देहरादून: भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के संवर्द्धन, वित्तपोषण और विकास के लिए कार्यरत प्रमुख वित्तीय संस्था है। इसने स्वतंत्रता दिवस पर अपने प्रमुख कार्यक्रम – मिशन स्वावलंबन, आत्मनिर्भर भारत और स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के अंतर्गत, उषा इंटरनेशनल लिमिटेड (यूआईएल) की साझेदारी में स्वावलंबन सिलाई स्कूलों की स्थापना के पाँचवें चरण का आरंभ किया। इस चरण में छत्तीसगढ़, हरियाणा, गोवा, पुद्दुचेरी, जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख के 10 जिलों में 300 स्वावलंबन सिलाई स्कूलों की स्थापना की जाएगी। इसका उद्देश्य महिलाओं में उद्यमिता की संस्कृति विकसित कर उनको सशक्त और स्वाधीन बनाना (उद्यम से आजादी) और गृह-उद्यमी के रूप में विकसित करना है। लगभग 25 आकांक्षी गृह-उद्यमियों की उपस्थिति में, सीएमडी, सिडबी ने पुडुचेरी से कार्यक्रम का प्रतीयमान (वर्चुअल) शुभारंभ किया।
इस अवसर पर, सिडबी के सीएमडी श्री सिवसुब्रमण्यन रमण ने कहा, “हम 76वाँ स्वतंत्रता दिवस ‘उद्यम से आज़ादी’ विषय पर केंद्रित प्रयासों के साथ मना रहे हैं, जिसमें महिला उद्यमिता, शिल्पकारों तथा बड़े पैमाने पर आजीविका को बढ़ावा दिया जाएगा। सिडबी को यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि इस संयुक्त प्रयास के माध्यम से अब तक देश के 17 राज्यों [अर्थात् उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और पूर्वोत्तर (अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा और मिज़ोरम) के 48 ज़िलों के 198 प्रखंडों के 2618 गाँवों में 2700 स्वावलंबन सिलाई स्कूल स्थापित किए जा चुके हैं। यह गर्व की बात है कि इन स्कूलों ने 75000 झंडे बनाकर राष्ट्रीय मिशन “हर घर तिरंगा” में अपना योगदान किया। ये झंडे 750 गाँवों में वितरित किए गए।”
इससे पहले इन गृह-उद्यमियों ने 7 राज्यों में लगभग 1.5 लाख मास्क बनाकर कोविड की लड़ाई में सहयोग किया था। तब से 160 महिला सिलाई उद्यमी जीईएमएस पोर्टल से जुड़ी हैं और उनमें से कुछ ने आगे बढ़कर अपने उत्पादों के साथ प्रदर्शनियों में भाग भी लिया है। इन प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए, सिडबी का लक्ष्य पूरे भारत में 5,000 ऐसे स्कूल स्थापित करना और उन्हें सिलेसिलाए परिधानों के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाने के लिए विकसित करना है।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत, आकांक्षी महिला उद्यमियों को विभिन्न जीवन-कलाओं और उद्यमिता के सिद्धांतों के साथ-साथ सिलाई, सिलाई मशीन के रखरखाव एवं मरम्मत जैसे अनेक कार्यों में कुशल बनाया जाता हैं। यह कार्य यूआईएल के विशेषज्ञ प्रशिक्षक करते हैं। गृह-उद्यमियों के चयन, क्षमता निर्माण और उनके उद्यमों की स्थापना के लिए एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया निर्धारित है। आरंभ में, प्रतिभागी सिलाई मशीन बॉक्स खोलते हैं और फिर मशीन के पुर्जे/हिस्से बार-बार जोड़ने और खोलने का अभ्यास करते हैं और इस प्रकार वे अपना प्रशिक्षण आरंभ करते हैं। सफलतापूर्वक प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करने वाली महिलाओं को सिलाई मशीन, प्रशिक्षण किट, मशीन मैनुअल, डिजाइन बुक, प्रमाणपत्र और स्वावलंबन सिलाई स्कूल का एक साइनबोर्ड प्रदान किया जाता है। यह पहल न केवल उन्हें स्वाधीन और अपने परिवार के लिए अनुकरणीय मॉडल बना रही है, बल्कि उद्यमिता संस्कृति को भी प्रभावित कर रही है। साथ ही, वे मास्टर प्रशिक्षक बन जाती हैं और फिर औसतन दस अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित करती हैं। इससे उनके समाज में उद्यमिता के प्रति बहुगुणित प्रभाव /लहर पैदा होगी।
कार्यक्रम के पहले चार चरणों में, 2700 गृह-उद्यमी कार्यरत हुई हैं और उन्होंने अपने अधीन 27000 से अधिक प्रशिक्षु नामांकित किए हैं, जिससे उद्यमिता के प्रति रुझान गहन हुआ है। प्रत्येक गृह-उद्यमी आकांक्षी प्रशिक्षुओं के लिए प्रशिक्षक के रूप में कार्य करती है और सिले गए वस्त्रों की डिजाइन तैयार करने का और उनकी बिक्री का कार्य भी करती है। साथ ही, मरम्मत सेवाएँ भी प्रदान करती है। इस पहल ने समाज के सबसे निचले वर्ग की महिलाओं और वंचित वर्गों को प्रभावित किया है। इन 2700 गृह-उद्यमियों में से लगभग 40% महिलाएँ अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के अंतर्गत आती हैं, जबकि लगभग 39% महिलाएँ अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति श्रेणी से संबंधित हैं। कुल मिलाकर, सिलाई स्कूलों की स्थापना करने वाली इन महिलाओं में से 60% गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी से हैं। 3 वर्ष की अवधि के दौरान, सिलाई संबंधी जॉब-कार्य, प्रशिक्षुओं के शुल्क और सिलाई मशीन की मरम्मत के माध्यम से इन 2700 महिलाओं की संचयी आय 12.47 करोड़ रुपये दर्ज की गई है। इनमें से लगभग 40-45% गृह-उद्यमी औसतन लगभग 3000-3500 रुपये प्रति माह कमा रही हैं। अगले चरण में, कढ़ाई और फैशन डिजाइनिंग को आत्मसात करने की उनकी आकांक्षा को पूरा करने की दिशा में सिडबी और उषा संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं।