जब हम संसार से निराश हो जाते हैं, तब हम अपनी आत्मा के पिता परमपिता परमात्मा की ओर पूरी तरह से मुड़ जाते हैं और यही वह क्षण होता है जब कि हमें कहीं-न-कहीं से जीवन में आगे बढ़ने के लिए उचित मार्गदर्शन मिल जाता है। प्रार्थना अध्यात्म का ‘प्राण’ और ‘सार’ है और कोई भी व्यक्ति प्रार्थना के बिना उद्देश्यपूर्ण ढंग से जी ही नहीं सकता। इसलिए प्रार्थना मनुष्य के जीवन का मर्म होनी चाहिए। प्रार्थना जैसे अध्यात्म का सबसे मार्मिक अंग है, वैसे ही मानव-जीवन का भी है। प्रार्थना मनुष्य को फौलाद की तरह मजबूत बना देती है। आप कितना ही प्रभु नाम जपिये, अगर उससे आत्मा में हलचल नहीं मचती, तो यह व्यर्थ है। वास्तव में पूजा या प्रार्थना वाणी से नहीं बल्कि हृदय से करने की चीज है। सच्चे हृदय से की हुई प्रार्थना चमत्कार कर सकती है। जीवन में आत्मिक सुख प्रार्थना से मिलता है। प्रार्थना आत्मा के विकास के लिए आवश्यक है।
(2) प्रार्थना हृदय को पवित्र बनाने की प्रक्रिया है :-
परमात्मा आत्म-तत्व है इसलिए उसे इन भौतिक आंखों से नहीं देखा जा सकता। परमात्मा की समीपता की अनुभूति तो हमें अपनी आत्मा के माध्यम से होती है। वास्तव में हर पल आत्मा के विकास के लिए जीना ही वास्तविक जीवन है। परमात्मा से हमारा जन्मों-जन्मों का नाता है। तभी वह हमें अपनी आत्मा के विकास के लिए युग-युग में अवतारों के रूप में, इस धरती पर अवतरित होकर, पवित्र ग्रन्थों की शिक्षाओं के माध्यम से सदा-सदा के लिए प्रेरित करता रहता है। इसलिए हमें कभी भी अपनी आत्मा की आवाज को अनसुनी नहीं करना चाहिए। हमारे दैनिक कार्यों में व्यवस्था, एकता और शांति लाने का एकमात्र उपाय प्रार्थना है। प्रार्थना एक प्रकार का आवश्यक आध्यात्मिक अनुशासन है। अनुशासन और संयम ही हमें पशुओं से अलग करता है। हमारी प्रार्थना तो अपने हृदय को पवित्र बनाने की एक सरल एवं सहज प्रक्रिया है। वह तो हमें ही यह स्मरण दिलाती है कि हम प्रभु के सहारे के बिना लाचार हैं।
(3) प्रार्थना प्रातःकाल का ‘आरंभ’ और सन्ध्या का ‘अंत’ है :-
प्रार्थना तो आत्मा की खुराक है। जिस तरह खुराक के बिना शरीर कमजोर होता जाता है, उसी तरह प्रार्थना के बिना हमारी आत्मा कमजोर हो जाती है। फलस्वरूप आत्मा का विकास रूक जाने से हमारा जीवन असंतुलित हो जाता है। प्रार्थना प्रातःकाल का आरंभ और संध्या का अंत है। प्रार्थना तभी प्रार्थना है, जब वह अपने-आप हृदय से निकलती है। ऐसा कोई भी कार्य नहीं होता, जिसका कि कोई फल न हो और प्रार्थना तो सबसे उत्तम कार्य है। पवित्र ग्रन्थों से हमें जो दिव्य ज्ञान मिल सकता है वह हमें कही और से नहीं मिल सकता।
(4) सारी धरती एक देश के समान है :-
हम सब एक सागर की बूंदों तथा एक वृक्ष के पत्तों के समान हैं। इसलिए आओ हम सब एकता की डोर से
बांधकर सारे विश्व को एक कर दें। एक कर दे हृदय अपने सेवकों के हे प्रभु। हम पर हमारे जीवन का महान उद्देश्य उजागर कर। परमात्मा की बनायी यह सारी धरती एक देश के समान है। प्रभु का प्रथम उपदेश है एक शुद्ध, दयालु एवं प्रकाशित हृदय धारण कर ताकि पुरातन, अमिट एवं अनन्त श्रेष्ठता का साम्राज्य तेरा हो। न्याय ही वह सत्यपथ है जो जीवन की सही राह को उजागर करता है। न्याय ही है वह प्रकाश है जो दिन-रात जगमगाता है। इसलिए हमें सदैव न्याय की राह में चलकर जीवन में हमेशा सूरज की तरह प्रकाशित रहना चाहिए।
(5) हृदय की सच्ची प्रार्थना से हमें सच्चे कर्त्तव्य का पता चलता है :-
हार्दिक प्रार्थना निःसंदेह सबसे प्रबल अस्त्र है, जो कि कायरता और अन्य सब बुरी आदतों पर विजय प्राप्त करने के लिए मनुष्य के पास परमात्मा का एक अनुपम अनुदान है। प्रार्थना करने वाले मनुष्य के लिए पीछे हटने की तो कोई बात ही नहीं होती। शुभ कार्यों के लिए एक तीव्र इच्छा प्रार्थना का रूप धारण करती है। अणुबमों का मुकाबला प्रार्थनामय कर्म से किया जा सकता है। प्रार्थना भगवान से एकता स्थापित करने के लिए हृदय की चाह है। हृदय की सच्ची प्रार्थना से ही हमें सच्चे कर्त्तव्य का पता चलता है और आखिर में हमारा कर्त्तव्य करना ही हमारी प्रार्थना बन जाती है।
(6) पवित्र ग्रन्थों का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए है :-
सभी पवित्र ग्रन्थ जैसे गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे-अकदस, किताबे अजावेस्ता आदि-आदि का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए हैं। गीता का सन्देश एक लाइन में यह है कि न्याय के लिए अपने
बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए। त्रिपटक का सन्देश है कि वर्ण (जाति) व्यवस्था ईश्वरीय आज्ञा नहीं है वरन् समता ईश्वरीय आज्ञा है। बाइबिल का सन्देश है कि पृथ्वी का साम्राज्य उनका होगा जो दूसरों पर दया करेंगे। कुरान का सन्देश है कि ऐ खुदा, सारी खिलकत को बरकत दे। जब हम सारी मानव जाति की भलाई करेंगे तब नानक का नाम हमें ऊँचाई पर ले जायेगा। किताबे-अकदस का सन्देश है कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। परमात्मा के करोड़ों नाम हमने रखे हैं। क्या परमात्मा ऐसा भी हो सकता है कि केवल किसी एक धर्म के अनुयायियों के लिए अपना ज्ञान दे। परमात्मा की शिक्षायें समय-समय पर विभिन्न अवतारों के माध्यम से दिव्य लोक से सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए आयी हैं।
(7) लोक कल्याण के अलावा कोई धर्म नहीं है :-
जब-जब प्रभु इच्छाओं को जानकर उन शिक्षाओं पर चलने वालो की कमी हो जाती है अर्थात् जब-जब धर्म की हानि होती है तथा धरती पर अन्यायी एवं अधर्म प्रवृत्ति के लोगों की संख्या सज्जन व्यक्तियों की तुलना में अधिक बढ़ जाता है तब-तब मानव जाति का मार्गदर्शन करने के लिए परमपिता परमात्मा राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, महावीर, बहाउल्लाह, अब्राहम, मोजैज, जोरास्टर आदि-आदि के रूप में युग-युग में अवतरित होते रहते हैं। हमारी आत्मा के पिता परमात्मा का धर्म अर्थात कर्तव्य लोक कल्याण है इसलिए पिता-पुत्र के धर्म अर्थात कर्तव्य में फर्क नहीं हो सकता। परमात्मा के धर्म की तरह हमारा धर्म भी लोक कल्याण ही है। परमात्मा सबको बिना किसी भेदभाव के प्यार करता है यहीं मनुष्य का भी धर्म है।
(8) परमात्मा के सन्देशवाहक नैतिक मूल्य को सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित करते है :-
परमात्मा के अवतार लोक कल्याण के लिए किसी एक नैतिक मूल्य को सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित करते हैं। ‘मर्यादा’ नैतिक मूल्य है लेकिन राम ने 7500 वर्ष पूर्व उसे सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित किया। ‘न्याय’ नैतिक मूल्य है लेकिन कृष्ण ने 5000 वर्ष पूर्व ‘न्याय’ को सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित किया। इसी प्रकार 2500 वर्ष पूर्व बुद्ध ने ‘समता’ को, 2000 वर्ष पूर्व ईशु ने ‘करूणा’ को, 1400 वर्ष पूर्व मोहम्मद ने ‘भाईचारे’ को, 500 वर्ष पूर्व नानक ने ‘सच्चा सौदा (त्याग)’ को तथा 200 वर्ष पूर्व बहाउल्लाह ने ‘हृदय की एकता’ को सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित किया।
(9) बच्चों को सभी अवतारों की शिक्षाओं से जोड़ना चाहिए :-
हमें बच्चों को राम की ‘मर्यादा’, कृष्ण के ‘न्याय’, बुद्ध की ‘समता’, ईशु की ‘करूणा’, मोहम्मद के ‘भाईचारे’, नानक के ‘सच्चा सौदा (त्याग)’ तथा बहाउल्लाह के ‘हृदय की एकता’ के गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। ये सारे ईश्वरीय गुण बालक को ‘टोटल क्वालिटी पर्सन’ बनाने में सहायक हैं। केवल उद्देश्यपूर्ण क्लास रूम के द्वारा ही समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है। अर्थात शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम हैं। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
(10) हे प्रभु मेरे मन में कोई बुरा विचार न आयेः-
हमारी प्रार्थना ऐसी होनी चाहिए जिससे कि हम परमात्मा से जुड़ सकें क्योंकि सही प्रार्थना वही है जिससे कि हम परमात्मा से जुड़ सकें। हमें मन ही मन में परमात्मा को याद करना चाहिए। उनकी प्रार्थना करनी चाहिए। उनका मनन करना चाहिए। उनका चिंतन करना चाहिए और अपने लिए मार्गदर्शन मांगना चाहिए। हमें परमात्मा से अपने लिए सुरक्षा मांगनी चाहिए कि ‘‘हे प्रभु मेरे मन में कोई बुरा विचार न आये।’’ प्रार्थना के माध्यम से हमें परमात्मा से जुड़ना चाहिए। फिर परमात्मा हमें अपना जो मार्गदर्शन दें हमें उससे सारी मानवता के उत्थान के लिए काम करना चाहिए।
डा0 जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ