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श्री नायडु ने दिव्यांगजनों के लिए सार्वजनिक स्थानों को सुलभ बनाने के महत्व पर जोर दिया

देश-विदेश

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज दिव्यांग समुदाय के प्रति लोगों की मानसिकता में बदलाव का आह्वान किया और कहा कि उनके खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव को रोकना सरकार और समाज की जिम्मेदारी है। उन्होंने उनके फलने-फूलने और उत्कृष्टता हासिल करने के लिए एक वातावरण बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, ‘उन्हें हमारी सहानुभूति की आवश्यकता नहीं है बल्कि वे अपनी पूरी क्षमता विकसित करने के लिए हर अवसर के हकदार हैं।’

उपराष्ट्रपति हैदराबाद में राष्ट्रीय बौद्धिक दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान (एनआईईपीआईडी) के अपने दौरे के दौरान बोल रहे थे। श्री नायडु ने बौद्धिक दिव्यांगजन और उनके परिवारों को सशक्त बनाने में एनआईईपीआईडी ​​​​के काम की सराहना की।

श्री नायडु ने पहुंच को दिव्यांगजनों के लिए हस्तक्षेप का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बताते हुए ‘एक्‍सेसेबल इंडिया’ अभियान के सकारात्मक प्रभाव का उल्‍लेख किया और पर्यावरण, परिवहन, सूचना एवं संचार प्रणाली जैसे क्षेत्रों में और अधिक हस्तक्षेप करने का आह्वान किया।

सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और निजी भवनों को कहीं अधिक सुलभ बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए श्री नायडु ने कहा कि स्कूलों में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को दिव्‍यांग बच्चों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनाना भी महत्वपूर्ण है।

उपराष्ट्रपति ने सुझाव देते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करना महत्‍वपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी से दिव्‍यांगजनों को बाहर न किया जाए। उन्‍होंने भारत के राष्ट्रीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों से सुलभ स्मार्ट प्रौद्योगिकी से संबंधित अपने काम में तेजी लाने का आग्रह किया।

श्री नायडु ने दिव्यांगजनों को छोटी उम्र से ही उनके कौशल की पहचान कर उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए सर्वांगीण प्रयास करने का आह्वान किया। ‘सर्वेजना सुखिनो भवन्तु’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के हमारे प्रमुख मूल्‍यों को याद दिलाते हुए उन्‍होंने सरकार, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और परिवारों सहित सभी से दिव्‍यांगजनों को सशक्त बनाने और अपने ‘धर्म’ यानी कर्तव्य का पालन करने के लिए पहल करने का आह्वान किया।

उपराष्ट्रपति ने बच्‍चों में दिव्‍यांगता संबंधी जोखिम की जल्द पहचान करने के महत्व पर जोर दिया और सभी राज्यों में हाल में स्थापित क्रॉस-डिसएबिलिटी अर्ली इंटरवेंशन सर्विस सेंटर (सीडीईआईएससी) जैसे कई केंद्र खोलने का आह्वान किया। उन्होंने एनआईईपीआईडी ​​को बच्चों में दिव्‍यांगता संबंधी जोखिम का शीघ्र पता लगाने के लिए सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी जैसे संस्थानों के साथ गठजोड़ करने का भी सुझाव दिया। उन्होंने बच्चों में दिव्‍यांगता संबंधी जोखिम का जल्द पता लगने पर माता-पिता को उपयुक्‍त परामर्श दिए जाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। श्री नायडु ने आनुवंशिक विकारों का शीघ्र पता लगाने और उनकी रोकथाम के लिए एनआईईपीआईडी ​​और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) जैसे संगठनों के बीच अधिक सहयोग का सुझाव दिया।

इस अवसर पर श्री नायडु ने उन दिव्‍यांग बच्चों के माता-पिता की सराहना की जो उन्‍हें प्रेरित करते हैं और भावनात्मक तौर पर सहारा देते हैं। उन्‍होंने कहा ‘मैं आपको इन विशेष बच्चों की क्षमता को अधिकतम सीमा तक विकसित करते हुए उनके पालन-पोषण के लिए सलाम करता हूं। आप सब उम्‍मीद और बिना शर्त प्यार के सच्चे अवतार हैं।’

श्री नायडु ने एनआईईपीआईडी के प्रबंधन एवं कर्मचारियों की सराहना की और कहा कि पुनर्वास के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को एक ‘मिशन’ के रूप में अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। उन्होंने कुछ लाभार्थियों के बीच सहायता एवं उपकरण भी वितरित किए।

इस कार्यक्रम से पहले उपराष्ट्रपति ने एनआईईपीआईडी ​​के विशेष शिक्षा केंद्र क्रॉस डिसेबिलिटी अर्ली इंटरवेंशन सेंटर का दौरा किया और दिव्‍यांग लोगों के लिए काम करने वाले विभिन्न संगठनों के स्टालों का भी दौरा किया।

इस अवसर पर दिव्‍यांगजन सशक्तिकरण विभाग में संयुक्‍त सचिव श्री राजीव शर्मा, एनआईईपीआईडी के निदेशक श्री बी. वी. राम कुमार, एनआईईपीआईडी के शिखक शिक्षक एवं छात्र, बच्‍चों के माता-पिता और अन्य उपस्थित थे।

भाषण का मूल पाठ निम्नलिखित है:

बहनों और भाइयों,

मुझे राष्ट्रीय बौद्धिक दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान (एनआईईपीआईडी) का दौरा करने और यहां की गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल करते हुए प्रसन्नता हो रही है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि एनआईईपीआईडी बौद्धिक दिव्‍यांग व्यक्तियों, इससे संबंधित स्थितियों और उनके परिवारों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है।

मुझे बताया गया है कि यह संस्थान, जो सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत एक शीर्ष निकाय है, बौद्धिक दिव्‍यांगता के क्षेत्र में प्रशिक्षण, अनुसंधान और सेवाओं के तीनों मोर्चे पर एक साथ कार्य करता है।

वास्तव में आपके जैसे संस्थान दिव्यांगजनों के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। मुझे कुछ महीने पहले नेल्‍लोर के वेंकटचलम में कंपोजिट रीजनल सेंटर (सीआरसी) की अपनी यात्रा याद आ रही है जो दिव्यांगजनों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है।

बहनों और भाइयों,

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, दिव्‍यांगजन भारत की कुल आबादी में 2.21 प्रतिशत की महत्‍वपूर्ण हिस्‍सेदारी रखते हैं। जाहिर तौर पर उन्हें आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त बनाने और विभिन्न प्रकार के दैनिक कार्य करने में उनकी कठिनाई को कम करने की आवश्यकता है।

दिव्यांगजनों को अपनी पूरी क्षमता के विकास के लिए हर अवसर हासिल करने का हक है। उन्हें हमारी सहानुभूति की जरूरत नहीं है। उन्हें अपने अनोखे कौशल को निखारने के लिए समानुभूति, न्याय और प्रशिक्षण की आवश्यकता है।

इस संदर्भ में यह सरकार और समाज की जिम्मेदारी है कि वे उनके खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव को रोकें और उनकी कामयाबी एवं उत्कृष्टता के लिए एक वातावरण तैयार करें। मैं इस संस्‍थान की भूमिका को एक समावेशी समाज के निर्माण के महत्वपूर्ण मिशन के हिस्से के रूप में देखता हूं।

बहनों और भाइयों,

कई दिव्‍यांगजनों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी योग्यता एवं उत्कृष्टता को बार-बार साबित किया है। उन्होंने दुनिया को दिखा दिया है कि उनकी दिव्‍यांगता उनके सपनों को साकार करने की सीमा नहीं है। इससे साबित होता है कि यदि उन्‍हें उचित प्रोत्साहन दिया जाए और एक उपयुक्‍त वातावरण तैयार किया जाए तो वे किसी से पीछे नहीं रहेंगे।

यह चिंता का विषय है कि बौद्धिक दिव्‍यांगजनों को कई बार भेदभाव और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है जिससे समाज में उनका एकीकरण बाधित होता है। कई मामलों में परिवार के करीबी सदस्यों और स्थानीय समुदाय की मानसिकता को बदलने की आवश्‍यकता होती है।

दिव्यांगजन समुदाय के सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। जागरूकता किसी भी गलतफहमी को दूर करेगी और उन्‍हें समानुभूति की ओर ले जाएगी।

बहनों और भाइयों,

एक्सेसिबिलिटी यानी पहुंच एक ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिस पर हाल के वर्षों में ‘एक्सेसिबल इंडिया’ अभियान के कारण काफी ध्‍यान केंदित किया गया है। इस प्रभावशाली अभियान द्वारा पर्यावरण, परिवहन, सूचना एवं संचार प्रणाली जैसे क्षेत्रों में पहुंच को सुलभ बनाया गया है। निश्चित तौर पर इस ओर अभी भी काफी कुछ करने की आवश्यकता है।

सार्वजनिक स्थानों के साथ-साथ सरकारी और निजी भवनों को भी दिव्‍यांगजनों के लिए सुलभ होना चाहिए। अन्य निर्मित वातावरण और सार्वजनिक परिवहन तक भौतिक पहुंच में भी सुधार किया जाना चाहिए। स्कूलों में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को दिव्‍यांग बच्चों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनाने की भी आवश्‍यकता है।

यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी दिव्‍यांगजनों को बाहर नहीं रखना चाहिए। मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि प्रौद्योगिकी कंपनियां अपने उत्पादों को समावेशी बनाने के लिए प्रयास रही हैं। मैं भारत के राष्ट्रीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों से सुलभ स्मार्ट प्रौद्योगिकी से संबंधित अपने काम में तेजी लाने का आग्रह करता हूं।

पुनर्वास क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की कमी एक अन्‍य ऐसी समस्‍या है जिसे सभी हितधारकों को मिलकर दूर करने की आवश्‍यकता है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि एनआईईपीआईडी अपने अनोखे पाठ्यक्रमों के जरिये ऐसे कई लोगों को प्रशिक्षण दे रहा है।

बच्‍चों में दिव्‍यांगता संबंधी जोखिम की जल्द पहचान करना और उनका पता लगाना काफी महत्‍वपूर्ण है। मुझे खुशी है कि नव स्थापित क्रॉस-डिसएबिलिटी अर्ली इंटरवेंशन सर्विस सेंटर (सीडीईआईएससी) इस दिशा में काम कर रहा है। चूंकि एनआईईपीआईडी ​​हैदराबाद में है, इसलिए मैं चाहूंगा कि आप बच्‍चों में दिव्‍यांगता के जोखिम की शीघ्र पहचान करने और उसका पता लगाने के लिए सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के साथ गठजोड़ करें।

विभिन्न राज्यों में ऐसे कई केंद्र स्थापित करने की भी आवश्यकता है। साथ ही, बच्चों में दिव्‍यांगता संबंधी जोखिम का जल्द पता लगने पर माता-पिता को उपयुक्‍त परामर्श दिए जाने की आवश्यकता है।

बहनों और भाइयों,

निस्संदेह दिव्‍यांग बच्चों के माता-पिता को प्रेरक की भूमिका निभानी होगी और उन्हें भावनात्मक समर्थन प्रदान करना होगा। मैं इस अवसर पर उन माता-पिता की सराहना करता हूं जो अपने बच्चों को यहां प्रशिक्षण के लिए लाते हैं। इन विशेष बच्चों की क्षमता को अधिकतम सीमा तक विकसित करने के लिए उनका उपयुक्‍त पालन-पोषण करने के लिए मैं आपको सलाम करता हूं। आप सभी उम्‍मीद और बिना शर्त प्यार के सच्चे अवतार हैं।

बहनों और भाइयों,

मैं फिर कहना चाहूंगा कि एनआईईपीआईडी ​​का दौरा करके और यहां किए जा रहे उत्कृष्ट कार्यों को देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। एनआईईपीआईडी ​​को बौद्धिक दिव्‍यांगजनों के जीवन को सुगम और निर्बाध बनाने के लिए कहीं अधिक नवीन तकनीकों, विधियों और प्रक्रियाओं को लाने के लिए अपनी कड़ी मेहनत जारी रखना चाहिए।

बौद्धिक दिव्‍यांगजनों और उनके परिवारों के पुनर्वास में मदद के लिए एनआईईपीआईडी के सभी कर्मचारियों को मेरी बधाई!

बहनों और भाइयों,

यदि हम दिव्‍यांगजनों के साथ-साथ सभी नागरिकों में मौजूद क्षमता का दोहन करने में विफल रहे तो भारत की विकास गाथा अधूरी रहेगी।

दिव्‍यांगजनों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रत्येक स्तर पर हमारी शासन प्रणाली को सुदृढ़ किया जाना चाहिए। इसके लिए हमें साथ मिलकर और तत्‍काल काम करना होगा।

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