उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज पूरे देश के विद्यालयों से छात्रों में जिज्ञासा, नवाचार और उत्कृष्टता की भावना को बढ़ावा देने का अनुरोध किया, जिससे वे तकनीक संचालित 21वीं सदी के विश्व की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकें।
श्री नायडु ने रटने वाली पढ़ाई को छोड़ते हुए शिक्षा के लिए भविष्यवादी दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “सबसे अच्छा कौशल, जो विद्यालय आज छात्रों को प्रदान कर सकते हैं, वह अनुकूलन क्षमता है।” उपराष्ट्रपति ने विद्यालयों से छात्रों को आत्मचिंतन करने और अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके नवाचार करने को लेकर प्रशिक्षित करने के लिए कहा।
उपराष्ट्रपति ने चेन्नई के पास स्थित वीआईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की एक पहल-वेल्लोर इंटरनेशनल स्कूल का उद्घाटन किया। अपने संबोधन में श्री नायडु ने एक बच्चे के शुरुआती वर्षों के दौरान स्कूली शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इस पर अपनी चिंता व्यक्त की कि छात्र पारंपरिक शिक्षा प्रणाली के तहत कक्षा की चारदीवारी में अधिकांश समय बिता रहे हैं। उन्होंने छात्रों को “बाहर के संसार का अनुभव करने – प्रकृति की गोद में समय बिताने, समाज के सभी वर्गों के साथ बातचीत करने और विभिन्न शिल्प व व्यापार को समझने” के लिए प्रोत्साहित करने का आह्वान किया।
The Vice President, Shri M. Venkaiah Naidu inaugurating the Vellore International School near Kelambakkam in Chennai today. pic.twitter.com/njYRY8GvSk
— Vice President of India (@VPSecretariat) June 29, 2022
श्री नायडु कक्षा की पढ़ाई को क्षेत्रीय गतिविधियों, सामाजिक जागरूकता और सामुदायिक सेवा पहलों के साथ पूरक बनाए जाने की अपनी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने आगे कहा कि कम उम्र से ही छात्रों में सेवा और देशभक्ति की भावना पैदा करने की सख्त जरूरत है।
उपराष्ट्रपति ने इस बात को याद किया कि भारत की प्राचीन गुरुकुल प्रणाली शिक्षक के बच्चों के बीच समय बिताने के साथ एक व्यक्ति के समग्र विकास पर केंद्रित थी। इसमें छात्रों के चरित्र निर्माण और सही मूल्यांकन पर जोर दिया गया था। उपराष्ट्रपति ने विद्यालयों से ‘गुरु शिष्य परंपरा’ के सकारात्मक पहलुओं को अपनाने पर जोर दिया। इसके अलावा श्री नायडु ने पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच कृत्रिम अलगाव को दूर करने और शिक्षा में बहु-विषयकता को प्रोत्साहित करने का भी आह्वान किया।
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि उनकी इच्छा है कि विद्यालय एक मूल्य-आधारित समग्र शिक्षा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करें, जो “हर एक छात्र में महान क्षमता और उच्चतम गुणों” का विकास करे। उन्होंने उल्लेख किया कि “मूल्यों के बिना शिक्षा, शिक्षा न मिलने के समान है।”
उपराष्ट्रपति ने विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया। श्री नायडु ने कहा, “हमें छात्रों को अपने सामाजिक परिवेश में अपनी मातृभाषा में स्वतंत्र रूप से बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जब हम स्वतंत्र रूप से और गर्व के साथ अपनी मातृभाषा में बात कर सकेंगे, उस समय ही हम अपनी सांस्कृतिक विरासत की सही मायने में सराहना कर सकते हैं।”
इसके अलावा उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अपनी मातृभाषा के अलावा अन्य भाषाओं में किसी की दक्षता सांस्कृतिक जुड़ाव के निर्माण में सहायता करती है और अनुभव के नए संसार के लिए खिड़कियां खोलती हैं। हालांकि, श्री नायडु ने इस बात पर जोर दिया कि “किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाना चाहिए और न ही इसका कोई विरोध होना चाहिए।” उपराष्ट्रपति ने आगे सुझाव दिया कि यथासंभव भाषाएं सीखनी चाहिए, लेकिन मातृभाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
श्री नायडु ने विद्यालयों से बच्चों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने के लिए छात्रों को नियमित शारीरिक गतिविधि के लिए प्रोत्साहित करने का भी अनुरोध किया। उन्होंने छात्रों को स्वस्थ जीवन शैली को अपनाने के लिए उत्साहपूर्वक खेल या किसी भी तरह के व्यायाम की सलाह दी।
इस कार्यक्रम में तमिलनाडू के एमएसएमई मंत्री श्री टीएम अंबारासन, वीआईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के संस्थापक व कुलपति डॉ. जी विश्वनाथन, वीआईटी के वीआईएस व उपाध्यक्ष श्री जीवी सेल्वम, वीआईटी के उपाध्यक्ष श्री शंकर विश्वनाथन, वीआईटी के उपाध्यक्ष श्री सेकर विश्वनाथन और अन्य उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति का पूरा संबोधन
“मैं चेन्नई के वेल्लोर इंटरनेशनल स्कूल का उद्घाटन करने के लिए यहां आकर बहुत प्रसन्न हूं। मैं जो देख सकता हूं, वह यह है कि विद्यालय एक शानदार व शांत परिसर के रूप में अपना आकार ले रहा है, जो शिक्षण के लिए आदर्श है और मैं उनकी शैक्षणिक यात्रा में इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए वीआईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के प्रबंधन की सराहना करता हूं।
मुझे प्रसिद्ध तमिल कवि भारतियार की याद आ रही है, जिन्होंने लिखा है कि एक हजार मंदिर (आलयम) बनाने या हजारों भोजन केंद्र (अन्ना चतिराम) स्थापित करने की तुलना में एक बच्चे को शिक्षित करना अधिक पुण्य का काम है। वीआईटी समूह निजी क्षेत्र में उच्च शिक्षा को मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है और मुझे विश्वास है कि यह संस्थान उनकी एक और उपलब्धि होगी।
बहनो और भाइयो,
जैसा कि आप जानते हैं, भारत प्राचीन काल से ज्ञान का भण्डार और अकादमिक उत्कृष्टता का उद्गम स्थल रहा है। गुरुकुल प्रणाली में शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया था और एक व्यक्ति के समग्र विकास के लिए ज्ञान व कौशल प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। वास्तव में तक्षशिला, पुष्पगिरि और नालंदा जैसे विश्व स्तरीय शिक्षा केंद्रों के कारण भारत को कभी विश्वगुरु के रूप में जाना जाता था। इन केंद्रों पर हजारों छात्र, जिनमें कई विदेशों के भी कई छात्र भी शामिल थे, विविध विषयों का अध्ययन करते थे। भारत ने प्राचीन काल से ही अन्य विषयों के साथ-साथ विज्ञान, गणित, दर्शन, चिकित्सा, खगोल विज्ञान के क्षेत्र में कई तरह का योगदान किया है।
बहनो और भाइयो,
पूरे देश के विद्यालयों से मेरी उत्साहपूर्ण अपील है कि वे छात्रों में जिज्ञासा, नवाचार और उत्कृष्टता की भावना को बढ़ावा दें। तकनीक संचालित तेजी से बदलते इस संसार में चुनौतियां और अवसर बहुत अधिक हैं। इस संदर्भ में विद्यालय एक छात्र को सबसे अच्छा कौशल के रूप में अनुकूलन क्षमता प्रदान कर सकता है। छात्रों को जल्द आत्मचिंतन करने, चुस्त रहने और 21वीं सदी की समस्याओं के समाधान को लेकर अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
हमारे पास इस भविष्यवादी दृष्टिकोण के अनुरूप एक शैक्षणिक रणनीति जरूर होनी चाहिए और हमें रटने वाली पढ़ाई से बचना चाहिए। हमें पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच कृत्रिम अलगाव को भी दूर करना चाहिए और शिक्षा में बहुविषयकता को प्रोत्साहित करना चाहिए।
प्राचीन गुरुकुल प्रणाली में शिक्षक अपने छात्रों के साथ समय बिताते थे और उनके बीच रहते थे, जिससे छात्र के चरित्र निर्माण व सही मूल्यांकन का अवसर मिलता था। मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि वेल्लोर इंटरनेशनल स्कूल में आधुनिक अध्यापन संबंधी अभ्यासों के साथ गुरु शिष्य परंपरा के सकारात्मक पहलुओं को एकीकृत करने के लिए ‘हाउस पेरेंट’ की अवधारणा को प्रस्तुत करने के प्रयास कर रहे हैं।
बहनो और भाइयो,
एक अन्य पहलू जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए, वह स्कूली शिक्षा में मातृभाषा का उपयोग है। जहां तक संभव हो, कम से कम प्राथमिक स्तर तक सरकारी और निजी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा में होना चाहिए।
हमें छात्रों को उनके सामाजिक परिवेश में- विद्यालय परिसर में, सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में और अपने घर में स्वतंत्र रूप से अपनी मातृभाषा में बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जब हम स्वतंत्र रूप से और गर्व के साथ अपनी मातृभाषा बोल सकेंगे, उस समय ही हम सही मायने में अपनी सांस्कृतिक विरासत की सराहना कर सकते हैं।
मुझे यहां यह जरूर दोहराना होगा कि अपनी मातृभाषा पर ध्यान केंद्रित करने का मतलब यह नहीं है कि किसी को अन्य भाषाएं जैसे कि अंग्रेजी सीखने की जरूरत नहीं है। वास्तव में आम तौर पर मैं कहता हूं कि जितनी हो सके उतनी भाषाएं सीखनी चाहिए, लेकिन मातृभाषा में एक मजबूत नींव की जरूरत होती है। अध्ययनों से पता चला है कि बहुभाषावाद से बच्चों में बेहतर ज्ञान संबंधी विकास हो सकता है। अपनी मातृभाषा के अलावा अन्य भाषाओं में दक्षता सांस्कृतिक जुड़ाव के निर्माण में सहायता करती है और अनुभव के नए संसार के लिए खिड़कियां खोलती हैं।
बहनो और भाइयो,
यह वास्तव में सच है कि विद्यालय की शिक्षा एक छात्र की अकादमिक और पेशेवर उत्कृष्टता के लिए बाद के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण आधारशिला रखती है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बच्चा अपने शुरुआती वर्षों के दौरान विद्यालय में जो समय बिताता है, वह उनके व्यक्तित्व को आकार देता है और उनके चरित्र को ढालता है। यह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्ति की सफलता में सबसे बड़ा कारक बन जाता है, बल्कि आदर्श नागरिकता के निर्माण की भी कुंजी है, जो देश को आगे ले जा सकता है।
विद्यालयों को ऐसी मूल्य-आधारित समग्र शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करनी चाहिए, जो हर एक छात्र में महान क्षमता और उच्चतम गुणों को समाहित करे। याद रखें कि बिना मूल्यों की शिक्षा, बिल्कुल भी शिक्षा नहीं है।
छात्रों के सर्वांगीण विकास के प्रयास के तहत शैक्षणिक संस्थानों को आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने और छात्रों को नियमित शारीरिक गतिविधि करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए। छात्रों को उत्साहपूर्वक खेलना चाहिए या किसी भी तरह का व्यायाम करना चाहिए, जो उन्हें पसंद है और एक स्वस्थ जीवन शैली का निर्माण करते हैं।
यह आधुनिक व प्रतिस्पर्धी शिक्षा का अभिशाप है कि आम तौर पर छात्रों को शिक्षण के नाम पर कक्षा की चाहरदीवारी तक सीमित कर दिया जाता है। उन्हें बाहर के संसार का अनुभव करना चाहिए – प्रकृति की गोद में समय बिताना चाहिए, समाज के सभी वर्गों के साथ बातचीत करनी चाहिए और विभिन्न शिल्पों व व्यापारों को समझना चाहिए। कक्षा के कार्यक्रमों को क्षेत्र गतिविधियों, सामाजिक जागरूकता और सामुदायिक सेवा पहलों में सक्रिय भागीदारी के साथ जोड़ा जाना चाहिए। छोटी उम्र से ही छात्रों में सेवा की भावना उत्पन्न करने की सख्त जरूरत है।
आज इस विद्यालय का उद्घाटन करते एक बार फिर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। युवा मस्तिष्क को पोषित करने के इस महत्वपूर्ण मिशन को पूरा करने देने के लिए डॉ. विश्वनाथन, श्री सेल्वम, प्रबंधन और स्कूल के कर्मचारियों के साथ-साथ वीआईटी समूह को मेरी ओर से शुभकामनाएं हैं।
मैं तिरुक्कुरल के एक श्लोक को याद करते हुए अपनी बात को समाप्त करता हूं, जिनका कहना है:
“கேடில் விழுச்செல்வம் கல்வி யொருவற்கு
மாடல்ல மற்றை யவை”
जिसका अर्थ है- “ज्ञान ही सच्ची अविनाशी संपत्ति है।”
धन्यवाद। वणक्कम।
जय हिंद।”