बौद्धिक होने का तात्पर्य यह है कि हम अपने पारिवारिक दायित्वों से पूर्णतया मुक्त होने के पश्चात् अपनी परम बौद्धिक उपलब्धि का अनुभव समाज को देने के लिए वापस समाज में लौट आये। अनेक महापुरूषों के उदाहरण हमारे सामने हैं जिन्होंने अपने अनंत जीवन की सफल यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पीछे लौट कर अपनी परम उपलब्धि के अनुभव से समाज को बौद्धिक रूप से ऊँचा उठाया है। समाज के परम बौद्धिकों से मेरी अपने समाज में वापिस लौटने की मार्मिक अपील है। परम बौद्धिकों के लम्बे अनुभव को पाकर समाज अत्यधिक लाभान्वित तथा सदैव ऋणी रहेगा। हमारा विश्वास है कि यहीं समाज तथा संसार तथा प्रकृति के ऋण से मुक्ति का सबसे सरल उपाय है। आपका जीवन बौद्धिक समाज की उभरती हुई प्रतिभाओं के लिए सदैव आदर्श स्वरूप रहेगा। परम बौद्धिकों का समाज में वापिस लौटने का हृदय की गहराईयों से हार्दिक स्वागत तथा अभिनंदन है।
कैसे आप शिक्षा में आगे बढ़े, किस विचार से कैरियर चुना, कैसे पारिवारिक दायित्वों को सफलतापूर्वक पूरा किया, कैसे उपलब्धियाँ प्राप्त की, कैसे जीवन में आयी बाधाओं में से रास्ता बनाया? समाज इसके बारे में जानकर फूल की तरह पूरी तरह खिल जायेगा। आप बौद्धिक जगत के असली विजेता हैं, आपने अपने जीवन का लक्ष्य सदैव बड़ा रखा और छोटे-छोटे नपे-तुले कदम बढ़ाकर बौद्धिक तथा सामाजिक जगत की सर्वोच्च ऊँचाइयों में अपना मुकाम बनाया है। आपके जीवन में छोटे कदम उठाते रहने का अर्थ है कि अपने प्रयत्नों का ग्राफ हमेशा ऊँचाईयों की ओर चढ़ाए रखना है। समाज में आपकी तरह जो भी अपने काम को इज्जत देते हैं, वे यह जानते हैं कि हर छोटा कदम उनके बड़े प्रयास का एक हिस्सा है! आपने परम बौद्धिक के रूप में समाज में अपनी अलग पहचान बनाकर समाज को गौरवान्वित किया है। आपके कुशल मार्गदर्शन से आपकी तरह के बेजोड़ समाजसेवी बौद्धिक युवा पीढ़ी से तैयार होने की राह देख रहे हैं।
महापुरूषों के लोक कल्याणकारी कार्यों से सीख लेना अत्यन्त कठिन हैं, लेकिन असम्भव नहीं है। हम उतना ही समझ सकते है जितनी हमारी समझ है। हम उन महान समाज सुधारकों की उस अनुभूति को कैसे समझेंगे जिस अनुभूति को समझने की हमारी मानवीय सोच तथा मानवीय प्रेम से भरा हृदय नहीं है। हम जब मानव कल्याण की पवित्र भावना से अपनी नौकरी या व्यवसाय करेंगे तब वहां पहुंचेंगे जहां कभी महान समाज सुधारक पहुंचे हैं। मानव मात्र से प्रेम की भावना के अतिरिक्त कोई व्यक्ति कभी किसी को भली प्रकार नहीं जान सका है। हम सब ज्ञान के माध्यम से ही किसी महापुरूष को जानने की कोशिश करते हैं, इसलिए उस महापुरूष के समाज कल्याण से भरे विचारों को न पूरी तरह जान पाते हैं और न अपने जीवन में, न ही अपने पारिवारिक जीवन में तथा न ही समाज के लिए उनके विचारों से पूरी तरह लाभ उठा पाते हैं।
विचार की शक्ति अद्भुत है, लेकिन पर्याप्त नहीं है। व्यक्ति मात्र अच्छा विचार करने भर से लोक कल्याण से भरे किसी लक्ष्य पर पहुँचता नहीं है। वह एक कोरा बौद्धिक, कोरा विचारक, भटका हुआ वैज्ञानिक तथा कोरा दार्शनिक बनकर रह जाता है। आज समाज में अनेक व्यक्ति अच्छे तो हैं लेकिन समाज के हित की दृष्टि से अनुपयोगी हैं। विचार से आगे बढ़कर उसे कार्य रूप में बदलने तथा आचरण में लाने से ही कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। विचार के साथ लोक कल्याणकारी विकल्प रहित संकल्प भी जुड़ा होना चाहिए। मन रूपी दर्पण के ऊपर जमी धूल के कारण उस मैले दर्पण में हम अपना बौद्धिक क्षमताओं से प्रकाशित वास्तविक स्वरूप साफ-साफ नहीं देख पाते हैं। एक प्रेरणादायी गीत की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं – तोरा मन दर्पण कहलाये भले-बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखायें। मन का उजियारा जब जब फैले समाज में उजियारा होए। इस उजले दर्पण में प्राणी धूल न जमने पाये। मन की कदर भुलाने वाला हीरा जन्म गवाये। एकमात्र समाज कल्याण की पवित्र भावना से अपनी नौकरी या व्यवसाय करने तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने से मन पर जमी धूल साफ होती है। विचार क्रान्ति के द्वारा समाज के अज्ञान रूपी अन्धकार को समयानुकूल विचारों के प्रकाश से प्रकाशित करना है।
भारत रत्न डा. अम्बेडकर के अनुसार विचारों में आग से भी अधिक गर्मी होती है। कोई भी मानव कल्याणकारी विचार प्रचार और प्रसार के अभाव में मर जाता है। विचार परिवर्तन ही हर परिवर्तन का मूल है। संसार में सभी बड़ी वैचारिक क्रान्ति बड़े विचारों के कारण हुई हैं। आज संचार माध्यमों, सूचना क्रान्ति तथा इनोवेशन के इस नये युग का सर्वाधिक आवश्यक विचार है – ‘‘बौद्धिक व्यक्तियों की उपलब्धि के अनुभव को सर्वजन सुलभ बनाने का समय आ गया है।’’ किसी नये विचार को कार्य रूप में बदल देने का रास्ता चुनौतीपूर्ण है! एक नया विचार यदि समाज द्वारा स्वीकार होता है तो बौद्धिक गुणों से युक्त व्यक्ति सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन में बहुत बड़ा योगदान करता है।
प्रदीप कुमार सिंह, लेखक, लखनऊ