उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज लोगों की सामान्य भलाई के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और उनकी गंभीर समस्याओं को हल करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि ’विज्ञान से समाज की भलाई होनी चाहिए न कि कुछ अभिजात वर्ग की। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास का एजेंडा तय करने के लिए लोगों की आकांक्षाओं और लक्ष्यों की आवश्यकता बताई।
विजयवाड़ा के पास स्थित अतकूर स्थित स्वर्ण भारत ट्रस्ट में आज पुस्तक शीर्षक डॉ. वाई. नायुदम्मा: निबंध, भाषण, नोट्स और अन्य’ का विमोचन करने के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री नायडु ने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लोगों को अपना गुलाम नहीं बनाना चाहिए। प्रसिद्ध वैज्ञानिक, डॉ. यलवर्थी नायुदम्मा की जन्म शताब्दी के अवसर पर विमोचित पुस्तक का संकलन और संपादन पूर्व आयकर आयुक्त डॉ. चंद्रहास और डॉ. के. शेषगिरी राव ने किया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भविष्य के बारे में डॉ. नायुदम्मा की परिकल्पना की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह सामाजिक मूल्यों से प्रेरित, सामान्य भलाई के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग चाहते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा, ’’उन्होंने लक्ष्यों व उद्देश्यों और मूल्यों के एक स्पष्ट समुच्चय की रूपरेखा तैयार की थी जिसका अनुप्रयोग लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के साधन के तौर पर और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बदलाव के उत्प्रेरक के रूप मार्गदर्शन के लिए किया जाना चाहिए।
डॉ. वाई. नायुदम्मा के दर्शन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए, श्री नायडु ने सभी संबद्ध लोगों को सलाह दी कि वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साधनों की खोज और अनुप्रयोग के बारे में विभिन्न मुद्दों और सरोकारों की उचित समझ विकसित करने के लिए पुस्तक को पढ़ें। उन्होंने उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए पुस्तक को पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बनाने का भी सुझाव दिया ताकि नवोदित वैज्ञानिकों को उनके सीखने के प्रारंभिक चरण में सही समझ और अभिविन्यास प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष रूप से, पिछली दो शताब्दियों के दौरान तेजी से हुई प्रगति का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब मानव को ’प्रौद्योगिकी पशु’ कहा जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि बेहतर जीवन के लिए निरंतर खोज ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंधाधुंध खोज और अनुप्रयोग के उद्देश्य, प्रासंगिकता, मूल्यों और परिणामों के बारे में कुछ गंभीर समस्याओं और चिंताओं को जन्म दिया है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर अपनाई जा रही विकास की रणनीतियों के परिणामस्वरूप तेजी से संसाधनों की कमी, पारिस्थितिक असंतुलन और असमानताओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की और सतत और सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए वैकल्पिक विकास मॉडल की आवश्यकता बताई।
डॉ. नायुदम्मा, जिन्होंने यह दर्शाया कि वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद इस तरह के बदलाव के प्रभावी एजेंट कैसे बन सकते हैं, को सामाजिक परिवर्तन का एक एजेंट बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि एकांत विज्ञान के अनुशीलन से स्वतः मानवता की सेवा नहीं हो सकती है।
देश में चर्मशोधन उद्योग के आकार और स्वरूप को बदलने में डॉ. नायुदम्मा के अग्रणी योगदान को याद करते हुए श्री नायडु ने कहा कि कुछ पारंपरिक समुदायों द्वारा अपनाए जाने वाले इस पेशे को दूसरों द्वारा बदबू और काम की प्रकृति के कारण हेय दृष्टि से देखा जाता था।
डॉ. नायुदम्मा ने ऐसे मुद्दों का गहन विश्लेषण किया और बदबू को दूर करने और इसमें शामिल लोगों के कौशल में सुधार करके इस पेशे को व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाने में सक्षम बनाया। उन्होंने बताया उनके काम से चर्मशोधन उद्योग की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाने में मदद की। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि ’विज्ञान और प्रौद्योगिकी से अधिक से अधिक रोजगार पैदा होना चाहिए।
ज्ञान को प्रत्येक व्यक्ति का सर्वोत्तम संसाधन बताते हुए, श्री नायडु ने इसके साथ सभी को सशक्त बनाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा, ’’हमें इस तरह का ज्ञान प्रदान करने की आवश्यकता है जो हमारे राष्ट्र की समस्याओं का सामूहिक रूप से समाधान करने में सक्षम हो।’
उनका मानना है कि कोई व्यक्ति केवल सामुदायिक भागीदारी की भावना से और सामूहिक प्रयास के वातावरण में ही सबसे अधिक समृद्धि प्राप्त करता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र तब सर्वोत्तम होता है जब हम राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होते हैं। उन्होंने आगे कहा,’’ इस तरह राष्ट्रवाद प्रत्येक व्यक्ति की पूर्ण क्षमता को साकार करके हमारे राष्ट्र की तीव्र प्रगति के लिए एक सकारात्मक शक्ति है। यह एक नकारात्मक कारक नहीं है जैसा कि कुछ लोगों द्वारा प्रचारित किया जा रहा है।’’
डॉ. नायुदम्मा के आत्मनिर्भरता पर जोर देने का उल्लेख करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि उन्होंने प्रौद्योगिकी और समाधानों के आयात के लिए पश्चिम की ओर देखने का समर्थन नहीं किया क्योंकि पश्चिमी उपचार से भारत की उन समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है, जो अलग और विशेष परिस्थिति जन्य हैं। उन्होंने कहा कि यही आत्मनिर्भर भारत पहल का सार है।
डॉ. नायुदम्मा की अनेक उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए श्री नायडु ने कहा कि वे 1971 में 49 वर्ष की छोटी उम्र में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक बने और उसी वर्ष उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा, ’’डॉ. वाई. नायुदम्मा जैसे दूरदर्शी वैज्ञानिकों का मिलना दुर्लभ है। अगर वह लंबे समय तक जीवित रहते, तो हमारे देश को और अधिक लाभ होता।’’
उपराष्ट्रपति ने डॉ. नायुदम्मा के अग्रणी कार्यों को याद करते हुए उन्हें हमारे देश की महान वैज्ञानिक विरासत की शृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी बताया। भारत को फिर से ’विश्वगुरु’ बनाने के लिए ठोस प्रयास की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि हर कोई हमारी शिक्षा प्रणाली, विज्ञान और अनुसंधान के तरीकों को सुव्यवस्थित करके इस प्रयास में भाग ले।
उन्होंने पुस्तक के लेखकों और प्रकाशकों और नायुदम्मा फाउंडेशन फॉर एजुकेशन एंड रूरल डेवलपमेंट को डॉ. वाई. नायुदम्मा की परिकल्पना और दर्शन को कायम रखने की दिशा में उनके प्रयासों के लिए बधाई दी।
इस अवसर पर श्री नायडु ने स्वर्ण भारत ट्रस्ट के प्रशिक्षुओं से भी बातचीत की और उन्हें जीवन में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित किया।
मिजोरम के राज्यपाल, श्री के हरिबाबू, विजयवाड़ा से सांसद श्री केसिनेनी श्रीनिवास (नानी), स्वर्ण भारत ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री कामिनेनी श्रीनिवास, एनएफईआरडी के अध्यक्ष डॉ डीके मोहन, एनएफईआरडी सचिव श्री गोपालकृष्ण, पुस्तक के संपादक डॉ चंद्रहास, इस कार्यक्रम में स्वर्ण भारत ट्रस्ट के प्रशिक्षु और कर्मचारी और अन्य शामिल हुए।
उपराष्ट्रपति के भाषण का मूल पाठ निम्नलिखित है:
विशिष्ट अतिथिगण, भाइयों और बहनों!
दुनियाभर में मानव जाति को मिस्र, मेसोपोटामिया, बेबीलोन, यूनान, चीनी और सिंधु घाटी जैसी विभिन्न प्राचीन सभ्यताएं विरासत में मिली हैं। इन सभ्यताओं का विकास उस समय से हुआ है जब मानव ने पहली बार अपनी खानाबदोश, शिकारी जीवन शैली को त्याग कर एक स्थान पर बसने के पक्ष में फैसला किया था। दुनिया में समान स्वरूप और आकांक्षाओं के साथ जिसे आधुनिक सभ्यता कहते है और हम उसका सदस्य हैं, यहां तक का यह हजारों वर्षों लंबा सफर रहा है। यह यात्रा अधिक से अधिक ज्ञान के संचय और उच्च जीवन स्तर तलाश में रही है। इस आधुनिक यात्रा की प्रेरक शक्ति विशेष रूप से पिछली दो शताब्दियों के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई तेजी से प्रगति है।
इतना ही नहीं, मानव को अब ’प्रौद्योगिकी पशु’ के रूप में जाना जाता है, जो हमेशा नए उपकरणों की तलाश में रहता है जिनसे उसकी आकांक्षाएं बढ़ती हैं। बेहतर जीवन जीने की इस निरंतर खोज ने कुछ गंभीर समस्याओं को जन्म दिया है। हमारे जीवन के हर पहलू में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के तेजी से विकास और बढ़ते अनुप्रयोग ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंधाधुंध खोज और अनुप्रयोग के उद्देश्य, प्रासंगिकता, मूल्यों और परिणामों के बारे में कुछ गंभीर चिंताओं को जन्म दिया है।
आज हम यहां धरती पुत्र, प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. यलवर्थी नायुदम्मा गरु की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में मिले हैं और इन चिंताओं पर विचार करना उचित है।
मुझे इस अवसर पर ’डॉ. वाई. नायदुम्मा: निबंध, भाषण, नोट्स और अन्य’ शीर्षक से इस पुस्तक का विमोचन करते हुए खुशी हो रही है। इस अवसर की तैयारी के लिए, मैंने इस पुस्तक में निहित कुछ निबंधों का अध्ययन किया है।
मैं विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भविष्य और इसके अनुप्रयोग से जुड़े विविध सरोकारों के संबंध में डॉ. नायुदम्मा गरु की परिकल्पना से चकित हूं। उन्होंने एक ऐसे दर्शन का प्रस्ताव रखा था जो सामाजिक मूल्यों से प्रेरित, सामान भलाई के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग का मार्गदर्शन करे। उन्होंने लक्ष्यों और उद्देश्यों और मूल्यों के एक स्पष्ट समुच्चय को रेखांकित किया था जो लोगों के जीवन की बेहतरी के साधन के रूप में और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में उनके अनुप्रयोगों का मार्गदर्शन करे। उन्होंने बहुत ही सरल और आसानी से समझने योग्य तरीके से अपनी चिंताओं और विभिन्न मुद्दों को विस्तार से बताया।
उनके दर्शन के संस्थापक सिद्धांत इतने आकर्षक और आश्वस्त करने वाले हैं कि वे आज के लिए बहुत प्रासंगिक हैं। उनके तर्कों की ताकत और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए उनके दर्शन के प्रकाश को देखते हुए, मेरा प्रस्ताव है कि इसे उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। इससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के तेजी से विस्तार करने वाले क्षेत्र के उद्देश्यों के बारे में उचित समझ को बढ़ावा देने में मदद मिलती है ताकि नवोदित और इच्छुक वैज्ञानिकों को उनके सीखने के प्रारंभिक चरण में सही समझ और अभिविन्यास मिल सके।
’मैनेजमेंट ऑफ साइंसः चैलेंजेज एंड पर्सपेक्टिव्स’, ’सोशल वैल्यूज एंड टेक्नोलॉजी चॉइस’ और ’ट्रिनिटी: इन द सर्विस ऑफ द सोसाइटी’ पर निबंध विशेष रूप से ज्ञानवर्धक हैं। मैं सभी संबंधितों को सलाह देता हूं कि वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साधनों की खोज और अनुप्रयोग के बारे में विभिन्न मुद्दों और चिंताओं की उचित समझ के लिए उन्हें पढ़ें।
मैं इस पुस्तक के संपादक डॉ के चंद्रहास और के शेषगिरि राव द्वारा डॉ.नायुदम्मा गरू के ऐसे प्रबुद्ध विचारों का संकलन करके और प्रस्तुत करने में उनके श्रमसाध्य प्रयास के लिए उनकी सराहना करता हूं जो भावी पीढ़ी के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा।
प्रिय भाइयों और बहनों!
मुख्य मसला यह है कि क्या विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लोगों के अनुकूल होना चाहिए या लोगों को उनके अनुकूल होना चाहिए। क्या लोगों द्वारा महसूस की गई जरूरतों और चिंताओं से से उसे उभरना चाहिए या शीर्ष स्तर से उसे चालित होना चाहिए? वे कौन से मूल्य हैं जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी की खोज और उनके अनुप्रयोगों का मार्गदर्शन और संचालन करते हैं? इन शक्तिशाली उपकरणों के अंधाधुंध अनुप्रयोग के अवांछनीय परिणामों को कैसे नियंत्रित किया जाए? इन उपकरणों को किसका हित होना चाहिए? डॉ.नायुदम्मा गरु ने अपने जीवन और कार्यों में इन सवालों के जवाब दिए। इसलिए उन उत्तरों को जानना जरूरी है।
डॉ. नायुदम्मा गरु के कार्यों और योगदानों ने अपने आप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उद्देश्यों को प्रतिबिंबित किया। वह स्पष्ट रूप से सामाजिक परिवर्तन के एक प्रतिनिधि थे और उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद् इस तरह के बदलाव के प्रभावी प्रतिनिधि कैसे हो सकते हैं। एकांत में विज्ञान का अनुशीलन से अपने आप मानवता की सेवा नहीं हो सकती है। इसे प्रभावी तकनीकी साधनों के रूप में लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए जिनका उपयोग लोग अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए कर सकते हैं। विज्ञान समाज और लोगों के लिए होना चाहिए। लोगों की आकांक्षाओं और लक्ष्यों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास का एजेंडा निर्धारित करना चाहिए।
डॉ. नायुदम्मा गरु के कार्यों से इस बिंदु को और स्पष्ट करने के लिए उन्होंने देश में चर्मशोधन उद्योग के आकार और स्वरूप को बदलने के लिए उनके अग्रणी योगदान का जिक्र किया। परंपरागत तरीके से कुछ समुदायों द्वारा अपनाए गए मृत पशुओं की खाल इकट्ठा करने के पेशे दूसरों द्वारा हेय दृष्टि देखा जाता था। इसकी वजह इस प्रकार के कार्य में आने वाली दुर्गंध और कार्य की अशुद्ध प्रकृति थी। डॉ. नायुदम्मा ने इन मुद्दों का गहन विश्लेषण किया और इस बात पर विचार किया कि इस पेशे को व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से कैसे इसमें बदलाव लाया जा सकता है। वह बदबू को दूर करने और इस पेशे में शामिल लोगों के कौशल में सुधार करने में उनको सक्षम बनाने सफल रहे। उन्होंने चर्मशोधन श्रमिकों की आय में सुधार के लिए चमड़े के उत्पादों को बढ़ावा दिया। इस प्रक्रिया में उन्होंने साबित कर दिखाया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से उस गतिविधि की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाने में मदद मिलनी चाहिए जिसमें इन उपकरणों का उपयोग करने की मांग की जाती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी को अधिक लाभकारी रोजगार पैदा करने के योग्य बनाना चाहिए।
नतीजतन, चमड़े के उत्पाद अधिक से अधिक स्वीकार्य हो गए हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय चमड़े के उत्पादों की काफी मांग है। दरअसल, आज स्थिति यह है कि अच्छी गुणवत्ता वाले चमड़े के उत्पाद जैसे जूते, हैंडबैग आदि रखना हैसियत का विषय बन गया है। विभिन्न समुदायों के लोग अब पारंपरिक बाधाओं और पूर्वाग्रहों को छोड़कर चमड़ा उद्योग में शामिल हो गए हैं।
डॉ.नायुदम्मा गरु की उग्र उत्कंठा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से इस प्रकार के सामाजिक-आर्थिक बदलाव आए और यह प्रदर्शित किया जाए कि यह कैसे हो सकता है। एक वैज्ञानिक के रूप में वह सामाजिक परिवर्तन के प्रतिनिधि थे।
मूल्य प्रौद्योगिकी के चयन को निर्देशित करते हैं। दुनियाभर में लोगों का मार्गदर्शन करने वाला मुख्य मूल्य ’भौतिकवाद और उपभोक्तावाद’ है। प्रौद्योगिकी विकास का मार्गदर्शन करने वाले ऐसे मूल्यों की एक सीमा होनी चाहिए। गुणवत्तापूर्ण जीवन के नाम पर सुख-सुविधाओं के लिए इस तरह की भौतिकवादी पिपासा साथ शांति से रहने वाले लोगों की मदद नहीं करती है। इसलिए भारतीय दर्शन और विचार, समाज और प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के लिए आंतरिक शांति के लिए आध्यात्मिक खोज पर जोर देते हैं। भौतिकवाद की प्रतिस्पर्धात्मक खोज लक्ष्य नहीं होना चाहिए और ऐसे उद्देश्यों की पूर्ति करना विज्ञान और प्रौद्योगिकी का एजेंडा नहीं होना चाहिए।
मैं डॉ. नायुदम्मा गरु के दर्शन से चकित हूं क्योंकि उनके कुछ विचार अब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की कुछ प्रमुख पहलों में परिलक्षित होते हैं। मैं इस संबंध में प्रधानमंत्री जन धन योजना, सब का साथ-सब का विकास-सब का प्रयास और आत्मानिर्भर भारत जैसी योजनाओं पर संक्षेप में बात करना चाहूंगा।
समाज के सभी वर्गों के सशक्तीकरण की आवश्यकता के बारे में चर्चा करते हुए डॉ. नायुदम्मा गरु ने एक संदर्भ में कहा कि यदि किसी महिला का बैंक खाता होगा, तो उसके साथ परिवार में अलग व्यवहार और सम्मान किया जाएगा। इससे उसे दासत्व-मुक्ति में मदद मिलती है। यह स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री जन धन योजना के शुभारंभ के मूल में है जिसके तहत वित्तीय समावेशन और सशक्तीकरण को सक्षम बनाने के लिए करीब 50 करोड़ बैंक खाते खोले गए हैं। स्पष्ट रूप से, वह समय से आगे थे और इसलिए दूरदर्शी थे।
आत्मनिर्भरता डॉ. नयुदम्मा गरु के दर्शन का मूल था। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक अतीत और पश्चिमी प्रशिक्षण, अभिविन्यास और शिक्षा के कारण हमने प्रौद्योगिकी और समाधानों के आयात के लिए पश्चिम की ओर देखा है और पश्चिमी उपचार भारत की समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं, क्योंकि ये अलग परिस्थिति और संदर्भ विशेष के हैं। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता की पुरजोर वकालत की। यही प्रधानमंत्री श्री मोदी की आत्मानिर्भर भारत पहल का सार है।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए, डॉ. नायुदम्मा गरु ने राष्ट्रीय प्रयासों में सभी की भागीदारी के साथ सभी को गरिमा, मूल्य, अधिकारों की समानता, बेहतर जीवन स्तर, सुरक्षा आदि में सक्षम बनाने पर जोर दिया था। यह ’सब का साथ-सब का विकास-सब का प्रयास’ के दर्शन का अंतर्निहित सिद्धांत है।
डॉ. वाई. नायुदम्मा गरू जैसे दूरदर्शी वैज्ञानिक दुर्लभ हैं। ऐसे महानायक को हम नमन करते हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था कि 1985 में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। उस समय वह सिर्फ 63 वर्ष के थे। वह 1971 में 49 वर्ष की कम उम्र में हमारे देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के सर्वोच्च निकाय, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक बने और उसी वर्ष उनको पद्मश्री से सम्मानित किया गया। यदि वह अधिक समय तक जीवित रहते तो हमारे देश को और अधिक लाभ होता।
प्रिय भाइयों और बहनों!
डॉ.नायुदम्मा गरु हमारे देश की महान वैज्ञानिक विरासत की शृंखला की एक कड़ी थे। हजारों साल पहले, हमारे पास बौधायन, आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, महावीराचार्य, वराहमिहिर, कणाद, सुश्रुत, चरक, पतंजलि आदि जैसे महान वैज्ञानिक थे जिन्होंने ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी योगदान दिया। विदेशी आक्रमणों के हमले से मध्यकाल के दौरान यह परंपरा मंद पड़ गई थी।
अतीत में भारत के ’विश्वगुरु’ होने के गौरव को फिर स्थापित करने के लिए अब संयुक्त प्रयास किए जा रहे हैं। हम सभी को अपनी शिक्षा प्रणाली, विज्ञान और अनुसंधान के तरीकों को सुव्यवस्थित करके इस प्रयास में भाग लेने की आवश्यकता है।
हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब ज्ञान ही वास्तविक शक्ति है। हमें सभी को उस ज्ञान से सशक्त बनाने की आवश्यकता है जो प्रत्येक व्यक्ति का सर्वोत्तम संसाधन है। हमें ऐसा ज्ञान प्रदान करने की आवश्यकता है जो हमारे राष्ट्र की समस्याओं को सामूहिक रूप से समाधान करने में सक्षम हो।
डॉ. नायुदम्मा गरु ने जोर देकर कहा कि शिक्षा राहत प्रदान करने के लिए नहीं है और इसे सभी को आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाने के लिए सभी की आंतरिक क्षमता को मुक्त करना चाहिए। हमें सभी क्षेत्रों में ज्ञान देने वालों की ऐसी व्यवस्थाओं की जरूरत है।
सामुदायिक भागीदारी की भावना और सामूहिक प्रयास के वातावरण में ही एक व्यक्ति की सबसे अधिक समृद्धि होती है। जब हम राष्ट्रवाद की भावना से निर्देशित होते हैं तो इस प्रकार का सर्वोत्तम पारिस्थितिकी तंत्र मिलता है। इस प्रकार, राष्ट्रवाद प्रत्येक व्यक्ति की पूर्ण क्षमता को साकार करने में हमारे राष्ट्र की तीव्र प्रगति के लिए एक सकारात्मक शक्ति है। यह एक नकारात्मक कारक नहीं है जैसा कि कुछ लोगों द्वारा प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है।
आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के आधार पर विश्व स्तर पर अपनाई जाने वाली विकास की रणनीतियों के परिणामस्वरूप तेजी से संसाधनों की कमी, पारिस्थितिक असंतुलन और असमानताएं पैदा हो रही हैं। सतत और सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए वैकल्पिक विकास मॉडल की आवश्यकता है। पर्यावरण अचल संपत्ति का एक हिस्सा नहीं है। यह भावी पीढ़ी के लिए एक विरासत है और यह सभी की एक गंभीर जिम्मेदारी है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लोगों की सेवा करनी चाहिए और लोगों को अपना गुलाम नहीं बनाना चाहिए।
डॉ नायुदम्मा गरु ने इन सभी मुद्दों पर अत्यंत स्पष्टता और दूरदृष्टि के साथ विचार किया था। हमें उसी के अनुसार निर्देशित होने की आवश्यकता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लोगों के हितों की पूर्ति करनी चाहिए न कि कुछ अभिजात्य वर्ग की। इसका उपयोग एक समान भलाई को ध्यान में रखकर करने की जरूरत है।
मैं नदिमापल्ली गांव से संचालित नायुदम्मा फाउंडेशन फाॅर एजुकेशन एंड रूरल डेवलपमेंट की प्रशंसा करता हूं, जो डॉ. वाई. नायुदम्मा गरु के दर्शन को यादगार बनाये हुए है।