केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि छोटे व मझौले किसानों की प्रगति सरकार का प्रमुख लक्ष्य है। ऐसे हमारे ग्यारह करोड़ से अधिक किसानों को ऐतिहासिक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम के तहत अभी तक 1.35 लाख करोड़ रूपए की राशि सीधे उनके बैंक खातों में पहुंचाई जा चुकी है। खेती की लागत ध्यान रखते हुए, किसानों के लिए इसे लाभकारी बनाने के उद्देश्य के साथ सरकार ने एमएसपी में सतत वृद्धि की है, राज्य एजेंसियों के माध्यम से खरीदी में भी बढ़ोत्तरी हुई है। नाबार्ड ने राज्य विपणन संघों को करीब 50 हजार करोड़ रू. का संवितरण करके रिकार्ड खरीद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। श्री तोमर ने यह बात नाबार्ड के 40वें स्थापना दिवस पर आयोजित वेबिनार में कही।
श्री तोमर ने कहा कि भारतीय कृषि क्षेत्र में छोटे व सीमांत किसानों को समय पर ऋण उपलब्ध कराना अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसके लिए कोरोना महामारी के दौरान भी सरकार ने पीएम-किसान लाभार्थियों को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराने के लिए मिशन मोड में सफलतापूर्वक अभियान चलाया। चालू वित्त वर्ष के बजट में इस क्षेत्र में साढ़े 16 लाख करोड़ रू. ऋण देने का लक्ष्य रखा है। श्री तोमर ने इस बात पर संतोष जताया कि नाबार्ड ने सहकारी व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के जरिये किसानों को रियायती दर पर फसल ऋण उपलब्ध कराया और 7 साल में यह राशि साढ़े छह लाख करोड़ रू. है। श्री तोमर ने कहा कि सरकार ने कृषि विपणन में भी सुधार किया है। एकीकृत राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) मंडियां एक हजार हैं, चालू साल में और एक हजार मंडियों को इस पोर्टल से जोड़ा जाएगा। ‘ऑपरेशन ग्रीन्स’ स्कीम और ‘किसान रेल’ की शुरूआत भी इस दिशा में ऐतिहासिक कदम है। फल-सब्जियों को खेतों से उपभोक्ता-शहरों तक पहुंचाकर नुकसान में कमी लाई जा रही है। 10 हजार नए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाने की शुरूआत भी हो चुकी है, जो सामूहिकता के मॉडल पर काम करेंगे। उन्होंने खुशी जताई कि इस महत्वाकांक्षी स्कीम के क्रियान्वयन में नाबार्ड अग्रणी रहा है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ग्रामीण व कृषि आधारभूत संरचनाओं पर ज़ोर देते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत प्रधानमंत्री जी ने कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों के विकास के लिए 1.5 लाख करोड़ रू. से अधिक पैकेज दिए हैं, जिनका लाभ देश में खेती को मिलेगा। इसमें एक लाख करोड़ रू. की विशेष “कृषि आधारभूत संरचना निधि” द्वारा निवेश को बढ़ावा देना उद्देश्य है। किसानों को अब सरकार से 3 प्रतिशत ब्याज व ऋण गारंटी के साथ वित्तीय सहायता मिलेगी। योजना में भागीदार नाबार्ड ने 35 हजार प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों को ‘वन-स्टॉप शॉप’ के रूप में विकसित करने का लक्ष्य रखा है। नाबार्ड ने 3 हजार पैक्स को बहु सेवा केन्द्रों की स्थापना के लिए 1,700 करोड़ रू. मंजूर किए है। श्री तोमर ने कहा कि बीते 7 वर्षों में नाबार्ड ने ग्रामीण आधारभूत संरचना विकास निधि के तहत राज्यों को 1.81 लाख करोड़ रू. का ऋण दिया, जिसमें से एक-तिहाई का उपयोग सिंचाई के लिए किया है। यह फंड बढ़ाकर 40 हजार करोड़ रू. कर दिया गया है। पीएम कृषि सिंचाई योजना में ‘प्रति बूंद- अधिक फसल’ में भी नाबार्ड व अन्य ने अच्छा योगदान दिया है। इस अभियान में केंद्र ने, नाबार्ड के तहत सूक्ष्म सिंचाई निधि की समूह राशि बढ़ाकर 10 हजार करोड़ रू. कर दी है।
श्री तोमर ने कहा कि सरकार ने आत्मनिर्भरता का विजन निर्धारित किया है, जिसका आधार आत्मनिर्भर कृषि क्षेत्र व आत्मनिर्भर किसान होंगे। 3 कृषि कानूनों के रूप में केंद्र सरकार ने संरचनात्मक सुधार किए हैं, जो आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाया महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी कदम है। उन्होंने विश्वास जताया कि हम सामूहिक रूप से, मिल-जुलकर काम करते हुए अपने किसानों को उत्साही उत्पादक के रूप में परिवर्तित करेंगे तथा भारतीय कृषि क्षेत्र को राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था के समन्वित व अनिवार्य हिस्से के रूप में विकसित करने में अहम योगदान देंगे।
वेबिनार में भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. कृष्णमूर्ति वी. सुब्रमण्यम ने कहा कि भारतीय कृषि के विकास व निवेश के माध्यम से अधिक नवोन्मेषों को प्रेरित करने के लिए निजी निवेश की आवश्यकता है। इस संदर्भ में उन्होंने उल्लेख किया कि नए कृषि विधेयक छोटे व सीमांत किसानों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। कृषि क्षेत्र के विकास पर टिप्पणी करते हुए डॉ. सुब्रमण्यम ने कहा कि पिछले एक साल में सरकार द्वारा किए गए महत्वपूर्ण सुधारों को देखते हुए, यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि इससे विशेषकर छोटे व सीमांत किसानों के समक्ष आने वाली चुनौतियों और अन्य कई मुद्दों का समाधान किया जा सकेगा। छोटे व सीमांत किसानों के लिए ऋण अत्यंत महत्वपूर्ण है और नाबार्ड जैसी संस्थाएं यह सुनिश्चित करती हैं कि पूरे देश में इन किसानों को ऋण उपलब्ध कराने का उचित प्रावधान किया जाता है, इस वजह से छोटे व सीमांत किसानों को बिचौलियों तथा ऋण के अनौपचारिक माध्यमों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है, इसके बजाय वे औपचारिक वित्तीय क्षेत्र से वास्तव में उधार लेने में सक्षम हो पाते हैं और वे पूर्व में महसूस की गई चुनौतियों/ बंधनों को तोड़ने में सफल हो पाते हैं।
नाबार्ड के अध्यक्ष डॉ. जी.आर. चिंतला ने कहा कि कृषि आधारभूत संरचना में सुधार करना बहुत ज़रूरी है। इसमें सिंचाई, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, लॉजिस्टिक्स, बाजार, स्वास्थ्य व अन्य संबंधित आधारभूत संरचनाएं शामिल हैं। इसके लिए हरित आधारभूत संरचना में उचित निवेश करने की आवश्यकता है, जो वर्ष 2024-25 तक लगभग 18.37 लाख करोड़ रू. होगा, जिसमें से 7.35 लाख करोड़ रू. कृषि आधारभूत संरचना के लिए रखे जाएंगे। डॉ. चिंतला ने कहा कि भारत दो ट्रिलियन डॉलर से पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है और सबसे अच्छी बात यह है कि यह सब कुछ वर्तमान दशक में होने जा रहा है। कृषि इको-सिस्टम में बदलाव हो रहा है, जिसके कारण कृषक समुदाय का जीवन पहले की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक बन सकेगा क्योंकि किसान कृषि प्रणालियों, प्रसंस्करण के साथ-साथ निर्यात के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकेंगे जिससे उनकी आय बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि पिछले कई दशकों से, नाबार्ड विभिन्न उपायों के माध्यम से कृषि व ग्रामीण समुदाय के उत्थान के लिए प्रयास कर रहा है और हमारी प्रतिबद्धता एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की है, जहां छोटे व सीमांत किसान, ग्रामीण महिलाएं और कृषि मजदूर ऐसे संस्थानों से लाभ प्राप्त कर सकें, जिन्हें मूल रूप से इनकी भलाई के लिए बनाया गया है।