नई दिल्लीः केंद्रीय कृषि और कल्याण मंत्री, श्री राधा मोहन सिंह ने आज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 88वें स्थापना दिवस समारोह का विज्ञानभवन में उद्घाटन किया। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, श्री राधामोहन सिंह ने इस अवसर पर भारतीय कृषिअनुसंधान परिषद केवार्षिक पुरस्कार भी प्रदान किये। कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री एस.एस. अहलुवालिया, श्री पुरुषोत्तम रुपाला एवं श्री सुदर्शनभगत भी इस समारोह में शामिल हुए। इस समारोह की विशेषता ये थी कि प्रथम बार 700 के करीब किसान भाईयों को भी आमंत्रित कियागया और शोधकर्त्ताओं एवं अधिकारियों के साथ कृषक गोष्ठी का आयोजन किया गया।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री का स्थापना दिवस उद्बोधन निम्नलिखित रूप से है।
“मंच पर आसीन मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी श्रीमान एस.एस. अहलूवालिया जी, माननीय कृषि व किसान कल्याण तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्री; श्रीमान परशोत्तम रूपाला जी, माननीय कृषि व किसान कल्याण तथा पंचायती राज राज्य मंत्री एवं श्रीमान सुदर्शन भगत जी, माननीय कृषि व किसान कल्याण राज्य मंत्री; डेयर के सचिव एवं आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र; डीएसी के सचिव श्री शोभना के. पटनायक; डेयर के अपर सचिव एवं आईसीएआर के वित्तीय सलाहकार श्री एस.के. सिंह; डेयर के अपर सचिव एवं आईसीएआर के सचिव श्री सी. राउल; मीडिया बंधु, वैज्ञानिक, छात्र, किसान भाई तथा देवियों व सज्जनों,
मैं, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में नव नियुक्त अपने सहयोगी मंत्रियों का, देश के अलग-अलग भागों से यहां आये मेरे किसान भाइयोंका, वैज्ञानिकों व आप सभी का भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 88वें स्थापना दिवस समारोह में हार्दिक अभिनन्दन करता हूं ।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के लिए यह बड़े सौभाग्य की बात है कि पिछले दो स्थापना दिवस समारोह में माननीय प्रधानमंत्री जी ने शोभा बढ़ाई। माननीय प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन और उनकी प्रेरणा से अनेक नये कार्यक्रम व योजनाएं प्रारंभ की गयीं और उनका सफलता से क्रियान्वयन किया जा रहा है। दिनांक 18जनवरी, 2016 को माननीय प्रधानमंत्री जी ने सिक्किम को भारत का पहला जैविक राज्य घोषित किया। इस घोषणा के तुरंत बाद परिषद ने NCOR की स्थापना की। इस संबंध में परिषद के स्तर पर कार्रवाई प्रारंभ कर दी गयी है।
भारत हमेशा से एक कृषि प्रधान देश रहा है और कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की मेरूदंड रही है। इससे न केवल हम सब का भरण पोषण होता है बल्कि यह हमारी पुरातन सभ्यता, संस्कृति एवं रीति रिवाज का एक अभिन्न अंग भी है। वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा का सूत्रपात भी कृषि क्षेत्र से ही हुआ है। प्रकृति ने भी हमारे महान देश में न केवल कृषि को जन्मा है बल्कि उसे पल्लवित एवं पुष्पित भी किया है। यहां की छ: ऋतुएं और विविधताओं से भरा मौसम हर प्रकार की खेती करने में मददगार है। यहां मैं भगवद् गीता की एक पंक्ति दोहराना चाहूंगा–
अन्नादभवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भव । यज्ञादभवति पर्जन्यो यज्ञ: कर्मसमुदभव ।।
अर्थात् सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। चूंकि हम सभी यह जानते और मानते हैं कि कृषक ही हमारे अन्नदाता हैं, उनके द्वारा उत्पन्न अन्न से ही समस्त प्राणियों का भरण पोषण होता है। राष्ट्र निर्माण में किसान भाइयों के अमूल्य योगदान को देखते हुए ही हमारी सरकार ने किसानों की आमदनी को 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है।
माननीय प्रधानमंत्री के कथनानुसार राष्ट्र का पेट भरे और किसान की जेब भरे।भारत, तभी विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ सकेगा जब भारत की आत्मा माने जाने वाले गांवों में रहने वाले हमारे किसान भाई खुशहाल होंगे। आज गांव में हर हाथ को काम देने की जरूरत हैं ताकि गांवों से होने वाले पलायन को रोका जा सके। और यह तभी संभव है जब किसान की आमदनी बढ़़ें, उसका मन किसानी में लगे, और वह राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान कर सकें। इससे न केवल दैनिक जीवन में मारामारी कम होगी बल्कि गांवों से शहरों की ओर पलायन करके आने वाले युवा अपने परिवार, अपने बूढ़े मां-बाप के साथ सुख व संतोष से रह सकेंगे। इस दिशा में हमारी सरकार और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद निरंतर प्रयासरत है।
कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत के शीर्ष निकाय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को 88वें स्थापना दिवस की बधाई स्वीकार करें। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अपने तीन प्रमुख उद्देश्यों –कृषि अनुसंधान, शिक्षा और अग्रिम पंक्ति प्रौद्योगिकी प्रसार करके राष्ट्र की कृषि प्रगति में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया गया है।
कृषि अनुसंधान
देशभर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कुल 102 अनुसंधान संस्थानकार्यरत हैं। कृषि अनुसंधान के महत्व को ध्यान में रखते हुए अभी हाल ही में माननीय प्रधानमंत्री जी की पहल पर सिक्किम में जैविक खेती पर एक नया संस्थान खोला जा रहा है। मोतीहारी में राष्ट्रीय एकीकृत प्रणाली संस्थान खोला जा चुका है। भारत सरकार द्वारा कृषि अनुसंधान के लिए डेयर/आईसीएआर के बजट में वर्ष 2012-14 (3229.7 करोड़) के मुकाबले वर्ष 2014-16 (3378.42 करोड़) के दौरान 148.7 करोड़ रूपये की बढ़ोतरी की गयी है। वर्ष 2012-14 में जहां कुल नौ अंतर्राष्ट्रीय समझौता ज्ञापनों/कार्य योजनाओं पर हस्ताक्षर किये गये थे वहीं पिछले दो वर्षों 2014-16 के दौरान 13 अंतर्राष्ट्रीय समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गये हैं। उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाना हमारा मुख्य उद्देश्य है । इस प्रयास में नई उन्नत किस्में,तकनीकें विकसित की गईं। इसी वर्ष जनवरी से लेकर अप्रैल तक परिषद द्वारा कुल 80 नई उन्नत किस्में जारी की गयी हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए पिछले दो वर्षों में जलवायु के अनुकूल सूखा प्रतिरोधी और बाढ़ सहिष्णु फसल किस्में जारी करने पर विशेष बल दिया गया। हमारे देश को लगातार पिछले दो वर्ष सूखे का सामना करना पड़ा । आपने देखा होगा कि सूखे की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद देश में लगभग 250 मिलियन टन पैदावार हुई जबकि वर्ष 2002 और 2005 में सूखा परिस्थितियों में यह पैदावार 200 मिलियन टन से भी कम थी। इस बढ़ी हुई पैदावार में वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधान एवं नई विकसित तकनीकों की उल्लेखनीय भूमिका है। बागवानी के क्षेत्र में पिछले दो वर्षों में किस्मों एवं प्रौद्योगिकियों के विकास में 17 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी हैं। प्राकृतिक संसाधन प्रबधन के तहत नई प्रौद्योगिकियां के विकास में 33 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की गयी है। इन तकनीकियों में मृदा, जल एवं जलवायु अनुकूल तकनीकियां शमिल हैं।
भारतीय कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास करके भारत में हरित क्रांति लाने और उतरोत्तर कृषि विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है। गत वर्षों में हमारी बागवानी फसलों का उत्पादन खाद्यान्न उत्पादन से भी अधिक बढ़ गया है जिसके फलस्वरूप खाद्य सुरक्षा के साथ साथ पोषणिक सुरक्षा भी बढ़ी है। इसी प्रकार, देश के खाद्यान्न, मत्स्य, दूध तथा अंडा उत्पादन में भी लगातार वृद्धि हुई है। इस प्रकार के विकास का हमारी राष्ट्रीय खाद्य एवं पोषणिक सुरक्षा पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है।
पशु विज्ञान के क्षेत्र में हमारे देश में दुधारू पशुओं की संख्या सबसे अधिक है। इसलिए हमें पशु रोगों की रोकथाम करने, इनकी उत्पादकता बढ़ाने और इनका भरण पोषण करने के लिए चारे की उचित व्यवस्था करना अनिवार्य है। पिछले दो वर्षों में परिषद द्वारा पशु विज्ञान की प्रौद्योगिकियों का अधिक संख्या में व्यावसायीकरण किया गया है। वर्ष 2012-14 में जहां इन प्रौद्योगिकियों की संख्या 53 थीं वहीं वर्ष 2014-16 में इनकी संख्या बढ़कर 86 तक पहुंच गयी हैं। क्लोनिंग के क्षेत्र में अनेक सफलताएं हासिल की गयी हैं। निरन्तर प्रौद्योगिकी विकास के फलस्वरूप आज भारत दुनियाभर में दूध उत्पादन के मामले में सबसे आगे है। हॉं, यहां मैं यह भी कहना चाहूंगा कि हमारे देश में मवेशियों में उत्पादकता का स्तर कम है और हमें विज्ञान व तकनीकी के माध्यम से इसमें सुधार करना है।
माननीय प्रधानमंत्री जी ने आईसीएआर के 86वें स्थापना दिवस समारोह में देश में नीली क्रांति (Blue Revolution) लाने पर बल दिया था। हमारे देश में आज लगभग 11.0 mtमत्स्य उत्पादन होता है। हमें अपने जलधारा स्रोतों में मत्स्य उत्पादन को बढ़ाना हैं विशेषकर एक्वाकल्चर में। (Blue Revolution केवल मछली उत्पादन से ही नहीं आएगी। हमारा मानना है कि जल को भूमि की तरह एक इको सिस्टम मानकर यहां मछली के अलावा भोजन, दवाइयों, रसायनों आदि के लिए सीवीड (Algae) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। आने वाले समय में जल के एक क्षमताशील खाद्य संसाधन बनने की पूरी संभावना है।
कृषि शिक्षा
कुशल मानव संसाधन किसी भी संस्था की परम आवश्यकता होती है। हमारे देश में कृषि क्रान्ति लाने में घरेलू मानव संसाधन की अहमभूमिका है। कहा जाता है किMan behind the machine is very important अर्थात मशीन कितनी भी अच्छी क्यों न हो उसे ऑपरेट करने वालाव्यक्ति कितना कुशल है, इसका प्रभाव मशीन की कार्यकुशलता पर पड़ता है। कृषि की बेहतरी के लिए मूलभूत व नीतिगत अनुसंधान तथाशिक्षा पर विशेष बल दिया गया है। पिछले दो वर्षों में तीन नये संस्थान स्थापित किये गये हैं । दो नये विश्वविद्यालयों की स्थापना कीप्रक्रिया जारी है जिसमें से एक राजस्थान में कृषि पर और दूसरा हरियाणा में बागवानी पर स्थापित किया जाना है। पिछले दो वर्षों में कुलदस नये विश्वविद्यालय स्थापित किये गये हैं। पूर्वोत्तर भारत में केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय इम्फॉल के अंतर्गत 6 नये कॉलेज, रानीलक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत बुंदेलखंड में चार नये कॉलेज स्थापित किये जा रहे हैं जबकि राजेन्द्र केन्द्रीय कृषिविश्वविद्यालय, बिहार के अंतर्गत चार नए कॉलेज खोलने का प्रस्ताव है। पूर्वोत्तर राज्यों में कृषि अनुसंधान व शिक्षा को बढ़ावा देने केलिए आईएआरआई की तर्ज पर झारखंड में आईएआरआई झारखंड की आधारशिला माननीय प्रधानमंत्री जी के कर-कमलों द्वारा रखी गयी।असम में भी इसी तर्ज पर आईएआरआई असम की स्थापना की प्रक्रिया जारी है। वर्ष 2013-14 की तुलना में कृषि शिक्षा बजट में लगभग50 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गयी है।
कृषि शिक्षा में छात्रों को आकर्षित करने और रोजगारपरक बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों में अनुभवजन्य लर्निंग इकाइयों की संख्यामें अभूतपूर्व वृद्धि की गयी है। इन इकाइयों का उद्देश्य सीखते-सीखते कमाएं की सुविधा प्रदान करना है। वर्ष 2007-13 की तुलना में वर्ष2014-16 में इनकी संख्या में 58 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गयी हैं। यूजी छात्रों के लिए राष्ट्रीय प्रतिभा स्कॉलरशिप की राशि को दोगुनाकिया गया है और पीजी छात्रों के लिए भी स्कॉलरशिप का नया प्रावधान किया गया है।
कृषि प्रसार
कृषि प्रगति में जितना महत्व शिक्षा एवं अनुसंधान का है उतना ही महत्व कृषि प्रसार का भी है। कृषि विज्ञान केन्द्र उन्नत तकनीकों काअग्रिम पंक्ति प्रदर्शन करते हैं तथा राज्य स्तर पर आत्मा (ATMA) जैसी एजेंसी द्वारा कृषि विज्ञान केन्द्रों की सफल तकनीकों कोकिसानों तक पहुंचाया जाता है। सन् 2022 तक हमारी सरकार का लक्ष्य किसानों की आय को दोगुना करना है, इस दिशा में कृषि विज्ञानकेंद्रो की महती भूमिका है और इसी को ध्यान में रखकर कृषि विज्ञान केंद्रो की रिमॉडलिंग की गयी है। आज हमारे कुल 645 कृषि विज्ञानकेंद्र कार्यरत हैं। पिछले दो वर्षों में इनकी संख्या में बढ़ोतरी की गयी है। अभी भी लगभग 50 नये कृषि विज्ञान केंद्रों के प्रस्ताव विचाराधीनहैं। प्रत्येक बडे/पर्वतीय जिलों में दो केवीके खोलने की योजना है। कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा अनेक नवीन पहल की गयी हैं जैसे कि 444कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भागीदारी; 384 कृषि विज्ञान केंद्रो में मिट्टी व पानी की जांच के लिएप्रयोगशालाएं प्रारंभ; 400 कृषि विज्ञान केन्द्रों को मोबाइल मृदा परीक्षण मशीनें प्रदान की गईं; 604 केवीके में विश्व मृदा दिवस समारोह; 2.5लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों में वितरित किए गए; मेरा गांव मेरा गौरव कार्यक्रम से भाकृअनुप/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा10,000 से ज्यादा गांवों के साथ इन्टरफेस किया गया; 22 जिलों में कृषि में युवाओं को आकर्षित करने और बनाये रखने (आर्या) कोप्रायोगिक स्तर पर चलाया जा रहा है ; एक लाख किसानों को शामिल करके फार्मर फर्स्ट परियोजना को प्रारंभ किया गया है; केवीके में रबीतथा खरीफ किसान सम्मेलन; मोबाइल परामर्श सेवा के लिए 90 लाख किसानों को पंजीकृत किया गया। वर्ष 2013-2014 में जहां कृषिविज्ञान केंद्रो के लिए 527 करोड़ रूपये का आबंटन किया गया था वहीं वर्ष 2016-17 में इसमें अभूतपूर्व वृद्धि करते हुए 745 करोड़ रूपयेका आबंटन किया गया है। कृषि विज्ञान केंद्रों को कहीं अधिक प्रभावी और दक्ष बनाने के लिए जोनल परियोजना निदेशालयों को ATARI केरूप में विकसित किया गया है और इनकी संख्या 8 से बढ़ाकर 11 की गयी है।
कृषि विकास
जहां हमारे देश की जनसंख्या में दिन प्रतिदिन बढोतरी हो रही है और अन्य विकास एवं आवास संबंधी कार्यक्रमों को देखते हुए हम यहजान लें कि खेती की जमीन बढने वाली नहीं है। बढ रही जनसंख्या एवं पशुधन का भरण पोषण करने के लिए हमें अपनी खेती केउत्पादन और उत्पादकता में बढोतरी करने की नितांत आवश्यकता है। प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने के लिए हमारीसरकार ने स्वस्थ धरा –खेत हरा के लिए सॉयल हैल्थ कार्ड जैसी नई योजना प्रारंभ की है। किसान भाई सॉयल हैल्थ कार्ड का लाभउठाकर अपने खेत की मिटटी को स्वस्थ बनाये रख सकते हैं। मेरा मानना है कि सभागार में आए किसान भाइयों को सॉयल हैल्थ कार्डसे प्रत्यक्ष लाभ होगा। इसके साथ ही हर खेत को पानी पहुंचाने और जल उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री सिंचाई योजना प्रारंभ कीगई है। हमारी यह प्राथमिकता होनी चाहिए कि हमारे किसानों को खेती की लागत के साथ साथ कृषि उत्पादों का उचित मूल्य मिले। इसकेलिए राज्य कृषि मंडी की शुरूआत की गई है। अभी भी हमारे किसान भाई अपनी खेती के लिए प्रकृति की मेहरबानी पर काफी हद तकनिर्भर हैं। प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा,बाढ़, ओलावृष्टि, पाला, अत्यधिक एवं कम तापमान आदि के कारण किसानों को काफी नुकसानउठाना पडता है। हमारे कृषि मंत्रालय ने देश के 614 जिलों के लिए आकस्मिकता योजनाएं तैयार की हैं जिन पर अमल करके प्राकृतिकआपदाओं से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। इन योजनाओं का कई राज्यों में उपयोग भी हुआ है। इस कार्यक्रम की सफलता केलिए केंद्र, राज्यों एवं आईसीएआर के संस्थानों तथा राज्य कृषि विश्वविद्यालयोंद्वारा समेकित रूप से कार्य किया गया और परिणाम आपसबके सामने है।
माननीय प्रधानमंत्री जी ने दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता और इसे साकार करने पर विशेष प्राथमिकता दिये जाने पर बल दिया है औरयह भी माना है कि भारत में दूसरी क्रांति का प्रादुर्भाव भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से होगा। सरकार ने पूर्वी राज्यों के लिए BGREI (पूर्वी भारतमें हरित क्रांति लाना) बीजीआरईआई कार्यक्रम विशेष सहायता दी है। यह राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की उप योजना है जिसमें पूर्वी भारतके सात राज्यों असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडि़शा, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में चावल व दलहन आधारित फसलचक्रप्रणाली की उत्पादकता को बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया है।
इसके साथ ही टिकाऊ कृषि एवं किसान कल्याण के लिए हमारी सरकार ने अनेक योजनाएं एवं पहल प्रारंभ की हैं जैसे कि :-
- प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना
- आपदा राहत के मानकों में परिवर्तन
III. परम्परागत कृषि विकास योजना
- मधुमक्खी विकास हेतु नयी पहल
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन, पशुधन मिशन, पशुचिकित्सा शिक्षा
- नीली क्रांति
VII. कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान
VIII. कृषि विस्तार (केवीके)
- गन्ना किसानों के लिए प्रभावी नीतिगत फैसले
- कृषि ऋण प्रवाह में तेजी
- विश्व व्यापार संगठन में किसानों के हितों की सुरक्षा
XII. दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना
XIII. नीम लेपित यूरिया
XIV. नई उर्वरक नीति
- मनरेगा में कम से कम 60 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में व्यय
XVI. किसान टीवी चैनल की शुरूआत
XVII. राष्ट्रीय कृषि बाजार
वर्तमान युग सूचना प्रौद्योगिकीय का युग है जिसमें कि सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। हमारी सरकार ने इसके महत्व कोस्वीकारकरते हुए अनेक नवोन्मेषी ऐप प्रारंभ किये है जैसे कि किसान सुविधा ऐप, कृषि बाजार ऐप, पूसा कृषि ऐप तथा फसल बीमा ऐप।इसके अलावा किसान कॉल सेंटर से किसान भाई जरूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं। कृषि के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध किसान टीवीचैनल भी देश को समर्पित किया गया है। किसान भाइयों के लिए एक केवीके पोर्टल लांच किया गया है। साथ ही मैं स्वयं महीने में एकदिन फेसबुक पर किसानों से जुड़ी जिज्ञासाओं का जबाव देता हूं। हमें विश्वास है कि अनुसंधान संस्थानों में वैज्ञानिकों द्वारा की गयी नई– नई खोजों का लाभ इन माध्यमों से हमारे किसान भाई उठा सकेंगें।
फार्मर फर्स्ट (Farmer First) योजना के तहत वर्ष 2015-16 तक परिषद के संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने पचासहज़ार से भी अधिक किसानों के साथ चर्चा की। वर्ष 2016-17 में इस योजना में एक लाख किसान परिवारों को जोड़ा जाएगा।
भारत में दालों की विशेष कमी को देखते हुए दलहन बीज हब बनाने की योजना है। इसके तहत प्रत्येक दलहन बीज हब केंद्र में एक हजारक्विंटल दलहन बीजों का उत्पादन किया जाएगा। वर्ष 2016-17 में 100 दलहन केंद्रो की स्थापना की जाएगी जिसे 2017-18 तक बढ़ाकर150 किया जाएगा।
मेरा गांव – मेरा गौरव एक नई योजना प्रारंभ की गई है जिसमें गांव तक वैज्ञानिक खेती की प्रभावी एवं गहरी पहुंच के लिए देश मेंकृषि विश्वविद्यालयों एवं आईसीएआर के सभी संस्थानों के कृषि विशेषज्ञों को शामिल किया जा रहा है। प्रत्येक कृषि विशेषज्ञ स्वयं कोकिसी एक विशिष्ट गांव से जोड़ेगा और वहां नई तकनीकों के माध्यम से कृषि विकास को बढ़ावा देने हेतु मार्गदर्शन प्रदान करेगा तथा कृषिसंबंधी समस्या का समाधान करने में इन संस्थानों की भूमिका के बारे में जागरूकता पैदा करेगा । आधुनिक कृषि रीतियों के बारे मेंवैज्ञानिक जागरूकता का सृजन करने के लिए इस योजना के तहत लगभग 20 हजार कृषि वैज्ञानिकों को प्रत्येक द्वारा एक गांव अपनानेकी जिम्मेदारी दी जा रही है।
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए कृषि का विविधीकरण किया जाना और भी जरूरी हो गया है। फूलों की खेती में लाभ केपर्याप्त अवसर हैं। आज कृषि विविधीकरण समय की मांग है क्योंकि इससे फूड बॉस्केट में सुधार आता है, वर्षभर उत्पादन बना रहता हैऔर साथ ही पोषणिक सुरक्षा और आमदनी मिलती है । खाद्य सुरक्षा हासिल करने के उपरांत अब हमारा ध्यान पोषिणक सुरक्षा के साथ–साथ टिकाऊ एवं निष्पक्ष विकास की ओर होना चाहिए। खेती कार्य से अच्छी आमदनी मिलने की किसानों की इच्छा को नवोन्मेषीतकनीकों, स्थानीय संस्थानों तथा प्रभावी प्रसार युक्तियों द्वारा पूरा किया जाना चाहिए।
आज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 88वां स्थापना दिवस है, इन वर्षों में इसके द्वारा अभूतपूर्व सफलताएं अर्जित की गईं हैं जिनकेपरिणामस्वरूप आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि खाद्यान्न के मामले में आज हमारा देश न केवल आत्मनिर्भर है वरन कई जिंसोंके मामले में हम प्रथम या द्वितीय स्थान पर हैं और कई जिंसों का निर्यात भी किया जा रहा है। यह उपलब्धि हमारे वैज्ञानिकों केउत्कृष्ट अनुसंधान परिणामों और हमारे किसान भाइयों की कड़ी मेहनत के बिना संभव नहीं थी । इसके लिए हमारे वैज्ञानिक एवं किसानभाई प्रशंसा के पात्र हैं।
आने वाले समय में हमें अपने प्रयासों में और अधिक तेजी लाने की जरूरत है। कृषि कार्य में किसानों का भरोसा बनाये रखने के लिए हमेंअपने अनुसंधान प्रयासों को इस दिशा में रखना होगा जिससे देश का पेट भरे और किसान की जेब भरे। अंत में, मैं यहां उपस्थित और देशके कोटि-कोटि किसानों का अभिनन्दन करता हूं। वास्तव में कहा जाए तो किसान हमारे अन्नदाता हैं। और आपकी खुशहाली और आपकेचेहरे की मुस्कान ही हमारी सफलता का दर्पण हैजो हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
इसके साथ ही आपको आश्वासन दिलाना चाहता हूं कि हम देश के किसानों के लिए प्रतिबद्ध हैं और देश की कृषि और किसानों की बेहतरीके लिए पूरी प्रतिबद्धता से कार्य करते रहेंगे।
मैं, एक बार पुन: सभी पुरस्कार विजेताओं जिनमें हमारे किसान भाई, पत्रकार बंधु, कृषि विज्ञान केन्द्र, संस्थान शामिल हैं, को उनके योगदानके लिए बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि पुरस्कार विजेता अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेंगे।”