नई दिल्ली: केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री हंसराज गंगाराम अहिर ने जेल प्रशासन के अधिकारियों का आह्वान किया है कि जेल सुधारों में तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कौशल विकास कार्यक्रम को अपनाएं। राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के जेल प्रमुखों का जेल सुधार पर 5वें राष्ट्रीय सम्मेलन का आज यहां उद्घाटन करते हुए श्री अहिर ने कहा कि कैदियों को खेती,रेशम उत्पादन, मधुमक्खी पालन मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि उनका पुनर्वास हो सके और वे समाज में फिर से एकीकृत हो सकें। श्री अहिर ने बताया कि महाराष्ट्र ने कैदियों के लिए आवासीय कालोनियां और खुली जेल बनाने की पहल की है जहां वे अपने परिवार के साथ आम नागरिक की तरह घर में नजरबंद की तरह जीवन व्यतीत कर सकें। उन्होंने कहा कि यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय ने विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा करने को आसान बनने के लिए मार्गदर्शन जारी किए हैं लेकिन इस दिशा में जेलों में भीड़ को कम करने में बहुत धीमी प्रगति हो रही है।
उन्होंने बताया कि पुलिस और जेलों के आधुनिकीकरण पर चालू वर्ष के बजट में 1,800 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है और जरूरत पड़ने पर इस राशि को बढ़ाया भी जा सकता है। उन्होंने खुलासा करते हुए कहा कि मादक पदार्थों के प्रसार, गैंगवार और ऐसे ही अन्य खतरों के कारण जेल प्रशासन बदनाम है। उन्होंने जेलों के स्वच्छ प्रशासन के लिए आह्वान किया और कहा कि कैदियों में सुधार लाने के लिए जेल अधिकारियों के व्यावहार में सुधार लाना चाहिए। इस अवसर पर पुलिस शोध एवं विकास (बीपीआर एंड डी) ब्यूरो के महानिदेशक डॉ. मीरान बोरवंकर ने जेलों में भारी भीड़ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह जेल सुधार की प्रक्रिया में बड़ी बाधा है। उन्होंने बताया कि देश भर में पांच लाख कैदी जेलों में बंद हैं। इनमें बहुत बड़ी संख्या करीब 68 प्रतिशत विचाराधीन कैदियों की है और 2.4 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है। जेलों में भीड़ के अलावा जेल कर्मियों के करीब 35 प्रतिशत स्थान खाली रहने से जेल अधिकारियों के लिए यह व्यावहारिक नहीं होता कि वे जेल सुधारों को लागू कर सकें। सभी जेल कर्मचारी जेलों की सुरक्षा,प्रशासन और अदालती प्रक्रिया में लगे रहते हैं इससे उन्हें कैदियों के पुनर्वास या एकीकृत करने के प्रयास के लिए या तो बहुत कम समय मिलता है या समय ही नहीं मिलता। डॉ. बोरवंकर ने सुझाव दिया कि जेलों का नाम बदलकर सुधारक प्रशासन या सुधारक घर रखा जाना चाहिए जिससे इसकी दंडात्मक कार्रवाई की भूमिका से सुधारात्मक भूमिका की बदली हुई भूमिका की झलक मिले।
दो दिवसीय इस सम्मेलन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सुधारक प्रशासन जैसे सभी हितधारकों को विचारों की अदला-बदली करने और एक दूसरे के अनुभवों से सीखने का प्लेटफार्म प्रदान करेगा। इस सम्मेलन में राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के जेल विभाग का नेतृत्व करने वाले वरिष्ठ अधिकारी भाग ले रहे हैं। पहली बार केंद्रीय जेलों और जिला जेलों के अधीक्षकों को उनके अनुभव और विचार साझा करने के लिए सम्मेलन में बुलाया गया है। इसके अलावा अग्रणी विश्वविद्यालयों, गैर सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि और अपराध विज्ञान विभाग तथा कानून के छात्र भी इस सम्मेलन में पहली बार हिस्सा ले रहे हैं।