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समय और लागत दोनों की बचत, अगली पीढ़ी के त्वरित लॉन्च पुल भारत में समय की आवश्यकता: के के कपिला

उत्तराखंड

नई पीढ़ी के पूर्व-निर्मित त्वरित लॉन्च पुल खासकर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ-साथ रक्षा क्षेत्रों के लिए दुर्गम इलाकों में बुनियादी ढांचे को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

भारत के उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर या उत्तरी एवं पूर्वी हिस्सों में भौगोलिक स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण हैं, जहां भूस्खलन और कठिन परिस्थितियों की आशंका सबसे ज्यादा रहती है। इन क्षेत्रों में पूर्व-इंजीनियर्ड और त्वरित लॉन्च पुल काफी मददगार साबित हो सकते हैं।

कम लागत पर कम समय में बड़ी संख्या में पुलों के निर्माण की यह नई तकनीक पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। पुलों के निर्माण की इस तकनीक का संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों में व्यापक रूप से इस्तेमाल की किया जाता है। देश में भारी संख्या में मौजूद पारंपरिक पुलों में सुधार के लिए आधुनिक तकनीकों के उपयोग पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

भारतीय सड़क नेटवर्क में एक लाख से ज्यादा पुल हैं। । चलनेवाली सड़क पर पुलों का जल्दी से जल्दी निर्माण समय की जरुरत है, जो प्रौद्योगिकी विकास से आसानी से पूरी हो सकती है।

नई पीढ़ी के त्वरित लॉन्च पुल महंगे होते हैं, इस मिथक को दिमाग से निकालने की जरूरत है। भारत का बुनियादी ढ़ांचा क्षेत्र इन पुलों का लाभ उठा सकता है। गौर करने की बात है कि बाकी दुनिया पहले से ही इस सुविधा का लाभ उठा रही है। ये नई पीढ़ी के पुल आपात स्थिति और समय बचाने के लिहाज से मौजूदा बेली पुलों की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर और कम लागत वाले साबित होते हैं। निर्माताओं और उपयोगकर्ताओं को समाधान खोजने में एल-1 दृष्टिकोण से उपर उठकर और ज्यादा समग्र तरीके से निर्णय लेना चाहिए और फायदे की तुलना करनी चाहिए। तब उन्हें पता चलेगा कि खरीद मूल्य में छोटा अंतर कहीं ज्यादा बचत देनेवाला है। इसके लिए तकनीकी पहलुओं और लंबे वक्त के फायदे को साफ तौर पर समझने की जरूरत है।

लोक निर्माण विभाग समेत ज्यादातर सरकारी विभाग बेली ब्रिज को मुख्य रूप से आपात स्थिति में इस्तेमाल करने के लिए रखते हैं।  हाल ही में मुंबई के एल्फिंस्टन स्टेशन पर निर्मित फूट ओवर ब्रिज समाचारों में था। जब तेजी से काम करने के लिए सेना के इंजीनियरों की तारीफ हुई। आपदाओं के दौरान अगर किसी इलाके का संपर्क देश के बाकी हिस्सों से कट जाता है या फिर किसी परियोजना की लागत समय की वजह से बढ़ रही हो, तो ऐसी स्थिति में बेली ब्रिज काफी कारगर साबित होते हैं। ये दुर्गम इलाके की परियोजनाओं के लिए भी बेहतर होते हैं,जहां कार्य स्थल तक सामान ले जाना और उपयोग के साथ रख-रखाव मुश्किल भरा होता है। इन पुलों का उपयोग अस्थायी पुलों के रूप में भी किया जाता है, क्योंकि उन्हें आसानी से लगाया और हटाया जा सकता है और इसका दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। ये पुल मॉड्यूलर और ले जाने में आसान बहु उपयोगी होते हैं और कम जगह में भी इन्हें लगाया जा सकता है। लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के श्रेष्ठ बेली पुलों की अपनी सीमाएं हैं।

बेली ब्रिज की सीमाओं की बात करें, तो इसे अस्थायी या बेहतर अर्द्ध स्थायी पुल के रुप में डिजाइन किया गया है, जिसका जीवन महज 20 साल का होता है। ये अधिकतम 4.2 मीटर का एक लेन का हो सकता है। इसे 30 टी के लोड क्लास के साथ 60 मीटर तक के लिए बनाया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय राजमार्गों (एनएच) को 70 आर और एकल व्हील वाली लोड ट्रेनों की आवश्यकता होती है, जो न्यूनतम 100 टन के साथ 5.3 मीटर सड़क मार्ग तक की जाती हैं। बेली ब्रिज पूरी तरह से पर्याप्त नहीं हैं, इनका उपयोग भार प्रतिबंधों के साथ किया जाता है। जिससे राष्ट्रीय राजमार्गों पर जाम लगने के साथ यातायात और भार क्षमता प्रभावित होते हैं। यह दो लेन राजमार्गों के बेहतर उपयोग को प्रभावित करता है। ये सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं उतरता और परिवहन लागत बढ़ने के साथ ही भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन भी होता है। इनमें से कई पुल ओवरलोडिंग के कारण ध्वस्त हो गए हैं। ये व्यावसायिक लाभ और तेज गति से विकास के लिए राजमार्गों की पूरी क्षमता का इस्तेमाल करनेवालों की आकांक्षाओं को भी पूरा नहीं करते। फिर भी आपातकालीन स्थिति और बेहतरी की उम्मीद के लिए ये पुल लगाना हमारे पास एकमात्र विकल्प है।

जून 2015 में सोनप्रयाग में 36 मीटर लंबे बेली पुल के टूटने से आपातकालीन स्थिति बन गई और केदारनाथ का रास्ता बंद हो गया। ऐसे में मंदिर की यात्रा के लिए क्लास 70 आर एक्रो पुल बनाने का साहसिक निर्णय लिया गया। यह एक स्थायी और अधिक लागत प्रभावी समाधान साबित हुआ। इस पर किए गए निवेश की वापसी भी तत्काल होने लगी और अप्रैल 2016से यात्रा पुन: शुरू हो गई। इससे स्थानीय लोगों की व्यावसायिक गतिविधियों को फायदा पहुंचा, जो पुल की लागत से कई गुना अधिक था। एक्रो पुल के फायदे कई हैं। यह एक स्थायी पुल था, जो जल्दी से लॉन्च किया गया।

त्वरित लॉन्च पुल 75 से 100 साल तक चलते हैं। जस्ता जड़ा स्टील 75 साल तक अच्छा रहता है और इसके खराब होने की कोई आशंका नहीं होती है। इन पुलों को 3.7 मीटर से 14.6मीटर तक की चौड़ाई वाली सड़क के लिए लगाया जा सकता है और इस पर 4 से 5 लेन हो सकते हैं। इस पर आईआरसी 70 आर या 150 एमएलसी भार ले जाया जा सकता है,जैसाकि अमेरिकी सेना करती है। इसका उपयोग रेल पुलों और दूसरे पुलों के रुप में भी किया गया है। इसमें स्थायी पुल के सभी फायद हैं। साथ ही जल्दी से लगाने और हटाने की विशेषता की वजह से इसे अस्थायी पुल के रुप में कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। जब हम इसके लागत की दूसरे पुलों के साथ तुलना करते हैं, तो हर पहलु पर ध्यान देना चाहिए। नहीं तो,यह सेब और संतरे की तुलना जैसी बात होगी।

लागत की तुलना की जरुरत वाले प्रमुख कारक हैं: –

प्रति वर्ग / मीटर लागत पूर्ण लागत से ज्यादा वास्तविक है। इसमें बेली ब्रिज की तुलना में ज्यादा लेन होगी, (इसकी अधिकतम चौड़ाई, 4.2 मीटर 70 आर के लिए विनिर्देशों से नीचे है)।

अगर भार क्षमता की बात करें, तो जब एक पुल 100 टी क्षमता वहन कर सकता है, तो इसकी तुलना उस पुल से की जाती है, जो महज 30 टन भार वहन कर सकता है, तो ऐसे में भार प्रति टन लागत की तुलना तार्किक रूप से ज्यादा उपयुक्त तुलना होती है।

लाइफ साइकल लागत में रखरखाव लागत के साथ प्रारंभिक लागत शामिल है, जिसकी गणना सालाना आधार पर लागत के लिए की जाती है। जब हम 20 के जीवन वाले एक पुल की तुलना लगभग शून्य रखरखाव वाले स्थायी पुल से करते हैं, तो प्रारंभिक लागत पूरी तरह से भ्रामक होगी। लंबे समय की बड़ी बचत करीब तीन गुनी है।

व्यावसायिक फायदे। त्वरित लॉन्च पुल के फायदे यह हैं कि अपशिष्ट की तैयारी और उपकरण को स्थानांतरित करने के समय के आधार पर 3-6 महीने में इसे लगाया जा सकता है। अगर हम 60 मीटर के 1-2 साल में बनने वाले नियमित पुलों से तुलना करें, जो कई बार तीन साल तक हो सकते हैं। तो व्यावसायिक गतिविधियों पर पड़ने वाला प्रभाव ज्यादा होगा। किसी तरह की देरी का असर व्यावसायिक गतिविधियों पर पड़ता है और स्थानीय लोगों का मनोबला गिराता है। आमतौर पर इन्हें अनदेखा कर दिया जाता है, क्योंकि इसे मापना मुश्किल होता है। साफ तौर पर पुल की लागत 20-30 गुनी हो सकती है। इस पहलु के लिए निर्माता को जिम्मेदार होना होगा, अन्यथा यह स्थानीय जरूरतों के साथ समन्वयित नहीं होगा। यह काफी समय से चल रहा है और इसे बदलने की जरूरत है।

नई पीढ़ी के त्वरित लॉन्च पुल आपात स्थिति के तत्कालीन समाधान के साथ ही लंबे समय तक लागत प्रभावी साबित हो सकते हैं। इन पुलों के संग्रह की जरूरत है, ताकि उन्हें आपातकालीन स्थिति में एक महीने के भीतर बनाया और वितरित किया जा सके। ये पुल आईआरसी मानकों पर खरे, सुरक्षित और स्थायी होंगे। इसका उपयोग नियमित निर्माण के लिए भी किया जा सकता है, जहां समय की बचत प्रारंभिक लागत के अंतर को बराबर कर देगा। यहां व्यावसायिक गतिविधि से जुड़े प्रभाव के आकलन और स्थानीय लोगों को राहत देने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण रखने की जरूरत होती है। ऐसे पुलों पर विचार करने में रियायत के लिए जल्दी पूरा करने, टोल संग्रह और जुर्माना से बचना एक अहम कारक हो सकता है। वास्तव में इस तरह के मामलों में रियायत लेनेवालों और अधिकारियों दोनों के लिए बेहतर हो सकता है।

त्वरित लॉन्च पुलों का दूसरा उपयोग, कम से कम समय में मौजूदा पुलों को बदलने या एकल लेन से दोहरा लेन में अपग्रेड करने, या मौजूदा कमजोर पुलों को परिवर्तित करने में किया जा सकता है। ऐसा केवल अस्थायी चक्कर लगाकर उसी साइट के उपयोग के साथ किया जा सकता है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के पुलों पर गहन सर्वेक्षण के साथ इसकी आवश्यकता बढ़ेगी। हमारे पास यह मौका है कि समय बचाने और जनता को असुविधा से बचाने के लिए व्यावहारिक विकल्पों पर ध्यान दिया जाए।

हम लागत की तुलना करने और अच्छी तकनीक का फायदा उठाने में ज्यादा यथार्थवादी बनें। एक बार जरुरत की पहचान हो जाने पर मांग बढ़ेगी और निकट भविष्य में ऐसे पुल ‘मेक इन इंडिया’ हो सकते हैं। आखिरकार, पुल जैसे साधन को सही प्राथमिकताओं के साथ सरल होना चाहिए। हमें राष्ट्रीय राजमार्गों के इस्तेमाल को कमजोर करने वाले असुरक्षित पुलों को स्वीकार करने वाली “चलता है” रवैया छोड़कर, और बेहतर, सुरक्षित पुल और तेज निर्माण की मांग करनी चाहिए।

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