केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से विश्व यकृत दिवस समारोह की अध्यक्षता की।
इस दिन के महत्व को ध्यान में रखते हुए, श्री चौबे ने कहा, “यकृत दूसरा सबसे बड़ा अंग है जो चुपचाप सभी महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। यह असामान्य जीवनशैली के कारण हमले का मुख्य रूप से सामना भी करता है। जब यकृत (लीवर) ठीक से अपनी मरम्मत और खुद को फिर से भरने में विफल रहता है, तो इससे नॉन एल्कोहलिकफैटी लिवर डिसीज (एनएएफएलडी) उत्पन्न होता है। एक बार जब स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तो कोई इलाज उपलब्ध नहीं होता है, जबकि स्वास्थ्य संवर्धन एवं रोकथाम के पहलू एनएएफएलडीसे जुड़ी मृत्यु दर और रुग्णता को रोकने के मुख्य आधार हैं।”उन्होंने देश के लोगों की तेजी से बदलती जीवनशैली में उनके स्वास्थ्य के साथ इस ‘कंजूसी’ (मितव्ययिता) को इसका कारण बताया।
श्री अश्विनी चौबे ने भारत में मूक महामारी के रूप में एनएएफएलडीकी भूमिका पर अपनी ओर से चेतावनी दी। इससे दुनिया भर में लगभग 1 बिलियन व्यक्तियों (वैश्विक आबादी का 20-30 प्रतिशत) के पीड़ित होने का अनुमान है। भारत में, यह जनसंख्या के 9-32 प्रतिशतके बीच है। यह तथ्य इस बात का सूचक है कि 10 भारतीयों में से 1 से 3 व्यक्तियों को फैटी लीवर या संबंधित बीमारी होगी।
श्री चौबे ने इस अवसर पर लोगों से आग्रह किया कि वे इस ‘कुठाराघात’से अपनातथा अपने करीबी लोगों का जीवन नष्ट न करेंतथाउनसेधूम्रपान, मदिरापान, जंक फूड का त्याग करने का अनुरोध करें, क्योंकि ये इन बीमारियों को बढ़ाने वाले कारक हैं। उन्होंने उनसे अपने परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालने वाले खर्राटे जैसे लक्षणों पर सतर्कता बरतने और चिकित्सा परामर्श लेने का भी आग्रह किया।उन्होंने ‘मित-भुक्ता’ और ‘ऋत-भुक्ता’शब्दों पर जोर देते हुए उस प्राचीन अवधारणा को प्रतिपादित किया कि मितव्ययी रूप से और ज्यादातर मौसमी खाद्य पदार्थों के सेवन से लंबी आयु प्राप्त करने में मदद मिलती है।
श्री चौबे ने इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर संतोष व्यक्त किया। भारत एनएएफएलडी के लिए कार्रवाई की आवश्यकता और कैंसर, मधुमेह, कार्डियो-संवहनी रोगों और स्ट्रोक (एनपीसीडीसीएस) के राष्ट्रीय कार्यक्रम में एनएएफएलडी के लिए कार्रवाई की आवश्यकता को चिह्नित करने वाला दुनिया का पहला देश है, जो एनसीडी के लिए एक प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रम है। भारत में विश्व स्तर पर गैर-संक्रामकरोगियोंकीअत्यधिकसंख्या है, लेकिन चयापचय रोगों का मुख्य कारण यकृत में है, जिसका इसके माध्यम से हल किया जाएगा। उन्होंने कहा, “एनएएफएलडी की अधिकता और इसकी असाध्यता को देखते हुए, एनएएफएलडी सहित एनसीडी की रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन को एक मिशन मोड में लागू किया जाना चाहिए और एक जन आंदोलन के रूप में देखना चाहिए ताकि स्वस्थ रहन-सहन देश के सभी नागरिकों के लिए जीवन का एक तरीका बन जाए।” उन्हें एबी-एचडब्ल्यूसी कार्यक्रम के तहत 75,000 से अधिक सशक्त सीपीएचसी द्वारा अब तक एनसीडी जांचों की कुल संख्या और कार्यक्रम को अधिक प्रभावी और लोगों के अनुकूल बनाने की योजना से भी अवगत कराया गया। विश्वास नामक आशा कार्यकर्ताओं के पुरुष समकक्षों को प्रशिक्षित करने और उन्हें शामिल किए से ऐसे कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ी है और प्राथमिक हेल्थकेयर का दायरा बढ़ा है।
सभी नागरिकों के लिए समग्र स्वास्थ्य को लेकर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण की सराहना करते हुए, श्री चौबे ने कहा, “स्वास्थ्य संवर्धन और वजन में कमी लाने के उद्देश्य से रोकथाम संबंधी पहलुओं, स्वस्थ जीवन-शैली और उपरोक्त जोखिम वाले कारकों पर नियंत्रण कायम करना एनएएफएलडी के कारण मृत्यु दर और रुग्णता की रोकथाम के मुख्य आधार हैं। वर्तमान में भारत संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों का दोहरा बोझ झेल रहा है जिससे रोकथाम के माध्यम से निपटा जा सकता है। फिट इंडिया मूवमेंट, इट राइट इंडिया, योग पर सरकार के फोकस के साथ, भारत ने इस समस्या से निपटने के लिए एक अनूठा रास्ता अपनाया है। “
श्री अश्विनी कुमार चौबे ने सभी भारतीयों के समग्र स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सरकार के दृष्टिकोण के रूप में मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में‘सर्वे भवन्तु सुखिन, सर्वे संतु निरामया’का आह्वान करते हुए अपना भाषण समाप्त किया।
डब्ल्यूएचओ-दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय की क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने इस कार्यक्रम में डब्ल्यूएचओ का प्रतिनिधित्व किया।
अपर सचिव एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मिशन निदेशक सुश्री वंदना गुरनानी, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. सुनील कुमार, संयुक्त सचिव (गैर-संक्रामक रोग) विशाल चौहान, यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) के निदेशक डॉ. एस. के. सरीन कार्यक्रम में उपस्थित थे।