नई दिल्ली: राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय युवा सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन का आयोजन पावन चिंतन धारा चैरिटेबल ट्रस्ट, गाजियाबाद की एक यूथ विंग युवा जागृति मिशन ने किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि आज का भारत युवा शक्ति से भरा हुआ है। हमारे युवाओं में अपार प्रतिभा और ऊर्जा हैं। इस प्रतिभा और ऊर्जा का समुचित विकास और उपयोग किया जाना चाहिए। हमारे देश में आठ सौ मिलियन युवा हैं, जो अपनी रचनात्मक शक्ति से भारत की प्रगति और मानव सभ्यता को नई ऊंचाईयों पर ले जा सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें खुद की, समाज और देश की भलाई और कल्याण के लिए काम करना होगा। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सही दृष्टि और विवेक के लिए शिक्षा की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि एक आत्मनिर्भर और राष्ट्रप्रेमी व्यक्ति जीवन के किसी भी क्षेत्र में काम करके राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकता है।
- युवाओं से मिलना और उनके साथ संवाद करना मुझे हमेशा से प्रिय रहा है। इस देश के नौजवान अर्थात् हमारे युवा बेटे-बेटियां, न केवल देश को दिशा देने की सामर्थ्य रखते हैं, अपितु वे स्वयं भारत का भविष्य हैं। उमंग, उल्लास और ऊर्जा से भरे आप सब युवाओं के बीच आकर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है।
- भारत अध्यात्म, ज्ञान, कर्म, सेवा, साधना और करुणा का देश रहा है। भारत, राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए युवाओं की भूमिका का महत्व पहचानने वालों का देश रहा है। ऋषियों, शिक्षकों, राष्ट्र–नेताओं, कवियों, गुरुओं और वरिष्ठ-जनों ने युवा-शक्ति का यथेष्ट मार्ग-दर्शन करके उन्हें समाज, देश और दुनिया के कल्याण की ओर सदैव प्रेरित किया है। मुझे बताया गया है कि पावन चिन्तन धारा आश्रम भी ‘युवा अभ्युदय मिशन’ के माध्यम से युवाओं के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयास कर रहा है। यह संस्था, गरीब और साधन-हीन बच्चों को शिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य भी कर रही है। मैं संस्था के संस्थापक श्री पवन सिन्हा और उनकी पूरी टीम के इन प्रयासों की सराहना करता हूं।
- राष्ट्र-निर्माण के कार्य में युवाओं को प्रेरित करने में समाज की, मनीषियों और चिन्तकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये मनीषी और चिन्तक युवा-शक्ति के लिए सदैव प्रेरक होते है, उनके ‘रोल-मॉडल’ होते हैं। सामान्य तौर पर, ये रोल-मॉडल समय-समय पर, देश-काल और परिस्थिति के अनुसार, बदलते रहते हैं। लेकिन कुछ रोल-मॉडल कभी नहीं बदलते। ऐसे ही एक काल-जयी रोल मॉडल हैं – स्वामी विवेकानन्द जो कि पावन चिन्तन धारा आश्रम के भी प्रेरणा स्रोत हैं।
- आज से लगभग 126 वर्ष पहले अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन हो रहा था। इसी सम्मेलन में, 11 सितम्बर, 1893 को एक तेजस्वी सन्यासी ने अपने विचारों की आभा से पूरी दुनिया को चकित कर दिया। ये तेजस्वी सन्यासी स्वामी विवेकानन्द ही थे। स्वामी विवेकानन्द ने उस सम्मेलन को बताया कि वे एक ऐसे धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिसने सभी धर्मों और देशों के लोगों को अपनाया, जिसने अपने लोगों को सहनशीलता सिखाई और सबको साथ लेकर चलने की शिक्षा दी। मुझे प्रसन्नता है कि पावन चिन्तन धारा संस्था, इसी उपलक्ष्य में 11 सितम्बर को ‘ज्ञानोत्सव’ के रूप में मनाती है और इसी कड़ी में यह ‘राष्ट्रीय युवा महोत्सव’ मनाया जा रहा है।
- स्वामी विवेकानन्द के विचार दुनिया भर के युवाओं को प्रेरित करते रहे हैं। उन्हें युवाओं की ऊर्जा पर बहुत भरोसा था। वे कहते थे कि – ‘युवा वो होता है जो बिना अतीत की चिंता किए अपने भविष्य के लक्ष्यों की दिशा में काम करता है’। आपको भी बस अतीत को जानना है। क्योंकि अतीत को जानकर, उसे समझकर आपको भविष्य के लक्ष्य तय करने हैं। अपने लिए, समाज के लिए, देश के लिए जो कुछ भी उत्तम और कल्याणकारी है, उसे प्राप्त करने के लिए काम करना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सही दृष्टि और विवेक जाग्रत करने में, शिक्षा की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
- स्वामी विवेकानन्द का मानना था कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य पुस्तकें रटना या डिग्रियां प्राप्त करना नहीं बल्कि ऐसे युवा तैयार करने का होना चाहिए जो स्वावलम्बी, चरित्रवान, बुद्धिमान और उद्यमी हों। वे चाहते थे कि ‘सभी प्रकार की शिक्षा और अभ्यास का उद्देश्य ‘मनुष्य’ निर्माण ही हो’। वे ऐसी शिक्षा चाहते थे ‘जिससे चरित्र बने, मानसिक तेज बढ़े, बुद्धि का विकास हो और जिससे मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके’। आत्म-निर्भर और राष्ट्र-प्रेमी व्यक्ति किसी खेत में, किसी कारखाने में, किसी स्कूल-कॉलेज में अर्थात् जीवन के किसी भी क्षेत्र में काम करते हुए राष्ट्र-निर्माण में योगदान कर सकता है।
- आज का भारत, युवा-शक्ति से भर-पूर है। देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या अर्थात् लगभग 80 करोड़ युवा अपनी रचनात्मक शक्ति के बल पर हमारे देश को प्रगति की, मानव-सभ्यता की नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो आज से लगभग 5 वर्ष पहले शुरू किए गए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की सफलता में युवाओं का अभूतपूर्व योगदान रहा है। स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाने में, लोगों को प्रेरित करने में युवाओं ने प्रभावशाली योगदान किया है।
- हमारे युवाओं में असीम प्रतिभा और ऊर्जा है। इस प्रतिभा और ऊर्जा का समुचित विकास और उपयोग किए जाने की जरूरत है। इस दिशा में प्रयास तेजी से किए जा रहे हैं और इन प्रयासों के परिणाम भी सामने आने लगे हैं। ज्ञान-विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी से लेकर खेल के मैदान तक भारत के बेटे-बेटियां विश्व समुदाय पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं। इसी जुलाई में देश की बेटी हिमा दास ने विश्व स्तर की एथलेटिक्स प्रतिस्पर्धाओं में 05 स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। कुछ ही दिन पहले, पी.वी. सिंन्धू ने बैडमिन्टन विश्व चैंपियनशिप और मानसी जोशी ने पैरा बैडमिन्टन विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते हैं। यहां मैंने केवल कुछ ही विजेताओं का उल्लेख किया है, लेकिन देश के कोने-कोने से नई-नई खेल प्रतिभाएं सामने आ रही हैं। खेल-कूद से हमारे अन्दर टीम भावना का संचार होता है। सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता के लिए टीम भावना जगाने वाले ऐसे प्रयासों को बढ़ाने की जरूरत है।
- मुझे बताया गया है कि दो दिन तक चलने वाले इस युवा महोत्सव में, विभिन्न राज्यों से आए प्रतिभागी एक दूसरे के खान-पान, वेश-भूषा, भाषा-संस्कृति और लोक-परंपराओं को जानेंगे, अपनाएंगे। एक दूसरे को जानने-समझने का, भेद-भाव को और दूरियों को मिटाकर एक दूसरे को अपनाने का एक रास्ता खेलों से होकर भी जाता है। यदि हो सके तो इस महोत्सव के दौरान, अलग-अलग प्रदेशों में प्रचलित खेल भी एक-दूसरे को सिखाएं। खेलों से दूरियां घटती हैं और अनुशासन की सीख भी मिलती है।
- इस देश को अनुशासन, अपनत्व, आत्म-नियंत्रण और खेल-भावना के गुणों से युक्त बेटे-बेटियों की आवश्यकता है, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प रखने वाले युवाओं की आवश्यकता है। मुझे खुशी है कि पावन चिन्तन धारा आश्रम, ऐसे युवाओं को तैयार करने का प्रयास कर रहा है। राष्ट्र-निर्माण के ऐसे प्रयासों को मैं अपनी शुभकामनाएं देता हूं। ‘राष्ट्रीय युवा महोत्सव’ की सफलता की कामना करते हुए, सभी युवाओं से स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में मुझे यही कहना है कि-
‘’उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान्-निबोधत’’ अर्थात् उठो, जागो और ध्येय की प्राप्ति होने तक, रुको मत।