदगी में पीढ़ी-दर-पीढ़ी संतोष का एक अनुभव करके मैं चला जाऊंगा। ये विश्‍वास मेरे भीतर अगर भरा हुआ है तो मैं समझता हूं मैं बहुत कुछ देश को दे सकता हूं।

और इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं, आप में से किसी के पास दो साल होंगे, एक साल होगा, 6 महीने होंगे, पांच साल होंगे, दस साल होंगे; और दूर-दूर जो technology के माध्‍यम से मुझे नई पीढ़ी के मेरे  नौजवान साथी सुन रहे हैं; और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं जी मैं आपका एक साथी हूं। मेरे कभी दिमाग में मुझे अभी तक आया नहीं है कि वो पहले पता नहीं क्‍या-क्‍या होता था। मैं उस दुनिया का नहीं हूं जी। मैं सामान्‍य मानवी आपका साथी हूं। आपके साथ कंधे से कंधा मिला करके काम करना चाहता हूं।

जब मुझे मंसूरी जाना था तो जो कार्यक्रम बनके आया था जाएंगे भाषण झाड़ेंगे और वापस आएंगे; मैंने कहा, जी नहीं मैं जाऊंगा, उनके साथ गुजारा करूंगा। मैं जरा देखूंगा तो सही कि जिन कम से कम हिन्‍दुस्‍तान केtwenty percent districts को आने वाले तीन साल में जिनके हाथों में सुपुर्द होने वाले हैं, मैं जरा देखूं तो सही उनके भीतर वो कौन सी ऊर्जा है, वो कौन सा उनका सपना है, मैं जरा पाऊं तो, अपने-आपको तो समझूं। और मैं, मैं वहां ऊर्जावान हो करके वापस आया था, क्‍यों हर नई-नई ऊर्जा से भरा हुआ नौजवान था।

इस रूप में मेरी काम करने की तैयारी है। और इसलिए आपके एक साथी के रूप में मैं काम करना चाहता हूं। हम मिल करके, और मैं चुनाव के लिए काम नहीं करता, और‍ चिंता मत करो आपमें से एक भी अफसर नहीं होगा हिन्‍दुस्‍तान के किसी कोने में। 20 साल का मेरा  शासन व्‍यवस्‍था में जीवन होने के बाद भी एक बार भी किसी को एक टेलीफोन ले करके मैंने काम चिन्हित नहीं किया जी, ये मेरी जिंदगी की विशेषता है। और ये इसलिए है क्‍योंकि देश के सिवाय जीवन में कोई सपना नहीं है जी।

सवा सौ करोड़ देशवासियों की जिंदगी को बदलने के सिवाय कोई इरादा नहीं है। जो व्‍यवस्‍था में जहां भी काम करने का मौका मिला है, सिर्फ और सिर्फ इसी एक भाव के लिए समर्पित जीवन जीने का प्रयास रहा है। और इसलिए मैं कहता हूं दोस्‍तो, मेरे जीवन में आप असामान्‍य लोग हैं, सामर्थ्‍य से भरे हुए लोग हैं, अनुभव की विरासत ले करके आए हुए लोग हैं। आपकी शक्ति, आपका सामर्थ्‍य, आपका सपना, उसे मैं अपना बनाना चाहता हूं ताकि सवा सौ करोड़ देशवासियों के सपने साकार हम अपनी आंखों के सामने देख सकें।

इसी एक भाव के साथ आज आपका ये civil service dayसांच अर्थ में देश के सामन्‍य मानवी को समर्पित हो, उनके सपनों को समर्पित हो; इसी संकल्‍प को ले करके चलें। 2022 भारत की आशा, आकांक्षाओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाला बने। इसी अपेक्षा के साथ मेरी आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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