नई दिल्ली: माननीय केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने “समुद्री मात्स्यिकी” विषय पर चर्चा के लिए समुद्र तटीय राज्यों के माननीय मत्स्य-मंत्रियों की बैठक में उन्हें संबोधित किया।
- मछली में भारत की औसत निर्यात दर पिछले एक दशक में 14% की वृद्धि दर के साथ विश्व में सर्वाधिक रही है।
- देश में मछली उत्पादन में 2010-14 के मुकाबले 2014-18 में 27% की वृद्धि हुई है।
- भारत सरकार ने गहरे-समुद्र में मात्स्यिकी को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है एवं ‘नीली-क्रांति’ के अंतर्गत ‘डीप-सी फिशिंग में सहायता’ नामक एक उप-घटक शामिल किया है।
- भारत सरकार ने बजट में मात्स्यिकी और जलकृषि अवसंरचना विकास निधि (एफ. आई. डी. एफ.) की स्थापना के लिए 7,522.48 करोड़ रुपये का अलग से प्रावधान किया है।
- हितधारकों से व्यापक विचार-विमर्श करने के उपरांत कृषि मंत्रालय द्वारा 1 मई, 2017 को देश की नई “राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति” अधिसूचित की जा चुकी है।
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि मछली में भारत की निर्यात की औसत दर पिछले एक दशक में 14% की वृद्धि दर के साथ विश्व में सर्वाधिक रही है। देश में मछली उत्पादन में 2010-14 के मुकाबले 2014-18 में 27% की वृद्धि हुई है। उन्होंने आगे कहा कि समुद्र के निकटवर्ती क्षेत्र से अतिरिक्त मत्स्य-उत्पादन की नगण्य सम्भावनाओं को देखते हुए भारत सरकार ने गहरे-समुद्र में मात्स्यिकी को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है एवं ‘नीली-क्रांति’ के अंतर्गत ‘डीप-सी फिशिंग में सहायता’ नामक एक उप-घटक शामिल किया है। उन्होंने यह बात आज कृषि मंत्रालय, नई दिल्ली में आयोजित दक्षिण भारत के तटीय राज्यों के मात्स्यिकी मंत्रियों के सम्मेलन में कही।
कृषि मंत्री ने कहा कि ‘डीप-सी फिशिंग में सहायता’ योजना के तहत 80 लाख रुपये तक की लागत वाली ‘डीप-सी फिशिंग नौका’ हेतु पारंपरिक मछुवारों के स्वयं सहायता समूहों/संगठनों आदि को प्रति नौका 50 प्रतिशत तक, अर्थात 40 लाख रुपये की केन्द्रीय सहायता दी जायेगी। इस योजना की एक प्रमुख बात यह भी है कि इन उन्नत किस्म की और आधुनिक ‘डीप-सी फिशिंग नौकाओं’ का निर्माण देश में ही स्वदेशी तकनीक से होगा। उन्होंने जानकारी दी कि इस योजना के क्रियान्वयन के लिए प्रथम वर्ष में ही 312 करोड़ रुपये से अधिक की केन्द्रीय राशि जारी की जा चुकी है, जिससे कुछ प्रदेशों (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा गुजरात) के मछुवारे लाभान्वित हो रहे हैं।
उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि हितधारकों से व्यापक विचार-विमर्श करने के उपरांत कृषि मंत्रालय द्वारा 1 मई 2017 को देश की नई “राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति” को अधिसूचित किया जा चुका है। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो आगामी 10 वर्षों तक देश में समुद्री मात्स्यिकी के समग्र और समेकित विकास को दिशा प्रदान करेगा। उन्होंने आगे कहा कि नई “राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति” के प्रभावकारी रूप से क्रियान्वयन के लिए केंद्र तथा तटीय राज्यों को परस्पर मिल कर काम करना होगा।
उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मेन लैंड से 200 मीटर गहराई तक मौजूद निकटवर्ती समुद्री मत्स्य संसाधन का अधिकांशतः पूर्ण-उपयोग या अधि-दोहन हो रहा है, जो पारंपरिक मछुआरों की आजीविका पर गंभीर संकट की स्थिति को दर्शाता है। 200 मीटर गहराई का क्षेत्र मुख्यत: 12 समुद्री मील के अंदर आता है, जो राज्य सरकारों के अधीन है, अतः ‘राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति’ के अनुरूप टिकाऊ और जिम्मेदारी-पूर्ण मत्स्यन सुनिश्चित कराना राज्यों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बनती है। उन्होंने राज्य सरकारों से अपील की कि वे टिकाऊ मत्स्यन सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठायें।
उन्होंने राज्यों से अपील की कि वे अपने अपने प्रादेशिक जल क्षेत्रों में फ्लीट साइज, गियर साइज, मछली की न्यूनतम लीगल साइज तथा न्यूनतम मेश साइज को तय करें जिससे मत्स्य प्रबंधन के द्वारा समुद्री मत्स्य संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
कृषि मंत्री ने बताया कि केन्द्र सरकार द्वारा ई.ई.जेड में हानिकारक मत्स्यन पद्धतियों जैसे एलईडी या कृत्रिम लाइट का प्रयोग तथा पेयर- ट्रालिंग पर 10 नवम्बर,2017 को रोक लगाई जा चुकी है। उन्होंने सभी राज्यों से अपील की कि वे भी अपने–अपने प्रादेशिक जल क्षेत्रों में ऐसी हानिकारक पद्धतियों पर रोक लगाएं। उन्होंने राज्यों से समुद्री संस्कृति में आगे बढ़ने का आह्वान भी किया जिससे कि मछुआरों की आय बढ़ाई जा सके।
उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने अपने बजट में ‘मात्स्यिकी तथा जलकृषि अवसंरचना विकास निधि(एफ.आई.डी.एफ)’ की स्थापना के लिए 7,522.48 करोड़ रुपये के पृथक समर्पित बजट का प्रावधान किया है। उन्होंने कहा कि अब किसानों की तरह ही मछुआरों को भी ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ का लाभ मिल सकेगा।