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राजपुर रोड स्थित अकेता होटल में ‘‘भूकम्प जोखिम प्रबन्धन’’ विषयक एक कार्यशाला का आयोजन किया गया

Rajpur Road Aketa hotel has organized a workshop on 'Earthquake Risk Management
उत्तराखंड

देहरादून: राज्य की विभिन्न प्रकार की आपदाओं के प्रति उच्च संवेदनशीलता को देखते हुये आपदा प्रबन्धन जैसे महत्वपूर्ण विषय के विभिन्न पक्षों को विभागीय योजनाओं में सम्मिलित किये जाने तथा इसके अपेक्षित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत अधिकारियों को आपदा प्रबन्धन से जुड़े तकनीकी पक्षों का ज्ञान व इस क्षेत्र में कार्य कर रहे विशेषज्ञों के मध्य उचित समन्वय स्थापित किये जाने के उद्देश्य से आपदा प्रबन्धन विभाग द्वारा 20 जनवरी, 2017 को राजपुर रोड स्थित अकेता होटल में ‘‘भूकम्प जोखिम प्रबन्धन’’ विषयक एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी विभागों के अधिकारियों वैज्ञानिकों के साथ ही विभिन्न संस्थानों/संगठनों के लगभग 100 से ज्यादा व्यक्तियों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

कार्यशाला का शुभारम्भ आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन केन्द्र के अधिशासी निदेशक, डा. पीयूष रौतेला द्वारा सभी प्रतिभागियों के स्वागत से किया गया। कार्यशाला के प्रथम सत्र में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के भू-विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. कमल द्वारा भूकम्प के विशेष परिप्रेक्ष्य में पृथ्वी की आंतरिक हलचलों की रहस्मय दुनिया, भूकम्प की परिभाषा, प्रकार, सम्भावित भविष्यवाणी इससे निपटने के कारगर उपायों पर प्रकाश डाला गया। अपने प्रस्तुतीकरण के दौरान उन्होंने कहा कि हम भूकम्प सम्भावित स्थानों को तो बता सकते है पर भूकम्प का समय नहीं। डा. कमल द्वारा भूकम्प सुरक्षा के दृष्टिगत भवन सुरक्षा, ठोस धरातलीय भूमि एवं परिवार के लिये योजना बनाये जाने पर बल दिया।

कार्यशाला के अगले सत्र में आपदा प्रबन्धन विभाग के उप सचिव श्री संतोष बड़ोनी द्वारा सरकारी एवं वैज्ञानिक संस्थानों के मध्य परस्पर सहयोग पर बल दिया। वर्ष 2013 में आयी आपदा को भूकम्प के समान मानते हुवे अचानक घटित होने वाली सभी आपदाओं में सटीक रिस्पॉन्स, जोखिम हस्तान्तरण, त्वरित चेतावनी तंत्र को मजबूत किये जाने पर अपने विचार व्यक्त किये। भूकम्पीय के लिहाज से अतिसंवेदनशील माने जाने वाले क्षेत्रों के लिये पृथक गाईडलाइन्स की आवश्यकता पर बल देते हुय उन्होंने पूर्वतैयारी को आपदाओं से बचने का एकमात्र उपाय बताया।

कार्यशाला के अगले सत्र में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के भूकम्प अभियांत्रिकी विभाग के डा. एम. एल. शर्मा द्वारा राज्य की वर्तमान भूकम्पीय प्रवृत्ति व इनके अनुमान पर प्रकाश डालते हुवे अवगत कराया कि उत्तराखण्ड का हिमालयी क्षेत्र 1935 से वर्तमान तक भूकम्पीय जोन मैपिंग में पूर्व से ही खतरे की जद में रहा है। अमेरिका, जापान सहित अन्य भूकम्प संवेदनशील देशों का उदाहरण रखते हुये डा. शर्मा द्वारा वहां किये गये उपायों एवं जनभागीदारी पर विशेष चर्चा की। राज्य की भूकम्प संवेदनशीलता के विशेष परिप्रेक्ष्य में बनने वाली नीति एवं नियमों के स्वैच्छिक अनुपालन को डा. शर्मा नितान्त आवश्यक बताया।

इसी क्रम में अधिशासी निदेशक, आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन केन्द्र (डी.एम.एम.सी.) के डा. पीयूष रौतेला द्वारा भूकम्प जोखिम न्यूनीकरण के विशेष सन्दर्भ में राज्य में विगत में आये भूकम्पों, उनसे हुये नुकसान एवं इनसे बचने हेतु पूर्वजों द्वारा प्रयोग में लाये गये विभिन्न पारम्परिक विधियों पर विस्तृत रूप से अपने विचार रखें। डा. रौतेला द्वारा भूकम्प से सुरक्षा के पांच मंत्रों यथा- सही स्थान का चयन, मजबूत बुनियाद, सटीक प्रारूप, जोड़-तोड़ की तकनीक एवं भूकम्पीय बलों पर विस्तृत प्रकाश डाला। राज्य के पारम्परिक आकैटैक्चर को समद्व विरासत का दर्जा देते हुवे डा. रौतेला ने भौतिक सुविधाओं की अपेक्षा जीवन की सुरक्षा पर बल दिया।

उत्तराखण्ड डिजास्टर रिकवरी प्रोजेक्ट के आपदा प्रबन्धन विशेषज्ञ डा. गिरीश जोशी द्वारा राज्य में भवनों के कतिथ भूकम्पीय संवेदनशीलता/ग्राहयता, संरचनात्मक/गैरसरंचनात्मक संवेदनशीतला, छोटे भूकम्प के बड़े खतरे के साथ ही भूकम्पीय सुदृढ़ीकरण के लिये उपयोग में लायी जा रही रैपिड विजुअल सर्वे, सिम्पलीफाइड एवं डिटेल्ड वलनराबिलटी एसेसमेन्ट पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला।

कार्यशाला में प्रतिभागियों के सम्मुख भूकम्प के विशेष परिप्रेक्ष्य पर आधारित आंचलिक भाषाओं (कुमायूँनी एवं गढ़वाली) में आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन केन्द्र द्वारा विकसित की गयी डाक्यूमेन्ट्री ‘‘डांडी कांठियों की गोद मां’’ का प्रदर्शन भी किया गया।

कार्यशाला में उत्तराखण्ड के टॉउन एण्ड कन्ट्री प्लानिंग विभाग के चीफ टाउन प्लानर श्री संतोष कुमार बिष्ट द्वारा भवन उप-विधियों, भूकम्प सुरक्षित भवन निर्माण के लिये उपयोग में लाई जा रही ब्यूरो ऑफ इण्डियन स्टेन्डर्ड एवं नैशनल बिल्डिंग कोडों पर आधारित रेग्यूलेशन पर प्रस्तुतीकरण दिया गया।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रो. अशोक कुमार द्वारा भूकम्प एवं इसकी पूर्व चेतावनी की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य पर अपने-अपने विचार रखे। प्रो. कुमार द्वारा राज्य के विभिन्न क्षेत्रों यथा देहरादून, हरिद्वार रूड़की में भूकम्प की पूर्वचेतावनी का अनुमानित समय क्रमशः 20, 22 एवं 31 सेकेण्ड पूर्व जारी किये जाने से अवगत करवाया। कार्यशाला में टैक्नोलॉजी एण्ड रिसर्च, देहरादून के श्री आर. के. मुखर्जी द्वारा बुनियादी स्तर पर भूकम्प सुरक्षित भवन निर्माण के विभिन्न पक्षों पर चर्चा-परिचर्चा की गयी। हिमालय एडवेन्चर इन्सटीट्यूट, मसूरी के निदेशक श्री एस. पी. चमोली द्वारा आपदाओं के दौरान किये जाने वाले खोज एवं बचाव एवं इसमें आने वाली कठिनाईयों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया। कार्यशाला में वास्तुविद श्री एस. के. नेगी द्वारा आपदा उपरान्त प्रभावितों के लिये निर्मित किये जाने वाले शरणालयों एवं इससे जुड़े विभिन्न मुद्दों एवं योजनाओं पर प्रस्तुतीकरण दिया गया।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रो. योगेन्द्र सिंह द्वारा भूकम्प जोखिम न्यूनीकरण एवं पुराने भवनों के सुदृढ़ीकरण के विषय में प्रतिभागियों को अवगत करवाया गया। श्री सिंह के द्वारा गैर अभियांत्रिकी तकनीकी से बनी संरचनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हुवे कहा गया कि किस प्रकार पूर्व में निर्मित भवनों के निर्माण में की गयी त्रुटियों का आंकलन करके उनके सुदृढ़ीकरण किया जा सकता है।

कार्यशाला का समापन अपर सचिव, आपदा प्रबन्धन श्री सी. रवि शंकर, उप सचिव, आपदा प्रबन्धन श्री संतोष बड़ोनी एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के भूकम्प अभियांत्रिकी विभाग के प्रो. योगन्द्र कुमार के मध्य भूकम्पीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण पक्षों पर चर्चा-परिचर्चा के साथ हुआ।

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