नई दिल्ली: केन्द्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस और इस्पात मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने आज अबू धाबी अंतर्राष्ट्रीय पेट्रोलियम प्रदर्शनी और सम्मेलन (एडीआईपीईसी) में ‘इंडिया पवेलियन’ का उद्घाटन किया। ‘इंडिया पवेलियन’ की स्थापना अपस्ट्रीम, मिडस्ट्रीम, डाउनस्ट्रीम और इंजीनियरिंग अनुभागों की 9 भारतीय तेल एवं गैस कंपनियों द्वारा भारतीय पेट्रोलियम उद्योग संघ (एफआईपीआई), हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सहयोग से किया गया है।
श्री प्रधान ने प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए कहा कि भारत में ऊर्जा की व्यापक मांग है और यह आने वाले दशकों में वैश्विक ऊर्जा मांग का एक वाहक साबित होगी। उन्होंने कहा कि दरअसल हमारे द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के बावजूद अगले दो दशकों में हमारी ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने में तेल एवं गैस पहले ही की तरह निरंतर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी। उन्होंने कहा, ‘हमारा फोकस तेल एवं गैस क्षेत्र में वैश्विक निवेश को आकर्षित करने पर है, क्योंकि भारत परिशोधन, पाइपलाइनों और गैस टर्मिनलों में वर्ष 2024 तक 100 अरब डॉलर निवेश करेगा। यदि आप ऊर्जा के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं तो निवेश के लिए इससे बेहतर स्थान कोई और नहीं है। राजनीतिक स्थिरता, अपेक्षा के अनुरूप नीतियों और विशाल विविध बाजार की बदौलत भारत वैश्विक निवेशकों के लिए एक आकर्षक निवेश गंतव्य या देश है। हमने हाल ही में ईंधन की खुदरा बिक्री के लिए प्रवेश संबंधी मानकों को उदार बना दिया है। इससे ईंधन की खुदरा (रिटेल) बिक्री के क्षेत्र में नए खिलाड़ियों या कंपनियों के प्रवेश के साथ-साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।’
अबू धाबी में एडीआईपीईसी की आरंभिक वैश्विक परिचर्चा के दौरान श्री प्रधान ने कहा कि हम भारत को एक गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनाने संबंधी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विजन को साकार करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके साथ ही हम अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ एवं अधिक हरित परिवेश सुनिश्चित करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। श्री प्रधान ने कहा, ‘इसके लिए हम गैस आधारित बुनियादी ढांचागत सुविधाओं जैसे कि सीजीडी एवं पीएनजी नेटवर्क का विस्तार करने और गैस आधारित उद्योगों में निवेश करने पर काम कर रहे हैं।’ श्री प्रधान ने कहा कि मौजूदा समय में वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में व्यापक बदलाव कई कारणों से दिख रहे हैं, जिनमें ऊर्जा खपत के केन्द्र के रूप में एशिया का उभरना, एलएनजी की अपेक्षाकृत अधिक उपलब्धता, सौर एवं पवन ऊर्जा सहित नवीकरणीय ऊर्जा के जरिये ऊर्जा की आजादी का व्यापक वादा, एक प्रमुख हाइड्रोकार्बन निर्यातक के रूप में अमेरिका का उभरना और ‘सीओपी 21 पेरिस जलवायु प्रतिबद्धताओं’ को पूरा करने की अनिवार्यता शामिल हैं।