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रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) विधेयक, 2013 में संशोधन

देश-विदेश

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने आज राज्य सभा में लंबित रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) विधेयक, 2013 में संशोधनों को अपनी मंजूरी दे दी और विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों को मंजूरी दे दी। शहरी विकास पर संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों और विभिन पक्षों (उपभोक्ता संगठनों, उद्योग संगठनों, शिक्षा, विशेषज्ञों आदि) के सुझावों को भी गहन विचार-विमर्श में स्वीकार कर लिया गया।

रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) विधेयक उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की दिशा में एक बड़ी पहल है, जिससे रियल एस्टेट में होने वाले लेनदेनों में सही कामकाज को बढ़ावा मिलेगा और परियोजनाओं का समयबद्ध कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा।

विधेयक उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा, विवादों के त्वरित निस्तारण और रियल एस्टेट सेक्टर का क्रमिक विकास सुनिश्चित करने के लिए एक समान नियामकीय माहौल उपलब्ध कराता है। विधेयक रियल एस्टेट परियोजनाओं के पंजीकरण और रियल एस्टेट विनियामकीय प्राधिकरण के साथ रियल एस्टेट एजेंटों के पंजीकरण; प्रवर्तकों और आवंटियों के कामकाज और कर्तव्यों; न्यायिक फैसलों के माध्यम से विवादों के त्वरित निस्तारण के वास्ते प्रतिष्ठान; रियल एस्टेट अपीली न्यायाधिकरण की स्थापना; अपराध और जुर्माने आदि के प्रावधान करता है।

इन उपायों से सेक्टर में घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलने का अनुमान है, साथ ही भारत सरकार की निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाकर ‘2022 तक सबको घर’ उपलब्ध कराने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।

विधेयक रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण के साथ रियल एस्टेट परियोजनाओं के साथ ही रियल एस्टेट एजेंटों के पंजीकरण के माध्यम से प्रवर्तकों द्वारा उपभोक्ताओं के लिए भेद प्रकाशन सुनिश्चित करता है। विधेयक का उद्देश्य रियल एस्टेट सेक्टर के प्रति आम जनता का भरोसा बहाल करना और रियल एस्टेट व आवासीय लेनदेनों में पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है। इससे सेक्टर के लिए पूंजी और वित्तीय बाजारों तक पहुंच बनाना आसान होगा, जो दीर्घकालिक विकास के लिए जरूरी है। विधेयक से कुशलता से परियोजनाओं का निर्माण पूरा करके, पेशेवर तरीके से और मानदंडों को अपनाने के साथ क्रमिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।

विधेयक से उपभोक्ताओं में ज्यादा भरोसा सुनिश्चित होने का अनुमान है और इससे धोखाधड़ी व देरी में खासी कमी आएगी। इसका लक्ष्य उपभोक्ताओं को ज्यादा सुरक्षा देना है।

विधेयक की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1.विधेयक की प्रयोज्यताः

प्रस्तावित शुरुआती विधेयक आवासीय रियल एस्टेट पर लागू था। अब प्रस्तावित विधेयक के दायरे में आवासीय और व्यावसायिक रियल एस्टेट दोनों हैं;

2. रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण की स्थापनाः

-उपयुक्त सरकार द्वारा रियल एस्टेट सेक्टर में होने वाले लेनदेनों के लिए हर राज्य/संघ शासित क्षेत्र (यूटी) में एक या ज्यादा ‘रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण की स्थापना’, या दो या ज्यादा राज्यों/यूटी के लिए एक प्राधिकरण की स्थापना,

-विवादों के निस्तारण या मुआवजा और ब्याज लगाने के लिए एक ज्यादा न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति;

3. रियल एस्टेट परियोजनाओं और रियल एस्टेट एजेंटों का पंजीकरणः

रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण के साथ रियल एस्टेट परियोजनाओं और रियल एस्टेट एजेंटों जो किसी भूखंड, अपार्टमेंट या इमारत बेचना चाहते हैं, का अनिवार्य पंजीकरण;

4. सभी परियोजनाओं के बारे अनिवार्य सार्वजनिक डिसक्लोजरः

प्रवर्तकों, परियोजना, नक्शे, विकास कार्यों की योजना, जमीन की स्थिति, सांविधिक मंजूरियों की स्थिति का विवरण का सार्वजनिक डिसक्लोजर और समझौतों, नामों व रियल एस्टेट एजेंटों, ठेकेदारों, आर्किटेक्ट, स्ट्रक्चरल इंजीनियरों आदे के पदे आदि डिसक्लोजर अनिवार्य;

5. प्रवर्तकों के कार्य और कर्तव्यः

-परियोजनाओं की उचित जानकारियों डिसक्लोजर;

-स्वीकृत योजनाओं और परियोजनाओं की विशेषताओं का अनुपालन;

-बिक्री के विज्ञापन या प्रॉसपेक्टस की सत्यता से संबंधित बाध्यताएं:

-ढांचागत कमियों को दूर करना;

-डिफॉल्ट की स्थिति में पैसा लौटाना;

6. 50 फीसदी रकम को अनिवार्य जमा करनाः

रियल एस्टेट परियोजना के लिए आवंटियों में मिली कुल धनराशि की 50 फीसदी को अनूसूचित बैंक के अलग खाते में जमा करना अनिवार्य, जो 15 दिनों के भीतर किया जाएगा;

7.घोषित योजनाओं का पालनः

-डिसक्लोजर के बाद योजनाओं, ढांचागत डिजाइन और भूखंड, अपार्टमेंट या इमारत की विशेषताओं में दो तिहाई आवंटियों की सहमति के बिना बदलाव से प्रवर्तक को रोकना;

-हालांकि आर्किटेक्चरल और ढांचागत कारणों से मामूली बदलावों को स्वीकृति;

8. रियल एस्टेट एजेंटों के कार्य:

-रियल एस्टेट एजेंट प्राधिकरण के साथ पंजीकृत संपत्तियों को बेचें;

-बहीखाते, रिकॉर्ड और दस्तावेजों का रखरखाव

-किसी अनुचित कारोबार व्यवहार में शामिल नहीं होना

9. आवंटियों के अधिकार और कर्तव्यः

-परियोजना का चरणवार शिड्यूल जानने का अधिकार

-प्रवर्तक की घोषणा के अनुरूप कब्जे का दावा

-प्रवर्तक द्वारा डिफॉल्ट के लिए ब्याज और मुआवजा लौटाना

-समझौते के मुताबिक आवंटियों द्वारा भुगतान करना और जिम्मेदारियों को पूरा करना

10. रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण के कार्यः

प्राधिकरण रियल एस्टेट सेक्टर के विकास से संबंधित प्रयासों के समन्वय के लिए नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा और सरकार को सेक्टर के विकास और सेक्टर में पारदर्शी, कुशल प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए सलाह देगा।

11.त्वरित विवाद निस्तारण ढांचाः

-न्यायिक अधिकारियों (जिला न्यायाधीश) के माध्यम से त्वरित विवाद समाधान

-याचिकाओं की सुनवाई के लिए अपीली न्यायाधिकरण

12. केंद्रीय परामर्श परिषद की स्थापनाः

अधिनियम, सिफारिश की गई नीति के कार्यान्यवन और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा व रियल एस्टेट सेक्टर के तेज विकास के लिए केंद्र सरकार को सलाह देना।

13.रियल एस्टेट अपीली न्यायाधिकरण की स्थापनाः

प्राधिकरण और न्यायिक अधिकारियों के आदेशों पर याचिकाओं को सुनने के लिए रियल एस्टेट अपीली न्यायाधिकरण। अपीली न्यायाधिकरण की अगुआई उच्च न्यायालय के एक मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाएगी, साथ एक न्यायिक और एक प्रशासनिक/तकनीक सदस्य होगा

14.दंडात्मक प्रावधान

विधेयकों के प्रावधानों या प्राधिकरण या न्यायाधिकरण के आदेशों के उल्लंघन के मामले में परियोजना का पंजीकरण रद्द करने और जुर्माने सहित दंडात्मक प्रावधान

15.क्षेत्राधिकार अदालतों की रोकः

क्षेत्राधिकार अदालतों या किसी अन्य प्राधिकरण को विधेयक के अंतर्गत आने वाले मामलों से संबंधित शिकायतों से रोकने का प्रावधान

16.नियम और शर्त तय करने का अधिकारः

-उपयुक्त सरकार को विधेयक में उल्लिखित विषयों पर नियम बनाने के अधिकार

-विनियामक प्राधिरण को नियम बनाने के अधिकार

पृष्ठभूमि

रियल एस्टेट विकास और आवास निर्माण 1980 के दशक तक राज्य संस्थानों की चिंता हुआ करता था, जब कुछ ही निजी प्रवर्तक होते थे और उद्योग अपने शुरुआती दौर में था। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण, निजी क्षेत्र को निर्माण में उतरने के लिए प्रोत्साहन, कई सफल सौदों के साथ सेक्टर की देश के जीडीपी में अहम हिस्सेदारी हो गई है।

वर्तमान में रियल एस्टेट और आवासीय क्षेत्र व्यापक स्तर अनियमित और अस्पष्ट है, उपभोक्ताओं को पूरी जानकारी नहीं मिल पा रही है, या प्रभावी विनियमन नहीं होने के कारण बिल्डरों और डेवलपरों के प्रति विश्वसनीयता नहीं है।

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