नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज देशभर के विभिन्न उच्च संस्थानों के 30 प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों से भेंट की। यह बातचीत ढाई घंटे से ज्यादा चली, जिसके दौरान कई वैज्ञानिकों ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में भारत द्वारा की गई प्रगति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की। उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय का आह्वान किया कि वे भारत के समक्ष आने वाली समस्याओं को हल करें जिनमें ऊर्जा और पानी जैसे प्रमुख क्षेत्र भी शामिल हैं।
गंगा सहित नदियों को साफ करने के कार्य का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह एक ‘वैज्ञानिक परियोजना’ है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अभिनव तरीके अपनाए जाने की चुनौती भारतीय वैज्ञानिकों के सामने है।
स्वास्थ्य क्षेत्र का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय विज्ञान को अनोखी स्वास्थ्य आवश्यकताओं को हल करना चाहिए और भारत के सामने इस संबंध मे जो चुनौतियां हैं, उनको दूर करना चाहिए। उन्होंने कुपोषण और कुछ जनजातीय क्षेत्रों में व्याप्त सिकेल-सेल रक्ताल्पता जैसे रोगों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि भारत के पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक प्रणाली के साथ संयोजित करने के उपाय किये जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को चिकित्सकीय उपकरण निर्माण में आत्मनिर्भर होना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की ऊर्जा समस्याओं का बेहतरीन हल सौर ऊर्जा है। उन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे ऐसे कारगर उपकरण विकसित करें जिससे पूरे क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सके। उन्होंने भारतीय वैज्ञानिक समुदाय से कहा कि वे पेरिस में आसन्न सीओपी-21 जलावायु सम्मेलन के परिप्रेक्ष्य में वैश्विक नेतृत्व की अवधारणा और विचारों को आगे बढ़ाएं।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दोहराया कि विज्ञान सार्वभौमिक है और प्रौद्योगिकी को स्थानीय होना चाहिए। उन्होंने कृषि क्षेत्र में नवाचारों को प्रोत्साहन देने पर बल दिया ताकि कृषि उत्पाद का क्षय कम हो सके और कृषि उत्पादों के आयात को समाप्त किया जा सके। प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया कि भारत विश्वभर में अरंडी बीजों का सबसे बड़ा उत्पादक है। अन्य देश भारत से कच्चे अरंडी बीज का आयात करते हैं और उसे पूरे विश्व में तैयार करके निर्यात करते हैं।
प्रशासनिक पक्ष का उल्लेख करते हुए श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ऐसा लगता है कि भारतीय विज्ञान साइलो-दृष्टिकोण से बाधित है, जिसे अधिक समन्वय और बहु-विषयी अनुसंधान वातावरण बनाकर समाप्त किया जा सकता है।