नई दिल्ली: नयी दिल्ली के इंडिया गेट पर 10 से 23 अक्टूबर तक सरस आजीविका मेल का आयोजन किया गया है। यह मेला केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के दीन दयाल दयाल उपाध्याय योजना की एक पहल है जिसका उद्देश्य ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों को अपने कौशल का प्रदर्शन करने, उत्पादों को बेचने और थोक खरीदारों के साथ सीधे संपर्क बनाने का अवसर प्रदान करना है। मेले के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों की महिला सदस्यों को शहरी ग्राहकों की मांग और रुचि को समझने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मौका मिल रहा है। मेले का आयोजन मंत्रालय की विपणन शाखा- लोक कार्यक्रम और ग्रामीण प्रौद्योगिकी विकास परिषद् (कपार्ट) की ओर से किया गया है।
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर कल 12 अक्टूबर को शाम पांच बजे औपचारिक रूप से मेले का उद्घाटन करेंगे। मेला स्थल पर 22 से अधिक स्टाल लगाए गए हैं, जहां 29 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के लगभग 500 ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों के शिल्पकार अपने हस्तशिल्प, हथकरघा, प्राकृतिक खाद्य उत्पादों को प्रदर्शित करने के साथ ही क्षेत्रीय व्यजंनो के स्टॉल भी लगाएंगे। प्रत्येक स्टॉल में स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के पास लोगों के साथ साझा करने के लिए अपने संघर्षों की एक कहानी है। मेले के दौरान इन महिलाओं के लिए कार्यशालाएं भी आयोजित की जाएंगी, जो उन्हें अपना ज्ञान बढ़ाने तथा अपने उत्पादों की बेहतर पैकेजिंग, विपणन, ई-मार्केटिंग तथा लोगों तक आसानी से अपनी बात पहुंचाने का कौशल निखारने में मदद करेंगी।
सरस आजीविका मेले में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लोगों के लिए हथकरघा, हस्तशिल्प और प्राकृतिक खाद्य उत्पाद प्रदर्शित किए गए हैं। इसके साथ ही क्षेत्रीय व्यंजनों के फूड कोर्ट भी लगाए गएं हैं। मेले की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं।
हथकरघा:
a. साड़ियां – मेले में आंध्रप्रदेश की कलमकारी, बिहार की सूती और रेशमी, छत्तीसगढ़ की कोसा, झारखंड़ की तसर सिल्क और सूती, कर्नाटक की इक्कल, मध्यप्रदेश की चंदेरी तथा बाघ प्रिंट, महाराष्ट्र की पैठनी, ओडिशा की तसर और बांदा, तमिलनाडु के की कांचीपुरम, तेलंगाना की पोचंपल्ली, उत्तर प्रदेश की रेशमी, उत्तराखंड की पशमीना तथा पश्चिम बंगाल की काथा, बाटिक, तांत और बलूची साड़ियां प्रदर्शित की गई हैं।
1. परिधान और वस्त्र – इस खंड में असम की मेखला, गुजरात का भारत गुंथन तथा पैच वर्क, झारखंड के दुपट्टे और परिधान सामग्री, कर्नाटक की इल्का कुर्ती, मेघालय के स्टोल्स और ऐरी उत्पाद, मध्यप्रदेश के बाघ प्रिन्ट वाले कपड़े, महाराष्ट्र के वस्त्र, पंजाब की फुलकारी कला वाले कपड़े, उत्तर प्रदेश के तैयार वस्त्र, सूट, उत्तराखंड के स्टोल, पशमीना शालें और साड़ियां तथा पश्चिम बंगाल के काथा स्टिच और बाटिक प्रिंट वाले स्टोल प्रदर्शित किए गए हैं।
- हस्तशिल्प, आभूषण और घर के सजावटी सामान – इस खंड में असम के वाटर हेसिन्थ हैंड बैग और योगा मैट, आंध्रप्रदेश के मोतियों के आभूषण, बिहार की लाख वाली चूडि़यां, मधुबनी पेन्टिंग और सिक्की हस्तशिल्प वाली वस्तुएं, छत्तीसगढ़ के धातु निर्मित उत्पाद, गुजरात की मिट्टी तथा शीशे और डोरी कला के सामान, हरियाणा के मिट्टी निर्मित सामान, झारखंड की आदिवासी कला वाले आभूषण, कर्नाटक के चन्नापटना खिलौने, महाराष्ट्र के लामासा कला के उत्पाद, ओडिशा के सबई घास निर्मित उत्पाद तथा ताड़ के पत्तों पर पट्चित्रकारी वाले उत्पाद, तेलंगाना के चमड़े के बैग, वॉल हैंगिंग, तथा लैंप शेड्स, उत्तर प्रदेश के घर के सजावटी सामान तथा पश्चिम बंगाल की डोकरा हस्तशिल्प कला सितल पट्टी तथा अन्य किस्म के उत्पाद देखने को मिलेंगे।
3. प्राकृतिक खाद्य उत्पाद – मेले में केरल के प्राकृतिक मसाले और खाद्य उत्पाद तथा अन्य राज्यों के मसाले, चावल, मोटे अनाज पापड़, कॉफी, जैम और अचार जैसे उत्पाद रखे गए हैं।
देश के करीब 20 राज्यों के किस्म-किस्म के पारंपरिक भारतीय व्यंजनों वाले स्टॉल मेले का मुख्य आकर्षण हैं। इन स्टॉलो में ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों द्वारा निर्मित खाद्य उत्पाद मिलेंगे। इसके अलावा मेले में झारखंड के इमली उत्पादों की पूरी श्रृंखला भी देखने को मिलेगी। कई स्वयं सहायता समूह इसमें अपने लोक नृत्यों और नाटकों की प्रस्तुति भी देंगे।