महिला आज भी एक उपेक्षित आँसू ……………………………………..
सोच को विस्तार कहाँ
बातों को आधार कहाँ
निर्धन को प्रेम कहाँ
औरत को सम्मान कहाँ
दोस्तों हम सभी जानते हैं कि इस 8 मार्च 2016 दिन मंगलवार को सम्पूर्ण विश्व, विश्व अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है |इस महिला दिवस के पीछे महिलाओं की पहली वो आवाज थी जब वर्ष 1908 में न्यूयार्क की एक कपड़ा मिल में काम कर रहीं महिलाओं ने अपने कार्य की समय सीमा तय करने, सही तनख्वाय, और अपने वोट के हक के लिये आवाज बुलन्द की थी | यह घटना विश्व के इतिहास की इतनी प्रभावशाली घटना थी कि वर्ष 1909 में अमेरिका की सोशलिष्ट पार्टी ने पहली बार नैशनल वुमन डे मनाया जिससे महिला शक्ति जाग उठी थी और अब उसने वर्ष 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के खिलाफ जोरदार प्रदर्शनों को अंजाम दिया | फिर इन सभी प्रदर्शनों को महिला अधिकारों से जोड़ते हुए एक इतिहास रच गया जब 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया गया | यह था वो वर्ष 1900 का अमिट एतिहासिक पल और आज वर्ष 2016 यानि 116 वाँ वर्ष तो क्या बदलाव और सुधार आया है इतने संघर्षपूर्ण वर्षों में, हमारे देश की गाँव, कस्बे छोटे-बड़े शहरों और ज्यादातर महिला आज भी मानसिक संघर्ष से हर पल जूझ रही है |
इस बात की पुष्टी नीलसन सर्वे ने कर दी है और चौंकाने वाले आंकड़े हम सभी के सामने है जिसमें 87% भारतीय महिलाओं ने माना है कि वो बहुत तनाव में है और 82% भारतीय महिलाओं ने माना कि उन्हें आराम करने का वक्त तक नही यानि दिनभर ऑफिस फिर घर-बच्चों की जिम्मेदारी फिर पति की और समाज की खरी-खोटी और अपमान,मतलब कि स्थति यह है कि उसे रोने तक का वक्त नही,भारतीय महिला का आसूँ तक इतना उपेक्षित है कि वो भी सम्मान के लिये रो रहा | आखिर कब सुधरेगी महिला के सम्मान की तस्वीर और कैसे भरे जा सकेगें उसमें खुशहाली के रंग | आज जब हमारे हिन्दुस्तान ने इतनी प्रगृति कर ली है कि चाँद पर पानी की खोज कर ली है और दुनिया उसे सम्मान दे रही है और दूसरी तरफ उसी महान देश की लैंगिक इन्डेक्स में पिछड़ गया है यह तथ्य सामने आया है जेनेवा स्थित वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के वार्षिक लैंगिक समानता इण्डेक्स में भारत 114वें स्थान पर खिसक गया है क्या ये चिंता का विषय नही है |इस हालत का जिम्मेदार हमारी विकृत मानसिकता ही है जो बेटा और बेटी में फर्क के ग्राफ को बढ़ाये हुए है | इसलिये बेटी की शिक्षा बहुत जरूरी है क्योंकि नारी की दशा तभी सुधर सकती है जब खुद नारी शिक्षित हो और खुद को सुरक्षित रखने में सक्षम हो |
भारतवर्ष की महिला इतनी महान है कि उसे किसी तरह के आरक्षण से ज्यादा सम्मान और प्रेम की आवश्यकता है जो सच पूछो तो उसे अपने ही परिवार से नहीं मिलता | हद तो तब हो जाती है जब उसे कमाऊँ बहू जैसे लालची शब्द से परिभाषित किया जाता है और दहेज के रूप में चलता-फिरता एटीएम समझ लिया जाता है और प्रतिपल वह अपनी जिंदगी घुट-घुट के जीती है |क्योंकि अगर वो विद्रोह करके मायके भी लौट आये तो विडम्ना है कि समाज की उपेक्षित नजरें और व्यंगात्मक ताने उसे जीने ही नही देते | महिला का पिछड़ापन कुछ और नही दकियानूसी सोच और विकृत मानसिकता के अतरिक्त कुछ नहीं है | जब तक हम हमारी सोच में सकारात्मक परिवर्तन नहीं लायेगें तब तक महिला शोसित होती रहेगी|इसीलिये देश की बेटी का शिक्षित होना अतिआवश्क है जो वो अपने हक की लड़ाई स्वंय लड़ने के काबिल और साहसी बन सके और अपने अपमान का मुँहतोड़ जबाव दे सके जिससे उसका या उसकी किसी सहकर्मी का आर्थिक, मानसिक, शारीरिक शोषण का विचार भी किसी के दिमाग में आने से डरे |
हमें हमारे भारतवर्ष की बेटी को इतना सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है कि वह खुद एक पहिचान बनें और यह पहल हमें और आपको ही करनी हैं |तभी समाज और हम ब्लाग का लक्ष्य पूर्ण होगा|आइये हम इस बार हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को अन्तरराष्ट्रीय महिला सम्मान दिवस के रूप में मानातें है और इसकी शुरूवात करते हैं अपने प्यारे ये परिवार से, अपनी पहली महिला शिक्षिता अपनी माँ को ताजे फूल देकर ,अपनी पत्नी, अपनी बहन – बेटी और अपने आस-पास की बुजुर्ग महिलाओं के पास थोड़ी देर बैठकर, अपना थोड़ा सा समय उनको देकर जिन्होनें हम और आप को इस लायक बनाने में अपना सम्पूर्ण जीवन स्वाहा कर दिया पर हमको जीवन की सुगंध से सराबोर कर दिया | दोस्तों, आइये सम्मान प्रणाम करते हैं सम्पूर्ण विश्व की प्रत्येक महिला को और प्रतिपल सहृदय उनके सम्मान का वचन लेते हैं और आइये मिलकर अंतर्राष्ट्रीय विश्वव महिला सम्मान दिवस मनाते हैं और भारतवर्ष के गौरवशाली एतिहास के सच्चे रक्षक होने का फर्ज निभाते हैं|
धन्यवाद
स्वरचित लेख
आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर समाज और हम
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