लखनऊ: मंत्री प्रो0 रीता बहुगुणा जोशी ने बच्चों को रोटा वायरस से होने वाली जानलेवा दस्त की बीमारी से बचाव हेतु पिलाई जाने वाली वैक्सीन का शुभांरभ किया। वैक्सीन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी और प्रचार के लिए गोमती नगर स्थित होटल में एक मीडिया कार्यशाला भी आयोजित की गई, ताकि इस वायरस से बचाव में मीडिया की सकारात्मक एवं प्रभावी भूमिका का उपयोग शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए किया जा सके।
प्रो0 जोशी ने द्वीप प्रज्ज्वलित कर तथा शिशुओं को वैक्सीन पिलाकर कार्यक्रम का शुभांरभ किया। इस अवसर पर उन्होनें कहा कि रोटावायरस दस्त के कारण गंभीर अवस्था में बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। कभी-कभी दस्त जानलेवा भी हो जाते हैं। हर्ष का विषय है कि राज्य के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में आज एक नई वैक्सीन शामिल की जा रही है, जो रोटावासरस के कारण होने वाली गंभीर दस्त से सुरक्षा प्रदान कराएगी। उन्होंने कहा कि प्रत्येक नवजात को जन्म के छठे, दसवें और चैदहवें सप्ताह में रोटा वायरस वैक्सीन की पांच बूंदे पेन्टा-1, 2 और 3 वैक्सीन के साथ पिलाई जानी है। अब उत्तर प्रदेश देश का ग्यारहवाॅं ऐसा राज्य हो जायेगा, जो इस वैक्सीन से बच्चों को रोटा वायरस से पूर्ण प्रतिरक्षित करेगा।
राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डा0 ए0पी0 चतुर्वेदी ने वैक्सीन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस वैक्सीन से दस्त के कारण होने वाली मौतों में कमी आएगी। यह वैक्सीन सबसे पहले भारत में नियमित प्रतिरक्षण कार्यक्रम के तहत 2016 में ओडिशा में शुरू की गई थी जिसके बाद इसे हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा और झारखंड में दिया जाना शुरू किया गया। परिवार कल्याण विभाग की महानिदेशक नीना गुप्ता ने कहा कि मई 2018 तक 2.1 करोड़ से अधिक रोटावायरस वैक्सीन बच्चों को दी जा चुकी है। रोटावायरस वैक्सीन के शुरूआती दौर में, केवल पहली ओपीवी की खुराक और पेंटावेलेंट के लिए आने वाले शिशुओं को रोटावायरस की ड्रॉप दी जाएगी। रोटावायरस वैक्सीन की मदद से हर साल डायरिया से 57 लाख नवजात शिशुओं का बचाव किया जाएगा।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश के मिशन निदेशक श्री पंकज कुमार ने कहा कि वैश्विक स्तर पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों में 9 प्रतिशत और भारत में 10 प्रतिशत के लिए डायरिया जिम्मेदार है। उन्होंने उपलब्ध आंकड़ांे के हवाले से बताते हुए कहा कि लगभग 40 प्रतिशत डायरिया का कारण रोटावायरस है, जिसके परिणाम स्वरूप देश में 5 साल से कम उम्र के लगभग 78,000 बच्चों की मौतें हुई हैं। डायरिया के हर मामले में भारतीय परिवारों की औसत वार्षिक आय का 7 प्रतिशत खर्च होता है, जो कम आय वाले परिवारों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है। उन्होंने बताया कि भारत हर साल रोटावायरस डायरिया के प्रबंधन पर अनुमानित तौर पर लगभग 1,000 करोड़ रुपये खर्च करता है।
यूनीसेफ के अमित मेहरोत्रा ने बताया कि वैश्विक स्तर पर रोटावायरस बीमारी से निजात पाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सभी देशों के राष्ट्रीय प्रतिरक्षण कार्यक्रम में इस वैक्सीन को शामिल करने की सिफारिश की है। 95 देशों में रोटावायरस वैक्सीन की शुरुआत हो गई है। जिन देशों में रोटावायरस वैक्सीन प्रारम्भ हो गई है वहां रोटावायरस के कारण बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु की दर में कमी दर्ज हुई है।
कार्यक्रम में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा निदेशाालय, परिवार कल्याण निदेशालय, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश, यूनीसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यू0एन0डी0पी0, रोटरी, जे0एस0आई0, टी0एस0यू0, यू0पी0, के अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।