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गैर-सरकारी संगठनों और समुदायों की विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षमता मजबूत करने के लिए विज्ञान-समाज-सेतु वेबिनार श्रृंखला की पहल

देश-विदेश

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो.आशुतोष शर्मा ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ (S34ANB) के लिए एक वेब क्लिनिक श्रृंखला विज्ञान, समाज और सेतु के तहत समाज के विभिन्न वर्गों के लिए प्रासंगिक ज्ञान सृजित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। यह श्रृंखला विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के ‘इक्यूटी इमपॉवरमेंट एंड डेवलपमेंट सीड डिविजन’ की ओर से शुरु की गई है।

श्री शर्मा ने कहा “हमारे पास एक स्पष्ट तस्वीर होनी चाहिए कि हम किस तरह के ज्ञान का प्रतिपादन कर रहे हैं। हमें यह देखना जरुरी है कि ऐसे ज्ञान की क्या प्रासंगिकता है, ऐसे ज्ञान को देने और लेने वाले समाज के किस क्षेत्र से आएंगे। सारे प्रयास इसे देखते हुए ही किए जाने चाहिए ताकि ऐसा ज्ञान सही लोगों तक पहुंचे और उसका सही उपयोग हो सके”।

वेब क्लिनिक के तहत ‘वोकल फॉर लोकल’ दृष्टिकोण के माध्यम से ‘आत्मानिर्भर भारत’ के सामाजिक बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी-संचालित स्तंभों को मजबूत करने के उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई। इसका आयोजन प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार,  विज्ञान प्रौद्योगिकी कार्यालय और नवाचार पोर्टल , डब्ल्यू डब्ल्यू एफ – इंडिया, अग्नि, फिक्की और हेस्को की ओर से मिलकर किया गया था। इसके दायरे में चार व्यापक क्षेत्रों ,कृषि और संबद्ध क्षेत्र, एमएसएमई और आर्थिक क्षेत्र, सामाजिक अवसंरचना और क्रॉस-सेक्टर क्षेत्र शामिल हैं।

प्रो.आशुतोष शर्मा ने ज्ञान की तुलना एक पाइप लाइन में बहते हुए पानी से करते हुए कहा कि इसमें एनजीओ पाइप लाइन के हिस्से की भूमिका में हैं जिनका काम ज्ञान का प्रसार करते हुए समाज के विभिन्न वर्गों का सशक्त बनाना है। उन्होंने कहा कि ज्ञान का मुक्त प्रवाह बनाए रखने के लिए हमें नए छोटे व्यवसाय के अवसर बनाने, सामाजिक उद्यमिता बनाने और स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने के अलावा अंतिम छोर में खड़े लोगों तक पहुंच बनानी होगी।

उन्होंने आगे ज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र के सतत विकास की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि “ज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र के दो भाग होते हैं: आविष्कार या ज्ञान निर्माण और नवाचार या ज्ञान को नए सामाजिक-आर्थिक अवसरों में बदलना। एक स्थायी ज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह आवश्यक है कि ये दो घटक एक साथ और अधिक मास्टर ट्रेनर बनाए, जिससे एनजीओ और समुदायों क़ी विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षमता बढ़े ताकि समाज को अधिक आत्मनिर्भर बनाया जा सके। “

प्रो.आशुतोष शर्मा ने लोगों की समस्याओं का सही समाधान ढूंढ़ने के लिए आत्मानिर्भरता को ज्ञान श्रृंखला की एक पूरी पाइपलाइन बताया जिसमें आत्मविश्वास या दूसरे शब्दों में कहें तो लोगों में खुद पर भरोसा करने की भावना नीहित है जो जमीनी स्तर पर काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों और स्व-सहायता समूहों के जरिए सांस्कृतिक अंतर के बावजूद समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंच बनाते हुए उसे आत्म-सम्मान के साथ जीने  की ताकत देती है। वेब क्लिनिक श्रृंखला के दौरान आत्मचिंतन की प्रक्रिया भी इसमें मददगार होगी।

वेब क्लिनिक का उद्देश्य समुदाय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समझने की क्षमता में व्यवस्थित अंतराल को कम करना, गैर-सरकारी संगठनों की विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षमता को मजबूत करके प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के लोकल फॉर वोकल के आह्वान के अनुरूप स्थानीय स्तर पर एनजीओ और समुदायों के ज्ञान विकास और आजीविका के अवसरों को बढ़ाना है।   डीएसटी सीड की प्रमुख देवप्रिया दत्ता ने वेब क्लिनिक के पीछे के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। विज्ञान प्रसार की वैज्ञानिक डॉ. किंकिनी दासगुप्ता मिश्रा ने ‘सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर’ और ‘टेक्नोलॉजी इंपावर्ड सिस्टम’ के आधार को मजबूत बनाने के लिए की की गई पहल के उद्देश्य पर प्रकाश डाला।

विशेषज्ञों ने कई संबंधित क्षेत्रों पर चर्चाएं कीं। इसमें मौसम विभाग के एग्रोमेट डिविजन के अध्यक्ष डॉ. के के सिंह ने किसानों के लिए एग्रोमेट सेवाओं के लिए  एनजीओ के साथ समन्वय करने, आईआईटी खडगपुर के प्रो. पीबीएस भदोरिया (समन्वयक, ग्रामीण प्रौद्योगिकी एक्शन ग्रुप) ने रुटाग ग्रामीण प्रौद्योगिकियों पर और महालानोबिस नेशनल क्राप फोरकास्ट सेंटर के निदेशक डॉ. एसएस रॉय ने कृषि के लिए उपग्रह सुदूर संवेदन पर चर्चा की। इस अवसर पर उभरती प्रौद्योगिकियों पर एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई जिसमें जल संरक्षण के लिए आईओआई प्रौद्योगिकी, कृषि आपूर्ति श्रृंखला के लिए उपग्रह प्रौद्योगिकी और छोटे पैमाने पर कृषि के लिए स्वचालन जैसी विभिन्न तकनीकों का प्रदर्शन भी किया गया।

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