श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विभाग ने हाल ही में इस समुदाय के लिए सक्षम नीतियों को प्राथमिकता देने के लिए एक ‘चरागाह सेल’ का गठन किया है, भविष्य की बातचीत में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहन दिया है और इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि युवाओं को कैसे प्रेरित किया जा सकता है
बातचीत के दौरान चरवाहा समुदायों द्वारा व्यक्त की गई मुख्य चिंताओं में चरागाह भूमि का नियमित नुकसान, पशुपालकों की आधिकारिक मान्यता से लेकर पारंपरिक ज्ञान और समुदाय द्वारा अपनायी जाने वाली जातीय पशु चिकित्सा प्रथाओं का दस्तावेजीकरण शामिल है
केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने मंत्रालय के अधिकारियों के साथ आज डॉ. अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर (डीएआईसी), नई दिल्ली में पूरे देश के विभिन्न चरवाहा समुदायों के साथ बातचीत की।
बातचीत के दौरान चरवाहा समुदायों ने मुख्य चिंताएं व्यक्त की जिसमें चरागाह भूमि का नियमित नुकसान, पशुपालकों की आधिकारिक मान्यता से लेकर पारंपरिक ज्ञान और समुदाय द्वारा अपनायी जाने वाली जातीय पशु चिकित्सा प्रथाओं का दस्तावेजीकरण आदि शामिल है।
मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विभाग ने हाल ही में इस समुदाय के लिए सक्षम नीतियों को प्राथमिकता देने के लिए एक ‘चरागाह सेल’ का गठन किया है, भविष्य की बातचीत में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहन दिया है और इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि युवाओं को कैसे प्रेरित किया जा सकता है। उन्होंने वर्तमान समय में अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक प्रथाओं का संरक्षण करने के लिए चरवाहा समुदायों की सराहना की।
पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं पर एक नोट जिसके अंतर्गत चरवाहों को सहायता प्रदान की जा सकती है, सभी राज्यों के पशुपालन विभागों में वितरित कर दिया गया है।
मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने चरवाहा समुदायों को ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ की सुविधाओं का विस्तार किया है।
मंत्रालय ने हाल ही में सक्षम नीतियों को प्राथमिकता प्रदान करने के लिए एक ‘चरागाह सेल’ का गठन किया है।
मंत्रालय ने 2024 में होने वाली आगामी 21वीं पशुधन जनगणना में चरवाहा समुदायों के विवरण को शामिल करने का भी निर्णय लिया है।
केंद्रीय मंत्री, एफएएचडी ने मंत्रालय के अधिकारियों के साथ जनवरी, 2023 में भुज, गुजरात में एक ‘चरागाह सम्मेलन’ में हिस्सा लिया। सम्मेलन के दौरान और विशेष रूप से ‘चरागाह युवा सम्मेलन’ के दौरान चरवाहा समुदायों द्वारा व्यक्त की गई मुख्य चिंताएं निम्न प्रकार हैं:
(i) चरागाहों की भूमि का पुनरुद्धार, चरागाह विकास और चरागाहों में पानी की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी
(ii) जमीनी स्तर पर वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) का कार्यान्वयन। वनों, घास के मैदानों और गांव की सामान्य भूमि में पर्याप्त चराई स्थानों तक पहुंच सुनिश्चित करना
(iii) चरवाहों के लिए सामाजिक मान्यता, आधिकारिक मान्यता और पहचान प्रदान करना
(iv) उत्पादों (दूध, मांस और ऊन) के लिए संरचनात्मक विपणन सुविधाओं की स्थापना, जिससे वास्तविक चरवाहा समुदायों के लिए उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित किया सके। जल्द खराब होने वाले उत्पादों (दूध) का समय पर बाजार में परिवहन की सुविधा। विपणन की सुविधा के लिए सहकारी समितियों का गठन
(v) पशुधन नस्लों का संरक्षण
(vi) चरवाहा समुदायों द्वारा पालन किए जाने वाले पारंपरिक ज्ञान और जातीय पशु चिकित्सा प्रथाओं का दस्तावेजीकरण
(vii) चरवाहों के लिए मोबाइल स्कूलों की स्थापना
(viii) घुमंतू मार्ग के साथ-साथ उच्च भूमि और निचली भूमि चरागाहों पर अंतिम मील सेवा वितरण सुनिश्चित करना
पृष्ठभूमि:
पशुचारण पशुपालन का ही एक रूप है जहां पशुधन को चरागाहों में चराकर पाला जाता है, ऐतिहासिक रूप से घुमंतू लोगों द्वारा जो अपने झुंड के साथ घूमते हैं। इसमें शामिल प्रजातियों में भेड़, बकरी, ऊंट, मवेशी, भैंस, याक और गधा शामिल हैं।
चरागाह की तलाश में जानवरों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर पशुओं को पालने के साथ एक मजबूत पारंपरिक जुड़ाव के साथ विशिष्ट जाति या जातीय समूहों के सदस्यों द्वारा घुमंतू पशुचारण किया जाता है। घुमंतू पशुचारण पूरे देश में पहाड़ों से लेकर शुष्क क्षेत्रों तक प्रचलित है और यह विभिन्न स्थानीय सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं में स्थानीय रूप से प्रकट होता है। सूखा और शुष्क भागों में क्षैतिज पशुचारण मौजूद है जबकि हिमालयी राज्यों में ऊर्ध्वाधर पशुचारण किया जाता है।
पानी की तलाश में पूरे देश में बड़ी संख्या में पारंपरिक घुमंतू मार्ग मौजूद हैं। चरवाहे आम तौर पर कभी-कभी कुछ भटकाव के साथ समान घुमंतू मार्गों का अनुसरण करते हैं। क्षैतिज मार्ग सूखा, शुष्क और अर्ध-शुष्क मैदानों (राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश आदि) में होते हैं। हिमालयी राज्यों (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश) में ऊर्ध्वाधर मार्गों का पालन किया जाता है। हालांकि सभी घुमंतू मार्गों को अभी तक दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है।
घुमंतू पशुचारण का महत्व निम्न प्रकार है:
i. घुमंतू चरवाहे प्राकृतिक प्रजनक होते हैं जो बहुत मजबूत जानवर पैदा करते हैं जो विपरित परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
ii. जलवायु लचीलापन: जलवायु और संसाधन-आधारित संयोजन के लिए कोई बाहरी इनपुट की आवश्यकता नहीं होती है: सबसे ज्यादा लागत प्रभावी और किफायती। गतिशील अवस्था में भी धन का सृजन होता है।
iii. चरागाह झुंडों द्वारा उत्पादित दूध, मांस और ऊन की प्रकृति कार्बनिक होती है।
iv. इस कार्यप्रणाली से मिट्टी उपजाऊ बनाती है।
v. पशुधनों को घास चराना और झाड़ी का चारण इकोसिस्टिम के स्वास्थ्य और उत्पादकता (आईयूसीएन रिपोर्ट के अनुसार) के लिए महत्वपूर्ण है, जैव विविधता का संरक्षण करता है, रेगिस्तान बनने से रोकता है, कार्बन संग्रहीत करता है और क्षरण को रोकता है। यह वन पुनरुत्पादन में मदद करता है।
vi. उनकी गतिशीलता अतिचराई को रोकती है, जिससे प्राकृतिक वनस्पति को वापस बढ़ने में मदद मिलती है – अवक्रमित भूमि का प्रबंधन करने के लिए एक महत्वपूर्ण सर्वोत्तम अभ्यास।
vii. चरवाहे इनपुट से स्वतंत्र होते हैं, इसलिए बारिश की कमी के दौरान भी उन्हें अप्रतिदेय उधार के दबाव का सामना नहीं करना पड़ता है जैसा कि किसानों के लिए प्रायः देखा जाता है। इसलिए यह प्रथा पशुचारण के अन्य रूपों की तुलना में ज्यादा जलवायु अनुकूल है।