देहरादून: उत्तराखण्ड आने पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आईडीपीएल हेलीपेड पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत किया। उन्होंने प्रधानमंत्री को केदारनाथ में हुए कार्यों की जानकारी देते हुए वहां आने के लिए आमंत्रित किया। इसके साथ ही मुख्यमंत्री श्री रावत ने प्रधानमंत्री श्री मोदी को प्रदेश के विभिन्न मुद्दों से संबंधित एक ज्ञापन भी दिया।
प्रधानमंत्री को सौंपे गए ज्ञापन में मुख्यमंत्री श्री रावत ने आपदा सम्भावित क्षेत्र के 352 असुरक्षित गांवों को सुरक्षित अन्य जगह बसाए जाने के लिए 13 हजार करोड़ रूपए की वित्तीय सहायता प्रदान करने, उत्तराखण्ड की परिस्थितियों को देखते हुए विशेष राज्य का दर्जा बरकरार रखते हुए केंद्रीय योजनाओं में सहायता 9:10 के अनुपात में दिए जाने व उत्तराखण्ड को इको सेवाओं के बदले 4 हजार करोड़ रूपए प्रति वर्ष राशि स्थायी तौर देने सहित विभिन्न बिंदुओं पर अनुरोध किया है।
अपने ज्ञापन में मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा है कि जून 2013 की आपदा के बाद उत्तराखण्ड में पुनर्निर्माण कार्यों के लिए गठित केंद्रीय केबिनेट कमेटी ने विशेष पैकेज स्वीकृत किया था। स्वीकृत पैकेज के तहत वर्ष 2015-16 के लिए सीएसएस-आर व एसपीए-आर के तहत 1200 करोड़ रूपए की धनराशि अवशेष है। इसे यथाशीघ्र अवमुक्त किया जाए।
वर्ष 2013 की आपदा के बाद ही विशेष परिस्थितियों को देखते हुए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रदेश में गैर वानिकी कार्यों के लिए 5 हेक्टेयर तक वन भूमि हस्तांतरण की शक्ति राज्य सरकार को हस्तांतरित की गई थी। इसकी समय सीमा 7 नवम्बर 2015 को समाप्त हो रही है। इसे दिसम्बर 2016 तक विस्तारित किया जाए।
प्रदेश में जीएसआई, वाडिया इंस्टीट्यूट सहित विभिन्न विशेषज्ञ संस्थाओं द्वारा आपदा सम्भावित क्षेत्र के 352 गांवों को आपदा की दृष्टि से अति संवेदनशील माना गया है। पूर्व में भी इन गांवों के अन्यत्र पुनर्वास के लिए 13 हजार करोड़ रूपए के आवंटन का अनुरोध किया जा चुका है। मामले के मानवीय दृष्टिकोण को देखते हुए प्रधानमंत्री इसके लिए अपने स्तर से पहल करें।
वर्ष 2013 की आपदा के बाद प्रदेश के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में आधारिक संरचना को पुनर्विकसित करने के लिए भारत सरकार ने एडीबी व वल्र्ड बैंक के तहत 450 मिलीयन डाॅलर का बाह्य सहायतित पैकेज 100 प्रतिशत केंद्रीय अनुदान पर स्वीकृत किया था। परंतु अभी भी अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है। अतः एडीबी व वल्र्ड बैंक के तहत 100-100 मीलियन डाॅलर की अतिरिक्त सहायता पूर्वप्रदत्त शर्तों पर ही दी जाए।
अपने ज्ञापन में मुख्यमंत्री ने कहा है कि संसाधनों की कमी, पर्वतीय व कठिन भौगोलिक क्षेत्र, कम जनसंख्या घनत्व, अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं, अनुसचित जनजाति क्षेत्र, आर्थिक व आधारिक संरचना का पिछड़ा होना व राज्य के वित्तीय संसाधनों की अस्थिरता के मानकों के आधार पर वर्ष 2001 में राज्य की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। केंद्र प्रवर्तित योजनाएं 90:10 के अनुपात में दी जा रही थीं। अभी भी उक्त मानकों के अनुसार राज्य की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। इसलिए उत्तराखण्ड के विशेष राज्य के दर्जे को बरकरार रखते हुए केंद्रीय योजनाओ में सहायता 9:10 के अनुपात में जारी रखी जाए।
एक अनुमान के अनुसार उत्तराखण्ड 40 हजार करोड़ रूपए की इको सेवाएं प्रदान कर रहा है। भारत सरकार की बीके चतुर्वेदी समिति ने कहा था कि केंद्र सरकार को अपने सकल बजट आवंटन का 2 प्रतिशत देश को इको सेवाएं देने वाले राज्यों को दिया जाना चाहिए। भारत सरकार के नीति निर्माण के फलस्वरूप उत्तराखण्ड में जलविद्युत उत्पादन की सम्भावनाओं को नुकसान हुआ है। इससे राज्य को लगभग 1640 करोड़ रूपए प्रतिवर्ष का नुकसान हो रहा है। भारत सरकार के स्तर पर पर्यावरण व हाइड्रो पावर के विकास में संतुलन साधना होगा। उक्त बातों को ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड को उसके द्वारा प्रदत्त इको सेवाओं के बदले 4 हजार करोड़ रूपए प्रति वर्ष राशि स्थायी तौर पर दी जाए।
14 वें वित्त आयोग द्वारा करों में राज्यों के हिस्से को 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत किया गया है। परंतु इसके साथ ही विशेष राज्य के दर्जे को समाप्त करने, केंद्रीय सहायता को 50-50 प्रतिशत पर दिए जाने की सिफारिशों से उत्तराखण्ड को एनसीए में 1530 करोड़ रू., एससीए में 700 करोड़ रू., एसपीए में 300 करोड़ रू. कुल मिलाकर 2580 करोड़ रूपए का नुकसान हुआ है। 2015-16 में इस नुकसान के 2800 करोड़ रूपए होना अनुमानित किया गया है। जबकि केंद्र द्वारा कर में हिस्सा 10 प्रतिशत बढ़ाए जाने से केवल 1315 करोड़ रूपए की वृद्धि होगी। इस प्रकार राज्य को 14 वें वित्त आयोग की सिफारिशों से विशुद्ध रूप से 1485 करोड़ रूपए की हानि हो रही है। भारत सरकार के वर्ष 2014-15 के आर्थिक सर्वे के अनुसार उत्तराखण्ड एकमात्र राज्य है जिसकी केंद्रीय सहायता में गिरावट आई है।
14 वें वित्त आयोग से हस्तांतरणों में जहां विशेष दर्जा के राज्यों को प्रति व्यक्ति 13362 रूपए का लाभ हुआ है, अखिल भारतीय औसत 1715 रूपए है वहीं उŸाराखण्ड को प्रति व्यक्ति लाभ केवल 1292 रूपए हुआ है। केंद्रीय बजट 2015-16 में नीति आयोग की संस्तुति पर राज्यों को विशेष सहायता के लिए 20 हजार करोड़ रूपए की व्यवस्था की गई है। उत्तराखण्ड के अति प्राथमिकता प्राप्त विकास परियोजनाओं के लिए इसमें से 4 हजार करोड़ रूपए आवंटित किए जाएं। साथ ही एसपीए में पूर्व में स्वीकृत 64 परियोजनाओं के लिए 1062 करोड़ रूपए स्वीकृत किए जाएं।
राज्य सरकार द्वारा की गई पहलों की जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री श्री रावत ने अपने ज्ञापन में कहा है कि प्रदेश मे पाॅलिसी प्लानिंग गु्रप का गठन किया गया है। इसमें प्रसिद्ध पर्यावरणविद चंडीप्रसाद भट्ट भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री ने अनुरोध किया है कि इस गु्रप के सदस्यों से मिलने के लिए कुछ समय दिया जाए ताकि वे हिमालय के संरक्षण को लेकर अपने विचारों से प्रधानमंत्री को अवगत करा सकें। राज्य सरकार ने 9 सितम्बर को सरकारी स्तर पर हिमालय दिवस के रूप में मनाए जाने की परम्परा प्रारम्भ की है। पर्वतीय व जैविक कृषि को प्रोत्साहित किया जा रहा है। रेल व हवाई यातायात को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश की विपरीत वित्तीय स्थिति को देखते हुए रेल परियोजनाओं में 50 प्रतिशत लागत वहन किए जाने की अनिवार्यता से राज्य को छूट देते हुए 100 प्रतिशत लागत केंद्र सरकार वहन करे।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि हाल ही में संसदीय समिति ने उत्तराखण्ड को भूकम्प के लिए अति संवेदनशील माना है। राज्य के सभी स्कूल भवनों को भूकम्परोधी बनाए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए लगभग 1 हजार करोड़ रूपए की आवश्यकता होगी। राज्य द्वारा अपने संसाधनों से इसे पूरा किया जाना सम्भव नहीं है। राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गों के स्तर को प्राथमिकता से सुधारे जाने की जरूरत है। बड़ी संख्या में पीएमजीएसवाई सड़कें स्वीकृति के लिए केंद्र स्तर पर लम्बित हैं। इन्हें जल्द से जल्द स्वीकृति प्रदान की जाए। मुख्यमंत्री ने ऋषिकेश स्थित आईडीपीएल व हल्द्वानी के एचएमटी को पुनर्जीवित किया जाए।