नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्पष्ट किया है कि च्वाइस बेस क्रेडिट प्रणाली किसी भी तरह विश्वविद्यालयों का उदार शैक्षिक माहौल प्रभावित नहीं करेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कुछ समय से च्वाइस बेस क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) लागू करने का प्रयास कर रहा है। आयोग ने इसके कार्यान्वयन के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। यह दिशा-निर्देश नवंबर, 2014 में अपलोड किया गया। यह दिशा निर्देश विश्वविद्यालयों को अपनी क्षमता तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों के बीच एकरूपता का ध्यान रखते हुए सीबीसीएस तैयार करने का खाका है।समीक्षा और मूल्यांकन में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पालन की जाने वाली प्रक्रियाओं का एक टेमप्लेट दिया है ताकि शिक्षा का स्तर भी बनाए रखा जा सके। इस प्रणाली को कारगर तरीके से लागू करने के लिए सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को सूचनाएं भेजी गई हैं। पूरे देश में 8 कार्याशालाएं आयोजित की गईं, जिसमें सभी केंद्रीय राज्य तथा निजि विश्वविद्यालय के कुलपतियों ने भाग लिया। केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों ने फरवरी, 2015 में आयोजित सम्मेलन में शैक्षिक वर्ष 2015-16 से सीबीसीएस लागू करने का वचन विश्वविद्यालय के विजिटर को दिया है। यह प्रणाली अनेक निजी विश्वविद्यालय में पहले से जारी है और भारत सरकार का यह प्रयास है कि केंद्रीय तथा राज्य विश्वविद्यालयों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाया जाए ताकि राज्य तथा केंद्रीय विश्वविद्यालयों से पास होने वाले विद्यार्थी निजी विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों की तुलना में किसी तरह के नुकसान में न रहे।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पूर्व स्नातक कोर्स के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने का व्यापक कार्य किया, जो सीबीसीएस के प्रावधानों के अऩुरूप होगा। विशेषज्ञों द्वारा तैयार पाठ्यक्रम फीडबैक के लिए तथा अंतिम रूप दिए जाने से पहले बदलाव के लिए सार्वजनिक कर दिया गया है। तैयार पाठ्यक्रम विश्वविद्यालयों द्वारा 30 प्रतिशत तक (फीडबैक के बाद 20 प्रतिशत से बढ़ाया जाएगा) अपनी विशेषज्ञता क्षेत्र के आधार पर पाठ्यक्रमों में बदलाव करने में सहायक होगा। यह पहले की न्यूनतम 70 प्रतिशत के बराबर अंतर-विश्वविद्यालय माइग्रेशन से अलग नहीं होगा, यानी पूर्व स्नातक स्तर पर पाठ्यक्रम पूरे देश में 70 प्रतिशत के बराबर है। सीबीसीएस प्रणाली के अंतर्गत चुनिंदा विषय उन्हीं विषयों में से मिल सकेगा, जो विश्वविद्यालय/संस्थान में पढ़ाए जा रहे हैं। इस तरह शिक्षकों का शिक्षण कार्यभार विश्वविद्यालय अऩुदान आयोग द्वारा निर्धारित कार्यभार से अधिक नहीं होगा। शिक्षकों का अंतर-संस्थान/अंतर-कॉलेज माइग्रेशन स्थानान्तरण भी नहीं होगा। यह प्रणाली विश्वविद्यालय के उदार शैक्षिक माहौल पर दबाव नहीं होगा, क्योंकि विशेषज्ञों द्वारा तैयार पाठ्यक्रम के टेमप्लेट में कुछ भी विरोधाभाषी नहीं है।