नई दिल्ली: रक्षा विनिर्माण भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए मेक इन इंडिया अभियान के तहत चिन्हित 25 क्षेत्रों में एक अहम क्षेत्र है। नई सरकार ने रक्षा एवं नागरिक विमान निर्माण (एयरोस्पेस) क्षेत्र में ओईएम को शामिल करने समेत निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। रक्षा विनिर्माण निर्यात के तहत निजी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए नियमों और प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की निगरानी के तहत सभी मंत्रालयों/विभागों में सलाह-मशविरों की एक श्रृंखला आयोजित की गई है। उम्मीद है कि इससे बड़े पैमाने पर निवेश को बढ़ावा और विनिर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा।
निजी क्षेत्र की विनिर्माण कंपनियां केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क की अदायगी के मामले में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड और रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों के साथ घरेलू निजी कंपनियों को बराबरी का अवसर दिए जाने की लंबे समय से मांग कर रही थीं। एक क्रांतिकारी कदम के रूप में भारत सरकार ने अधिसूचना संख्या 23/2015- केन्द्रीय उत्पाद और संख्या 29/2015-के माध्यम से ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड और रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों द्वारा विनिर्मित और रक्षा मंत्रालय को आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं को वर्तमान में उपलब्ध उत्पाद एवं सीमा शुल्क छूट वापस ले ली है। यह खुली निविदाओं में निम्नतर दर उद्धृत करने के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को मिलने वाले रणनीतिक लाभ को वापस लिए जाने के द्वारा सरकारी अनुबंधों के लिए घरेलू निजी कंपनियों की बोली को बराबरी का अवसर उपलब्ध कराएगा। इस कदम के साथ ही सरकार ने बोइंग, एयरबस, लॉकहिड मार्टिन, बीएई सिस्टम्स आदि जैसी विदेशी ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर्स (ओईएम) की मांग की भी पूर्ति कर दी है।
भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और प्रतिरक्षा बाजार विश्व में सबसे आकर्षक बाजारों में एक है, क्योंकि भारत दुनिया में रक्षा वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक देश है। जैसा प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत इस विशिष्टता को अधिक दिनों तक बनाए रखने का इच्छुक नहीं है। सरकार ने प्रणालीगत तरीके से रक्षा क्षेत्र में विदेश प्रत्यक्ष निवेश की अधिकतम सीमा को बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने और स्थितियों को युक्तिसंगत बनाने के जरिए इस क्षेत्र को निजी निवेश के लिए खोल दिया है। औद्योगिक लाइसेंस के लिए आवश्यक लगभग 60 फीसदी वस्तुओं को अब विकेन्द्रित कर दिया गया है।